हुमायूँ का परिचय
हुमायूँ का जन्म 6 मार्च 1508 को काबुल (अफगानिस्तान) में हुआ था। उनके पिता का नाम बाबर था, जो मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक थे। हुमायूँ, बाबर के बड़े बेटे थे और उनका वास्तविक नाम 'नसीरुद्दीन मुहम्मद' था, जिसे बाद में 'हुमायूँ' कहा जाने लगा। हुमायूँ के अन्य तीन भाई कामरान, अस्करी और हिंदाल थे। बाबर की मृत्यु के पश्चात हुमायूँ 29 दिसंबर 1530 ईसवी को आगरा की गद्दी पर बैठा, उस समय हुमायूँ की उम्र 23 वर्ष थी।
हुमायूँ ने अपने शासनकाल में 'दीनपनाह' नामक एक नए शहर की नींव रखी थी, जो वर्तमान दिल्ली के पुराने किले के आसपास स्थित था। यह उनकी राजधानी नियोजन की दूरदर्शिता को दर्शाता है।
हुमायूँ का शासनकाल (1530-1540 और 1555-1556)
हुमायूँ ने दो अवधियों तक शासन किया - पहला 1530 से 1540 तक और दूसरा 1555 से 1556 तक। उनके शासनकाल की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित थीं:
- हुमायूँ एक कला प्रेमी थे और उन्होंने फारसी कला एवं संस्कृति को संरक्षण दिया
- उन्होंने विज्ञान, कला, और साहित्य को प्रोत्साहित किया और अपने दरबार में कला के क्षेत्र में विकास को समर्थन किया
- हुमायूँ ने अपने शासनकाल में अनेक भवनों, पुस्तकालयों और वेधशालाओं का निर्माण करवाया
- उन्होंने अपने भाइयों के साथ साम्राज्य विभाजन की नीति अपनाई जो बाद में समस्याओं का कारण बनी
हुमायूँ और शेरशाह के मध्य हुए युद्ध
चौसा का युद्ध हुमायूँ और शेरशाह के अफ़गान सेना के मध्य बक्सर के समीप कर्मनासा नदी के तट पर स्थित चौसा नामक स्थान पर हुआ था। इस युद्ध में हुमायूँ की सेना ने कर्मनासा नदी पार करने का प्रयास किया, लेकिन शेरशाह की रणनीति के कारण मुगल सेना अस्त-व्यस्त हो गई। इस युद्ध में हुमायूँ की करारी हार हुई और उन्हें अपना जान बचाकर भागना पड़ा। किंवदंती है कि हुमायूँ ने नदी पार करने के लिए एक बेलदार (नाविक) की मदद ली थी, जिसने उनकी जान बचाई थी।
हुमायूँ और शेरशाह के मध्य पुनः कन्नौज के निकट बिलग्राम नामक स्थान पर गंगा नदी के किनारे युद्ध हुआ। इस युद्ध में शेरशाह ने अपनी सैन्य कुशलता और रणनीति का परिचय देते हुए हुमायूँ की सेना को धूल चटा दी। इस युद्ध में पराजय ने हुमायूँ को पलायन के लिए विवश कर दिया और सिंध और मारवाड़ के शासक मालदेव द्वारा शरण न दिए जाने के कारण वह ईरान की ओर प्रस्थान कर गया। इसके साथ ही भारत में मुगल साम्राज्य का प्रथम चरण समाप्त हो गया।
हुमायूँ का साम्राज्य पुनः प्राप्ति
15 वर्ष के निर्वासन के बाद, हुमायूँ ने 1555 ईसवी में बैरम खान की सहायता से 'सरहिन्द के युद्ध' में सिकंदर सुर को हराकर दिल्ली, आगरा, संभाल आदि क्षेत्रों पर पुनः अधिकार कर लिया। 1555 में ही उसने सिकंदर सुर के सरदारों में से एक तातार खान को 'मच्छीवरा के युद्ध' में पराजित किया था।
हुमायूँ की मृत्यु 27 जनवरी 1556 को दीनपनाह पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरने के कारण हुई। इसके मात्र एक वर्ष पश्चात 1556 में ही उसके पुत्र अकबर का राज्याभिषेक हुआ, जिसने मुगल साम्राज्य को भारत की सबसे शक्तिशाली साम्राज्य बनाया।
सूर साम्राज्य: शेरशाह सूरी एवं उनकी शासन व्यवस्था
शेरशाह का जन्म जौनपुर के समीप बाजवाड़ा (वर्तमान उत्तर प्रदेश) में हुआ। उनके बचपन का नाम फरीद था। उनके पिता हसन खान सूर जौनपुर के एक छोटे जमींदार थे।
शेरशाह ने हुमायूँ को हराकर सूर साम्राज्य की नींव डाली और दिल्ली की गद्दी पर बैठा।
कालिंजर अभियान के दौरान एक तोप का गोला लगने से शेरशाह की मृत्यु हो गई। इसके बाद शेरशाह का दूसरा पुत्र जलाला खान सिंहासन पर बैठा और इस्लामशाह की उपाधि के साथ शासनरूढ़ हुआ।
शेरशाह सूरी की प्रशासनिक सुधार
| क्षेत्र | सुधार | महत्व |
|---|---|---|
| राजस्व प्रणाली | पट्टा एवं कबूलियत की व्यवस्था | किसानों को उनके अधिकारों का लिखित प्रमाण |
| मुद्रा व्यवस्था | शुद्ध चांदी के रुपये का प्रचलन | मानक मुद्रा प्रणाली की शुरुआत |
| सड़क निर्माण | ग्रैंड ट्रंक रोड का निर्माण एवं रखरखाव | देश के विभिन्न भागों को जोड़ने वाला मार्ग |
| डाक व्यवस्था | सिस्टमेटिक डाक सेवा की स्थापना | संचार में क्रांतिकारी सुधार |
| न्यायिक व्यवस्था | न्यायिक सुधार एवं कानून का शासन | निष्पक्ष न्याय प्रणाली की स्थापना |
शेरशाह की भू-राजस्व व्यवस्था
शेरशाह ने पट्टा एवं कबूलियत की व्यवस्था प्रारंभ की थी, जिसके अनुसार प्रत्येक किसान को सरकार की ओर से एक पट्टा दिया जाता था जिसमें उसके जमीन का क्षेत्रफल एवं अन्य बातों के अलावा लगान का विवरण रहता था। इसके माध्यम से किसान राज्य को लगान देने के लिए प्रतिबद्ध था।
शेरशाह सूरी की भू-राजस्व व्यवस्था को बाद में अकबर के वित्तमंत्री राजा टोडरमल ने और विकसित किया, जिसे 'टोडरमल बंदोबस्त' या 'जब्ती व्यवस्था' के नाम से जाना जाता है।
सूर साम्राज्य में मुद्रा व्यवस्था
शेरशाह सूरी ने प्रचलित मुद्रा व्यवस्था में महत्वपूर्ण सुधार किया था। उसने खराब मुद्राओं को प्रचलन से निकाल दिया तथा कम मूल्य के सिक्कों का प्रचलन शुरू किया। तांबे के सिक्कों को दाम कहा जाता था। शेरशाह ने चांदी के रुपयों को प्रचलन में लाया जो 1835 ईसवी तक चलन में रहा।
- चांदी के एक रुपये की कीमत तांबे के 64 दाम के बराबर थी
- शेरशाह ने 167 ग्रेन के सोने का सिक्का भी चलवाया, जिन्हें अशर्फी कहा जाता था
- चांदी के सिक्कों का वजन 180 ग्रेन था जिसमे 173 ग्रेन विशुद्ध चांदी थी
- सिक्के गोलाकार और चौकोर होते थे तथा उन पर अरबी, फारसी तथा देवनागरी लिपियों में शेरशाह के नाम खुदे रहते थे
शेरशाह के स्थापत्य योगदान
शेरशाह सूरी ने अपने संक्षिप्त शासनकाल में कई महत्वपूर्ण स्थापत्य कार्य करवाए:
- शेरशाह का मकबरा (सासाराम, बिहार) - भारतीय-इस्लामिक वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना
- पुराना किला (दिल्ली) - दिल्ली का सबसे पुराना किला
- किला-ए-कुहना मस्जिद (दिल्ली) - 1545 ई. में निर्मित
- रोहतासगढ़ किला (बिहार) - रक्षात्मक दुर्ग
शेरशाह की सड़क निर्माण नीति
शेरशाह ने अनेक सड़कों का निर्माण करवाया साथ ही पुरानी सड़कों की मरम्मत करवायी। उनके द्वारा बनवाई गई पूर्वी बंगाल से पेशावर मार्ग (बंगाल में सोनार गाँव से शुरू होकर दिल्ली, लाहौर होती हुई पेशावर तक) 'सड़क-ए-आजम' या 'ग्रैंड ट्रंक रोड' कहलाई। इस सड़क की लंबाई लगभग 2,500 किलोमीटर थी।
शेरशाह सूरी का शासनकाल भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। उनकी प्रशासनिक, आर्थिक और सैन्य सुधारों ने भारत में केंद्रीकृत शासन व्यवस्था की नींव रखी, जिसका लाभ बाद में मुगल सम्राट अकबर को मिला।
UPSC प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा हेतु महत्वपूर्ण तथ्य
| विषय | हुमायूँ | शेरशाह सूरी |
|---|---|---|
| शासनकाल | 1530-1540, 1555-1556 | 1540-1545 |
| राजधानी | दिल्ली/आगरा | दिल्ली/सासाराम |
| प्रमुख युद्ध | चौसा (1539), बिलग्राम (1540) | चौसा (1539), बिलग्राम (1540) |
| मुद्रा प्रणाली | मुगल मुद्रा प्रणाली | रुपया-दाम प्रणाली की शुरुआत |
| स्थापत्य योगदान | दीनपनाह नगर की स्थापना | पुराना किला, शेरशाह का मकबरा |
| योगदान | मुगल साम्राज्य की पुनर्स्थापना | प्रशासनिक सुधार, सड़क निर्माण |
शेरशाह सूरी के प्रशासनिक सुधारों ने भारत में एक केंद्रीकृत प्रशासनिक ढांचे की नींव रखी। उनकी भू-राजस्व व्यवस्था, मुद्रा प्रणाली और सड़क निर्माण नीतियों ने बाद के मुगल शासकों के लिए एक मजबूत आधार तैयार किया।

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