संगम काल: दक्षिण भारत का स्वर्णिम युग (300 ई.पू. - 300 ई.) || Sangam Period in Hindi

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sangam kaal

1. संगम काल: परिचय

सं(caps)गम काल (300 ई.पू. - 300 ई.) दक्षिण भारत (विशेषकर तमिलनाडु) का वह ऐतिहासिक युग है जब मदुरै में तमिल कवियों और विद्वानों की सभाएँ (संगम) आयोजित की जाती थीं। इस काल को तमिल साहित्य और संस्कृति का स्वर्ण युग माना जाता है।

महत्वपूर्ण तथ्य:

  • समयकाल: 300 ई.पू. से 300 ई. तक
  • केंद्र: मदुरै (पांड्य साम्राज्य)
  • भाषा: तमिल
  • प्रमुख स्रोत: संगम साहित्य, मेगस्थनीज का 'इंडिका', अशोक के शिलालेख

2. संगम साहित्य

संगम साहित्य तीन संगमों (सभाओं) में विभाजित है, जिनमें से केवल तीसरे संगम की रचनाएँ ही उपलब्ध हैं।

संगम साहित्य का वर्गीकरण

संगम काल स्थान उपलब्धता
प्रथम संगम 4440 वर्ष मदुरै कोई रचना उपलब्ध नहीं
द्वितीय संगम 3700 वर्ष कपाटपुरम टोल्काप्पियम (व्याकरण ग्रंथ)
तृतीय संगम 1850 वर्ष मदुरै सम्पूर्ण साहित्य उपलब्ध

प्रमुख साहित्यिक रचनाएँ

एट्टुत्तोगई (8 संग्रह):

  • अहनानूरु: प्रेम और युद्ध पर 400 कविताएँ
  • पुरनानूरु: राजाओं की प्रशंसा में 400 कविताएँ
  • कुरुन्थोगई: छोटी प्रेम कविताएँ
  • पट्टुप्पट्टु: 10 लंबी कविताएँ

पटिनेन्कीलकनक्कु (18 नीति ग्रंथ):

  • तिरुक्कुरल: तिरुवल्लुवर द्वारा रचित नीति शास्त्र (1330 कुरल)
  • नालडियार: जैन विद्वानों द्वारा रचित नीति ग्रंथ

महाकाव्य:

  • सिलप्पादिकारम: इलंगो अदिगल द्वारा रचित (चोल राजकुमारी कन्नगी की कथा)
  • मणिमेखलाई: सत्तनार द्वारा रचित बौद्ध महाकाव्य (सिलप्पादिकारम की अगली कड़ी)

3. संगम कालीन राजवंश

संगम काल में तीन प्रमुख राजवंशों का उल्लेख मिलता है जिन्हें "मुवेंदर" (तीन राजाओं) के नाम से जाना जाता था:

चेर राजवंश

  • क्षेत्र: केरल एवं पश्चिमी तट
  • राजधानी: वंजी (करूर)
  • प्रसिद्ध शासक: सेनगुट्टुवन
  • विशेषता: मसालों का व्यापार

चोल राजवंश

  • क्षेत्र: कावेरी नदी घाटी
  • राजधानी: उरैयूर एवं पुहार
  • प्रसिद्ध शासक: करिकाल चोल
  • विशेषता: नौसेना शक्ति

पांड्य राजवंश

  • क्षेत्र: मदुरै एवं दक्षिणी तमिलनाडु
  • राजधानी: मदुरै
  • प्रसिद्ध शासक: नेडुनजेलियन
  • विशेषता: मोती व्यापार

UPSC के लिए महत्वपूर्ण:

  • करिकाल चोल ने कावेरी नदी पर कल्लनई बाँध बनवाया
  • पांड्य शासन में महिला शासकों का उल्लेख (संभवतः मातृसत्तात्मक समाज)
  • चेर शासक सेनगुट्टुवन ने रामायण में वर्णित अश्वमेध यज्ञ किया

4. सामाजिक संरचना

भूमि आधारित वर्गीकरण (तिनई):

कुरिंजी (पहाड़ी क्षेत्र)

  • व्यवसाय: शिकारी, मधु संग्रह
  • देवता: मुरुगन
  • उदाहरण: कोरवर जनजाति

मुल्लई (वन क्षेत्र)

  • व्यवसाय: पशुपालन
  • देवता: विष्णु/मायोन
  • उदाहरण: इडैयर समुदाय

मरुदम (उपजाऊ भूमि)

  • व्यवसाय: कृषि
  • देवता: इंद्र
  • उदाहरण: वेल्लालर (भूस्वामी)

नेयतल (तटीय क्षेत्र)

  • व्यवसाय: मछली पकड़ना
  • देवता: वरुण
  • उदाहरण: परतवर समुदाय

पालई (रेगिस्तान)

  • व्यवसाय: डकैती/युद्ध
  • देवता: कोर्रवई
  • उदाहरण: मरवर समुदाय

जाति व्यवस्था:

  • अरसर: शासक वर्ग (क्षत्रिय समतुल्य)
  • अंथनार: पुरोहित वर्ग (ब्राह्मण समतुल्य)
  • वेल्लालर: कृषक वर्ग (वैश्य समतुल्य)
  • कडैसियर: शिल्पकार वर्ग
  • पुलैयर: अछूत माने जाने वाले

UPSC के लिए महत्वपूर्ण:

  • स्त्रियों की उच्च स्थिति - अव्वैयार जैसी कवयित्रियों का उल्लेख
  • वर्ण व्यवस्था का कमजोर स्वरूप (उत्तर भारत से भिन्न)
  • कुरुन्थोगई में प्रेम कविताएँ सामाजिक स्वतंत्रता को दर्शाती हैं

5. आर्थिक स्थिति

कृषि:

मुख्य फसलें

  • चावल (मुख्य खाद्यान्न)
  • कपास (उरैयूर प्रसिद्ध कपड़ा केंद्र)
  • गन्ना, काली मिर्च, इलायची

सिंचाई व्यवस्था

  • कावेरी नदी पर करिकाल चोल द्वारा कल्लनई बाँध
  • तंकल (कुँए) और एरी (तालाब)
  • वृहत सिंचाई परियोजनाएँ

व्यापार एवं वाणिज्य:

व्यापारिक वस्तु उत्पादन केंद्र निर्यात स्थल
मोती, मूंगा कोरकई (पांड्य) रोमन साम्राज्य
काली मिर्च चेर प्रदेश यूनान, मिस्र
हाथी दांत मदुरै पश्चिमी देश
सूती वस्त्र उरैयूर दक्षिण पूर्व एशिया

मुद्रा प्रणाली:

  • रोमन सोने के सिक्के (ऑरियस) प्रचलित
  • स्थानीय सिक्के - काशु (ताँबे के सिक्के)
  • वस्तु विनिमय भी प्रचलित
  • पुरनानूरु में सोने के सिक्कों का उल्लेख

6. धार्मिक स्थिति

स्थानीय धर्म

  • मुरुगन पूजा: युद्ध देवता (कुरिंजी क्षेत्र)
  • कोर्रवई: युद्ध की देवी (पालई क्षेत्र)
  • मायोन (विष्णु): मुल्लई क्षेत्र
  • इंद्र: वर्षा के देवता (मरुदम क्षेत्र)
  • वरुण: समुद्र देवता (नेयतल क्षेत्र)

वैदिक धर्म

  • ब्राह्मणों (अंथनार) का प्रभाव
  • यज्ञों का आयोजन
  • पुरनानूरु में इंद्र, अग्नि का उल्लेख
  • वर्ण व्यवस्था का प्रारंभिक स्वरूप

जैन एवं बौद्ध धर्म

  • जैन प्रभाव (नालडियार ग्रंथ)
  • बौद्ध प्रभाव (मणिमेखलाई महाकाव्य)
  • मदुरै के निकट जैन गुफाएँ
  • चेर शासक सेनगुट्टुवन द्वारा बौद्ध विहार निर्माण

UPSC के लिए महत्वपूर्ण:

  • संगम काल में शैव-वैष्णव भेद नहीं
  • मुरुगन की पूजा आधुनिक कार्तिकेय पूजा का आधार
  • मणिमेखलाई में बौद्ध दर्शन का विस्तृत वर्णन

7. विदेशी संबंध

रोमन साम्राज्य के साथ व्यापार:

  • प्रमुख बंदरगाह: मुजिरिस (केरल), कोरकई (पांड्य), पुहार (चोल)
  • आयातित वस्तुएँ: रोमन शराब, सोने के सिक्के, ताँबा, टिन
  • निर्यातित वस्तुएँ: मसाले, मोती, हाथी दांत, रेशमी वस्त्र
  • प्लिनी की टिप्पणी: भारत से वार्षिक 50 मिलियन सेस्टर्स का व्यापार

यवन (ग्रीक) व्यापारिक बस्तियाँ:

आरिकामेडु

  • पुडुचेरी के निकट
  • रोमन मिट्टी के बर्तनों के अवशेष
  • व्यापारिक गोदाम के प्रमाण

कोडुमनल

  • तमिलनाडु में स्थित
  • रोमन लैंप, काँच की वस्तुएँ
  • माणिक्य उत्पादन केंद्र

UPSC के लिए महत्वपूर्ण:

  • रोमन सोने के सिक्के दक्षिण भारत में प्रचुर मात्रा में मिले
  • पेरिप्लस ऑफ द एरिथ्रियन सी में मुजिरिस का उल्लेख
  • संगम साहित्य में 'यवन' शब्द का प्रयोग ग्रीक/रोमन लोगों के लिए

8. प्रशासनिक व्यवस्था

राजतंत्र

  • राजा के उपाधियाँ: वेंदर, को, वनवन, अरसर
  • राज्याभिषेक: 'मुडिच्चंदम' नामक समारोह
  • महिला शासक: पांड्य साम्राज्य में नीलमणि जैसी रानियाँ
  • युवराज: 'कनिमार' कहलाते थे

मंत्रिपरिषद

  • अमाइच्चार: मंत्री परिषद
  • पुरोहित: अंथनार वर्ग
  • सेनापति: 'तनैयार' कहलाते थे
  • दूत: 'तुतर' कहलाते थे

राजस्व व्यवस्था:

  • कर: 'इरई' (भूमि कर), 'इवरई' (व्यापार कर)
  • सिंचाई कर: 'एरीई' (तालाबों से संबंधित)
  • सैन्य कर: 'पदुवरई' (युद्ध के समय)
  • कर संग्रहकर्ता: 'वरियम' नामक अधिकारी

न्याय व्यवस्था:

अरक्कल

  • न्यायाधीशों को कहा जाता था
  • ग्राम सभाओं द्वारा न्याय
  • दंड: जुर्माना से लेकर मृत्युदंड तक

न्याय सिद्धांत

  • 'अरम' (धर्म) के आधार पर निर्णय
  • तिरुक्कुरल में न्याय संबंधी अध्याय
  • राजा को 'न्याय का स्रोत' माना जाता था

UPSC के लिए महत्वपूर्ण:

  • संगम काल में स्थानीय स्वशासन के प्रारंभिक रूप
  • तिरुक्कुरल में राजधर्म पर विस्तृत विवेचन
  • पांड्य शासन में महिला अधिकारियों का उल्लेख

9. यूपीएससी प्रश्न

प्रारंभिक परीक्षा हेतु महत्वपूर्ण तथ्य

  1. संगम साहित्य की भाषा - तमिल
  2. तिरुक्कुरल के रचयिता - तिरुवल्लुवर
  3. संगम काल में रोमन साम्राज्य के साथ व्यापार का प्रमुख बंदरगाह - मुजिरिस
  4. संगम साहित्य में वर्णित पांच भू-विभाग - कुरिंजी, मुल्लई, मरुदम, नेयतल, पालई

मुख्य परीक्षा हेतु संभावित प्रश्न

  1. "संगम साहित्य में वर्णित सामाजिक-आर्थिक स्थिति का विश्लेषण कीजिए।" (150 शब्द)
  2. "संगम कालीन दक्षिण भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर एक टिप्पणी लिखिए।" (250 शब्द)
  3. "संगम युग में स्त्रियों की स्थिति पर प्रकाश डालिए।" (100 शब्द)

पिछले वर्षों के प्रश्न

  1. UPSC 2020: "संगम साहित्य में वर्णित 'अहम' और 'पुरम' की अवधारणाओं की व्याख्या कीजिए।"
  2. UPSC 2018: "करिकाल चोल के शासनकाल के महत्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।"
  3. UPSC 2016: "संगम युग में भूमि वर्गीकरण की व्यवस्था का वर्णन कीजिए।"

निष्कर्ष

संगम काल दक्षिण भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण चरण था जिसमें साहित्य, कला, संस्कृति और अर्थव्यवस्था का अद्भुत विकास हुआ। यह काल तमिल भाषा और साहित्य के विकास के साथ-साथ दक्षिण भारत की विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान के निर्माण का भी साक्षी रहा। संगम साहित्य न केवल साहित्यिक दृष्टि से बल्कि ऐतिहासिक स्रोत के रूप में भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।


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