बैंक से तात्पर्य ऐसे संस्था से है जो लोगों से जमा स्वीकार करती है एवं इसके बदले साख निर्माण करके अग्रिम ऋण उपलब्ध कराती है। बैंकों द्वारा विदेशी विपणन में भी वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाती है। बैंकिंग संरचना दो प्रकार की हो सकती है- संगठित बैंकिंग संरचना एवं असंगठित बैंकिंग संरचना। संगठित बैंकिंग संरचना के अंतर्गत भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) तथा अन्य वाणिज्यिक बैंक आते है वही असंगठित बैंकिंग व्यवस्था के अंतर्गत साहूकार तथा महाजन आदि आते है। वे बैंक जो आरबीआई अधिनियम-1934 के दूसरी अनुसूची में सम्मिलित है, उन बैंकों को अनुसूचित बैंक कहते है।
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Banking System in Hindi |
भारत में बैंकिंग संरचना
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI)
- भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना 1 अप्रैल 1935 को 5 करोड़ रुपये की अधिकृत पूंजी के साथ हुई थी, यह भारत का केन्द्रीय बैंक है अर्थात भारत के बैंकों का बैंक अथवा सरकार का बैंक।
- भारतीय रिजर्व बैंक के प्रबंधन एवं निर्देशन का कार्य केन्द्रीय निदेशक मण्डल के माध्यम से किया जाता है।
- इस मण्डल में एक गवर्नर, 4 डिप्टी गवर्नर, एक वित्त मंत्रालय द्वारा नियुक्त सरकारी प्रतिनिधि और भारत सरकार द्वारा नामित 10 ऐसे निदेशक होते है जो वित्तीय क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते है।
- रिजर्व बैंक के चार स्थानीय बोर्ड भी है, जिनके कार्यालय मुंबई, कोलकाता, चेन्नई एवं नई दिल्ली में हैं, रिजर्व बैंक का मुख्यालय मुंबई में है।
भारतीय रिजर्व बैंक के कार्य
- सरकार के बैंक के रूप में कार्य: यह केंद्र एवं राज्य सरकार के बैंकर एवं वित्तीय सलाहकार के रूप में कार्य करता है, यह सरकार के करों से होने वाली आय को जमा करता है।
- साख नियंत्रण: यह वाणिज्यिक बैंकों द्वारा निर्मित साख नियंत्रण करता है। यह विनिमय स्थिरता, मूल्य स्थिरता एवं आर्थिक स्थिरता की पूर्ति करता है।
- आंकड़ों का संकलन एवं प्रकाशन: रिजर्व बैंक विदेशी विनिमय, उत्पादन मूल्य, मुद्रा, साख आदि से संबंधित आंकड़ों का संकलन एवं प्रकाशन करता है।
- नोटों का निर्गमन: रिजर्व बैंक एक रुपये के नोट तथा सिक्कों के अलावा सभी मूल्यों के नोट तथा सिक्के जारी करता है। भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 के अनुसार, एक वित्तीय वर्ष में RBI दस हजार करोड़ रुपये से अधिक नए नोट जारी नहीं कर सकता।
- बैंकों के बैंक के रूप में: भारतीय रिजर्व बैंक अन्य बैंकों के लिए वही कार्य करता है, जो अन्य बैंक अपने ग्राहकों के लिए करते है।
RBI द्वारा साख नियंत्रण एवं तरलता समायोजन
मात्रात्मक उपकरण :
1) बैंक रेट (Bank Rate) :
- वह ब्याज दर जिसपर RBI अपने ग्राहकों (सरकार, बैंक, वित्तीय संस्थानों इत्यादि को) को दीर्घ काल के लिए ऋण उपलब्ध कराता है।
- वाणिज्यिक बैंकों द्वारा बांटे गए विभिन्न प्रकार के ऋणों की ब्याज दरों पर इसका प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है।
2) नकद आरक्षित अनुपात (Cash Reserve Ratio) :
- CRR (Cash Reserve Ratio) भारत में कार्य करने वाले देशी तथा विदेशी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के सकल जमाओं का एक अनुपात है जिसे इन बैंकों को RBI के पास सुरक्षित रखना होता है।
- इस अनुपात को RBI ही तय करता है।
3) सांविधिक तरलता अनुपात (Statutory Liquidity Ratio) :
- SLR (Statutory Liquidity Ratio) भारत में कार्य करने वाले देशी तथा विदेशी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के सकल जमाओं का वह अनुपात है जिसे इन बैंकों को अपने पास ही सुरक्षित रखना होता है।
- इस अनुपात को भी RBI ही तय करता है।
- यह गोल्ड, कैश या सरकारी प्रतिभूतियों के रूप में हो सकता है।
4) रेपो रेट (Repo Rate) :
- वह ब्याज दर जिसपर RBI अपने बैंकों को अल्प काल के लिए ऋण उपलब्ध कराता है।
- भारत में मुद्रा बाज़ार के कॉल मनी बाज़ार (Call Money Market) की ब्याज दर, रेपो रेट पर ही निर्धारित होती है।
5) रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate) :
- वह ब्याज दर जिसपर RBI वाणिज्यिक बैंकों से धन उधार लेता है रिवर्स रेपो रेट कहलाता है।
- इस रेट का आरंभ नवंबर, 1996 में 'तरलता समायोजन सुविधा' के नाम पर किया गया।
- इस व्यवस्था का उद्देश्य बैंकों की आय में वृद्धि करना था साथ ही उन्हे जोखिमों से संरक्षण प्रदान करना था।
6) सीमांत स्थायी सुविधा (Marginal Standing Facility) :
- इसके अंतर्गत भारत में कार्य करने वाले वाणिज्यिक बैंक अपने तरलता आवश्यकताओं के लिए RBI से सीधे उधार ले सकते है।
- उधार की अधिकतम राशि बैंकों के शुद्ध जमाओं का 1% तक हो सकता है। इसमें लगने वाला ब्याज दर उस समय के Repo Rate से भिन्न होती है।
7) खुला बाज़ार प्रचालन (Open Market Operation) :
- OMO (Open Market Operation) एक ऐसा उपकरण है जिसका उपयोग RBI, भारतीय अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति को नियंत्रित करने के लिए करता है।
- इसमें RBI, सरकारी प्रतिभूतियों तथा ट्रेजरी बिलों को खरीदता तथा बेचता है।
- बाज़ार में जब भी तरलता आवश्यकता से अधिक हो जाती है तब RBI, सरकारी प्रतिभूतियों को बैंकों को बेचकर बाज़ार से धन बाहर निकाल लेता है।
गुणात्मक उपकरण :
- साख मापदंड का निर्धारण
- नैतिक दबाव तथा विभेदक ब्याज दर
- साख स्वीकृत योजना
- क्रेडिट मॉनिटरिंग अरेंजमेंट
- मार्जिन अथवा न्यूनतम सीमा निर्धारण
- प्रत्यक्ष कार्यवाही
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Apna UPSC |
लीड बैंक योजना (Lead Bank Scheme)
- 'लीड बैंक योजना' (Lead Bank Scheme), RBI (Reserve Bank of India) द्वारा वर्ष 1969 में गाडगिल समिति की सिफारिश पर आरंभ किया गया था।
- इस योजना में सार्वजनिक क्षेत्र एवं निजी क्षेत्र के बैंकों को विभिन्न जिलों में महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी दी गई।
- लीड बैंक योजना का मुख्य उद्देश्य उस बैंक को आवंटित जिले की अर्थव्यवस्था का सुधार करना था।
- इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक जिले के लिए किसी एक बैंक को 'लीड बैंक' घोषित किया जाता है।
- वह बैंक जिसे उस क्षेत्र में लीड बैंक घोषित किया गया होता है, वो उस जिलें में ऋणों की योजना बनाने, वित्त प्रबंधन करने तथा अन्य विशिष्ट वित्तीय कार्यों के निर्वहन में दूसरे बैंकों की मदद करता है।
- लीड बैंक अपने जिले के बैंकिंग प्रणाली को अच्छे से चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
सेवा क्षेत्र उपागम (Service Sector Approach)
- सेवा क्षेत्र उपागम लीड बैंक स्कीम के कार्य क्षेत्र के अधीन कार्यान्वित किया गया था।
- सेवा क्षेत्र उपागम अर्ध-शहरी (semi-urban) और ग्रामीण (Rural) क्षेत्रों के विकास हेतु 1989 में प्रारम्भ किया गया था।
- सेवा क्षेत्र उपागम का मुख्य उद्देश्य ऋणों में वृद्धि, उत्पादन और आय-स्तर में वृद्धि एवं श्रम शक्ति संसाधन उपलब्ध कराना है।