- Prelims (सामान्य अध्ययन : प्रश्न पत्र - 1)
- Mains (उत्तर प्रदेश सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र - 5)
📌 विषय सूची
- पिछले वर्षों के प्रश्न एवं अभ्यास प्रश्न
- उत्तर प्रदेश का इतिहास
- 1857 की क्रांति से पूर्व एवं पश्चात उत्तर प्रदेश का योगदान
- उत्तर प्रदेश से संबंधित स्वतंत्रता सेनानी एवं प्रसिद्ध व्यक्तित्व
- उत्तर प्रदेश की कला, संस्कृति, वास्तुकला, संग्रहालय, पुरातत्व आदि
- उत्तर प्रदेश में ग्रामीण, शहरी एवं जनजातीय मुद्दे: सामाजिक संरचना
- उत्तर प्रदेश के प्रमुख मेले, त्योहार, लोकनृत्य, संगीत, सामाजिक प्रथाएँ, पर्यटन, साहित्य तथा भाषा/बोली आदि
💭 यूनिट से संबंधित पिछले वर्षों के प्रश्न एवं अभ्यास प्रश्न
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उत्तर प्रदेश का इतिहास
उत्तर प्रदेश : प्राचीन इतिहास
उत्तर प्रदेश के ज्ञात प्राचीन ऐतिहासिक साक्ष्यों में सैन्धव काल एवं वैदिक काल प्रमुख है जबकि यहाँ से प्रागैतिहासिक काल के भी कई जरूरी साक्ष्य मिले हैं उदाहरण के लिए प्रयागराज के बेलन घाटी से, चंदौली के चकिया आदि से अत्यंत महत्वपूर्ण पुरापाषाण कालीन साक्ष्य प्राप्त हुई है, इन सभी साक्ष्यों का अध्ययन हम आगे करेंगे, जो निम्नवत है -
- प्रागैतिहासिक एवं सैंधवकालीन साक्ष्य
- वैदिक कालीन साक्ष्य
प्रागैतिहासिक एवं सैंधवकालीन साक्ष्य
उत्तर प्रदेश में पुरापाषाणकालीन स्थल: प्रमुख साक्ष्य
- बेलन घाटी (सोनभद्र): जी.आर. शर्मा द्वारा खोजा गया सबसे महत्वपूर्ण स्थल, जहाँ निम्न पुरापाषाणकाल से मध्य पुरापाषाणकाल तक के हस्तकुठार, विदारणी जैसे आशुलियाई परंपरा के उपकरण मिले।
- सिंगरौली क्षेत्र: निम्न पुरापाषाणकाल के हस्तकुठार एवं विदारणी उपकरण प्राप्त हुए हैं।
- यमुना नदी घाटी: प्रयागराज के आसपास के क्षेत्रों में पुरापाषाणकालीन उपकरणों के साक्ष्य मिले हैं।
- ललितपुर जिला: बुंदेलखंड के इस क्षेत्र से मध्य पुरापाषाणकाल के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
परीक्षा दृष्टि से महत्वपूर्ण तथ्य
- सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थल: बेलन घाटी (UPPCS में अक्सर पूछा जाता है)
- प्रमुख खोजकर्ता: प्रोफेसर जी.आर. शर्मा
- मुख्य उपकरण: हस्तकुठार (Handaxe) एवं विदारणी (Cleaver)
- सांस्कृतिक चरण: निम्न पुरापाषाणकाल (Lower Paleolithic)
- पुरातात्विक परंपरा: आशुलियाई परंपरा (Acheulian Tradition)
उत्तर प्रदेश में सैंधवकालीन स्थल: प्रमुख साक्ष्य
- आलमगीरपुर (मेरठ): उत्तर प्रदेश का सबसे महत्वपूर्ण सैंधव स्थल, यमुना नदी के किनारे स्थित, यह हड़प्पा सभ्यता का सबसे पूर्वी बस्ती केंद्र था।
- हुलास (सहारनपुर): हिंडन नदी के किनारे बसा यह स्थल हड़प्पा संस्कृति के अंतिम चरण का प्रतिनिधित्व करता है।
- मंडी (मुजफ्फरनगर): यहाँ से हड़प्पा कालीन मिट्टी के बर्तन, मनके और तांबे की वस्तुएं प्राप्त हुई हैं।
- बड़ागाँव (बुलंदशहर): गंगा-यमुना दोआब क्षेत्र में स्थित यह स्थल देर से हड़प्पा काल का प्रतिनिधित्व करता है।
सैंधवकाल: परीक्षा दृष्टि से महत्वपूर्ण तथ्य
- सबसे महत्वपूर्ण स्थल: आलमगीरपुर (मेरठ जिला)
- विशेष महत्व: हड़प्पा सभ्यता का पूर्वीतम बस्ती केंद्र
- प्रमुख साक्ष्य: मिट्टी के बर्तन, तांबे की वस्तुएं, मनके और सील
- काल: परिपक्व हड़प्पा काल (2600-1900 BCE)
- भौगोलिक स्थिति: यमुना नदी के किनारे स्थित
वैदिक कालीन साक्ष्य
- ऋग्वैदिक काल (1500-1000 ई.पू.): इस काल का एकमात्र प्रमाण ऋग्वेद है। आर्यों का निवास सप्तसिंधु (सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों का क्षेत्र) में था। पुरातात्विक दृष्टि से इसे गेरूए रंग के मिट्टी के बर्तन (Ochre Coloured Pottery - OCP) संस्कृति से जोड़कर देखा जाता है, हालांकि यह प्रत्यक्ष संबंध निश्चित नहीं है। समाज कबीलाई (जन/विश) संरचना पर आधारित था।
- उत्तर वैदिक काल (1000-600 ई.पू.): इस काल में आर्यों का विस्तार गंगा-यमुना के दोआब में हुआ। सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और ब्राह्मण ग्रंथ (जैसे- शतपथ ब्राह्मण) की रचना हुई। यह काल चित्रित धूसर मृदभांड (Painted Grey Ware - PGW) संस्कृति से स्पष्ट रूप से जुड़ा हुआ है, जो कुरु, पंचाल जैसे प्रारंभिक राज्यों के अस्तित्व का संकेत देती है। इसी युग में वर्ण व्यवस्था जटिल हुई और बड़े राज्यों (महाजनपदों) की नींव पड़ी।
महाजनपद काल एवं उनके क्षेत्र एवं राजधानियाँ
| क्रम सं. | महाजनपद | राजधानी | वर्तमान क्षेत्र |
|---|---|---|---|
| 1 | अंग | चंपा | भागलपुर और मुंगेर (बिहार) |
| 2 | मगध | राजगृह (बाद में पाटलिपुत्र) | पटना और गया (बिहार) |
| 3 | काशी | वाराणसी | वाराणसी (उत्तर प्रदेश) |
| 4 | कोशल | श्रावस्ती | अवध क्षेत्र (उत्तर प्रदेश) |
| 5 | वज्जि | वैशाली | उत्तरी बिहार |
| 6 | मल्ल | कुशीनगर और पावा | देवरिया (उत्तर प्रदेश) |
| 7 | चेदि | शुक्तिमती | बुंदेलखंड (उत्तर प्रदेश) |
| 8 | वत्स | कौशाम्बी | इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) |
| 9 | कुरु | इंद्रप्रस्थ | दिल्ली और मेरठ क्षेत्र |
| 10 | पांचाल | अहिच्छत्र और काम्पिल्य | रोहिलखंड (उत्तर प्रदेश) |
| 11 | मत्स्य | विराटनगर | जयपुर (राजस्थान) |
| 12 | शूरसेन | मथुरा | मथुरा (उत्तर प्रदेश) |
| 13 | अश्मक | पोतन या पोटली | गोदावरी घाटी |
| 14 | अवन्ति | उज्जयिनी और महिष्मति | मालवा (मध्य प्रदेश) |
| 15 | गांधार | तक्षशिला | रावलपिंडी और पेशावर |
| 16 | कम्बोज | राजपुर / हाटक | राजौरी और हजारा जिला |
📌 उत्तर प्रदेश से संबंधित महाजनपद
बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म (उत्तर प्रदेश के परिपेक्ष्य में)
उत्तर प्रदेश भारत का एक ऐसा राज्य है जहाँ बौद्ध और जैन धर्म का गहरा ऐतिहासिक संबंध रहा है। यहाँ के कई शहर इन धर्मों के विकास और प्रसार के महत्वपूर्ण केंद्र रहे हैं।
बौद्ध धर्म
उत्तर प्रदेश में बौद्ध धर्म का इतिहास
बौद्ध धर्म की स्थापना गौतम बुद्ध ने की थी, जिनका जन्म लुम्बिनी (वर्तमान नेपाल) में हुआ था, जो उत्तर प्रदेश की सीमा के निकट है। उन्होंने उत्तर प्रदेश के कई स्थानों पर उपदेश दिए।
महत्वपूर्ण बौद्ध स्थल
- सारनाथ - वाराणसी के पास स्थित, यह वह स्थान है जहाँ बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था
- कुशीनगर - यहाँ भगवान बुद्ध ने महापरिनिर्वाण प्राप्त किया
- श्रावस्ती - बुद्ध ने यहाँ कई महत्वपूर्ण उपदेश दिए
- कौशाम्बी - प्राचीन काल में एक महत्वपूर्ण बौद्ध केंद्र
- संकिसा - बुद्ध के स्वर्ग से अवतरित होने का स्थान
जैन धर्म
उत्तर प्रदेश में जैन धर्म का इतिहास
जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का उत्तर प्रदेश से गहरा संबंध रहा है। उन्होंने राज्य के कई हिस्सों में अपने उपदेश दिए और जैन धर्म का प्रसार किया।
महत्वपूर्ण जैन स्थल
- श्रावस्ती - भगवान महावीर ने यहाँ कई वर्षों तक उपदेश दिए
- कौशाम्बी - प्राचीन जैन केंद्र
- मथुरा - जैन धर्म का प्रमुख केंद्र, कई प्राचीन जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध
- वाराणसी - जैन तीर्थंकरों से संबंधित स्थल
- देवगढ़ - प्रसिद्ध जैन मंदिर परिसर
बौद्ध और जैन धर्म में समानताएँ
| विशेषता | बौद्ध धर्म | जैन धर्म |
|---|---|---|
| उत्पत्ति | भगवान बुद्ध | भगवान महावीर |
| मुख्य सिद्धांत | अहिंसा, मध्यम मार्ग | अहिंसा, त्रिरत्न |
| मोक्ष का मार्ग | अष्टांगिक मार्ग | त्रिरत्न (सम्यक दर्शन, ज्ञान, चरित्र) |
| उत्तर प्रदेश में प्रभाव | व्यापक, विशेषकर पूर्वी उत्तर प्रदेश में | व्यापक, विशेषकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में |
📌 संख्यात्मक महत्व
प्राचीन ग्रंथों से उद्धरण
- प्रज्ञापारमिता हृदय सूत्र - "रूपं शून्यता शून्यतैव रूपं"
- तीर्थंकर परंपरा - 24 तीर्थंकरों का क्रम
- ध्यान और साधना - मन की एकाग्रता के मार्ग
- अहिंसा परमो धर्म - सभी प्राणियों के प्रति करुणा
- कार्मिक सिद्धांत - कर्म के नियम
- मोक्ष मार्ग - मुक्ति का पथ
- शील, समाधि, प्रज्ञा - त्रिरत्न
- अष्टांग मार्ग - आठ पथ
दार्शनिक अवधारणाएँ
- अहिंसा - सभी प्राणियों के प्रति अहिंसा का भाव
- अनेकांतवाद - बहुअवयवी दृष्टिकोण
- मध्यम मार्ग - अति से बचने का मार्ग
- शून्यता - निर्वाण की अवधारणा
- कर्म सिद्धांत - कर्म के नियम
- त्रिरत्न - तीन रत्नों का मार्ग
- अष्टांगिक मार्ग - आठ पथों का अनुसरण
सांस्कृतिक विरासत
उत्तर प्रदेश में बौद्ध और जैन धर्म की समृद्ध विरासत आज भी देखी जा सकती है। इन धर्मों ने राज्य की कला, स्थापत्य, साहित्य और दर्शन को गहराई से प्रभावित किया है। राज्य सरकार ने इन धार्मिक स्थलों के संरक्षण और विकास के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं।
कुषाण वंश
कुषाण वंश एक प्रमुख शक्तिशाली साम्राज्य था जिसने प्रथम से तीसरी शताब्दी ईस्वी तक मध्य एशिया और उत्तरी भारत पर शासन किया।
कुषाण वंश का उदय और विस्तार
कुषाण वंश की स्थापना कुजुल कडफिसेस ने की थी। यह वंश यूची जनजाति से संबंधित था जो मूल रूप से मध्य एशिया की थी।
प्रमुख शासक
- कुजुल कडफिसेस (लगभग 30-80 ईस्वी)
- विम कडफिसेस (लगभग 80-90 ईस्वी)
- कनिष्क प्रथम (लगभग 127-150 ईस्वी)
- हुविष्क (लगभग 150-180 ईस्वी)
- वासुदेव प्रथम (लगभग 190-230 ईस्वी)
कनिष्क का शासनकाल
कनिष्क कुषाण वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक था। उसने एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया जो मध्य एशिया से लेकर उत्तरी भारत तक फैला हुआ था।
कनिष्क की उपलब्धियाँ
- बौद्ध धर्म का संरक्षण और प्रसार
- चौथी बौद्ध संगीति का आयोजन
- गांधार कला का विकास
- स्वर्ण मुद्राओं का प्रचलन
- मथुरा कला शैली को प्रोत्साहन
कुषाण साम्राज्य का सांस्कृतिक योगदान
कुषाण वंश ने भारतीय संस्कृति, कला और धर्म में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
कला और स्थापत्य
- गांधार कला शैली का विकास
- मथुरा कला शैली को संरक्षण
- बुद्ध की मानव रूप में मूर्तियाँ
- स्तूपों और विहारों का निर्माण
धार्मिक सहिष्णुता
- बौद्ध धर्म का संरक्षण
- हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ
- जरथुस्त्र धर्म का प्रभाव
- विभिन्न धर्मों का समन्वय
आर्थिक व्यवस्था
कुषाण साम्राज्य की अर्थव्यवस्था काफी मजबूत थी और इसने व्यापार को बहुत प्रोत्साहन दिया।
व्यापार मार्ग
- रेशम मार्ग पर नियंत्रण
- समुद्री व्यापार का विकास
- रोमन साम्राज्य के साथ व्यापार
- चीन के साथ व्यापारिक संबंध
मुद्रा व्यवस्था
- स्वर्ण मुद्राओं का प्रचलन
- तांबे और चांदी की मुद्राएँ
- यूनानी और भारतीय लिपि का प्रयोग
- विभिन्न धार्मिक प्रतीक
कुषाण वंश का पतन
तीसरी शताब्दी ईस्वी में कुषाण साम्राज्य का पतन शुरू हुआ और अंततः यह छोटे-छोटे राज्यों में बंट गया।
पतन के कारण
- कमजोर उत्तराधिकारी
- सासानी साम्राज्य का दबाव
- आंतरिक कलह
- आर्थिक समस्याएँ
ऐतिहासिक महत्व
कुषाण वंश ने भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इसकी विरासत आज भी देखी जा सकती है।
विरासत
- भारत-यूनानी कला का विकास
- बौद्ध धर्म का मध्य एशिया में प्रसार
- व्यापार मार्गों का विस्तार
- सांस्कृतिक समन्वय की परंपरा
गुप्त वंश: उत्तर प्रदेश के परिपेक्ष्य में
गुप्त वंश का उदय और विस्तार
गुप्त वंश का उदय तीसरी शताब्दी ईस्वी में उत्तर प्रदेश के मगध क्षेत्र में हुआ। इस वंश ने भारत के स्वर्ण युग की शुरुआत की।
प्रमुख गुप्त शासक
- श्री गुप्त - गुप्त वंश के संस्थापक
- घटोत्कच गुप्त - द्वितीय शासक
- चंद्रगुप्त प्रथम - महान सम्राट, लिच्छवी राजकुमारी कुमारदेवी से विवाह
- समुद्रगुप्त - 'भारत का नेपोलियन' कहलाया
- चंद्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) - गुप्त साम्राज्य का स्वर्ण काल
- कुमारगुप्त - साम्राज्य का विस्तार जारी रखा
- स्कंदगुप्त - हूणों के आक्रमण को रोका
उत्तर प्रदेश में गुप्त काल के महत्वपूर्ण स्थल
- प्रयागराज (इलाहाबाद) - प्रयाग प्रशस्ति स्तंभ
- वाराणसी - शिक्षा और संस्कृति का केंद्र
- अयोध्या - धार्मिक महत्व
- मथुरा - कला और मूर्तिकला का केंद्र
- कौशाम्बी - व्यापारिक केंद्र
सैदपुर (गाजीपुर) का भीतरी अभिलेख
महत्वपूर्ण तथ्य:
- सैदपुर गाँव (गाजीपुर जिला) में स्थित
- स्कंदगुप्त के शासनकाल का प्रमाण
- गुप्त लिपि में उत्कीर्ण
- प्रशासनिक व्यवस्था की जानकारी
- स्थानीय शासन प्रणाली का वर्णन
स्कंदगुप्त का योगदान
- हूणों के आक्रमण को सफलतापूर्वक रोका
- गुप्त साम्राज्य की रक्षा की
- भितरी स्तंभ लेख में उल्लेख
- सुदृढ़ प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित की
- साम्राज्य की आर्थिक स्थिरता बनाए रखी
गुप्त काल की सांस्कृतिक उपलब्धियाँ
- साहित्य: कालिदास, विशाखदत्त, शूद्रक
- विज्ञान: आर्यभट्ट, वराहमिहिर
- कला: अजंता की गुफाएँ, मथुरा कला
- वास्तुकला: देवगढ़ मंदिर, भितरगाँव मंदिर
- सिक्के: स्वर्ण मुद्राएँ (दीनार)
गुप्त प्रशासनिक व्यवस्था
| पद | उत्तरदायित्व |
|---|---|
| महादंडनायक | सेनापति |
| सन्धिविग्रहिक | विदेश मंत्री |
| कुमारामात्य | प्रशासनिक अधिकारी |
| विषयपति | जिला अधिकारी |
परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण तथ्य
- गुप्त वंश की स्थापना - 275 ईस्वी
- राजधानी - पाटलिपुत्र
- प्रमुख भाषा - संस्कृत
- धर्म - हिन्दू धर्म (वैष्णव संप्रदाय)
- स्वर्ण युग - चंद्रगुप्त द्वितीय का काल
- अंतिम शक्तिशाली शासक - स्कंदगुप्त
- गुप्त संवत - 319 ईस्वी में शुरू
महत्वपूर्ण अभिलेख और स्तंभ
- इलाहाबाद स्तंभ लेख - समुद्रगुप्त की उपलब्धियाँ
- भितरी स्तंभ लेख - स्कंदगुप्त का विवरण
- सैदपुर अभिलेख - स्थानीय प्रशासन
- मंदसौर अभिलेख - वात्स्यायन का उल्लेख
आर्थिक व्यवस्था
- कृषि आधारित अर्थव्यवस्था
- व्यापार और वाणिज्य का विकास
- सोने के सिक्कों का प्रचलन
- ग्रामीण स्वशासन व्यवस्था
- जल कर और भू कर का संग्रह
उत्तर प्रदेश : मध्यकालीन इतिहास
मध्यकालीन भारत के इतिहास का मुख्य रूप से प्रारंभ दिल्ली सल्तनत के आगमन से माना जाता है जब पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गोरी के बीच तराईंन का संघर्ष शुरू हुआ। 1194 ईसवी में दिल्ली सल्तनत के नींव से लेकर 1857 ईसवी के क्रांति तक जब मुग़ल वंश के शासक बहादुरशाह ज़फ़र का शासन था, अर्थात लगभग 660 वर्षों का इतिहास भारत और उत्तर भारत के मध्यकालीन इतिहास के अंतर्गत माना जाता है।
वस्तुतः प्रारंभिक मध्यकाल 800-1200 ईस्वी तक माना जाता है, इस काल खंड मे उत्तर प्रदेश के दृष्टिकोण से गुर्जर-प्रतिहार वंश प्रमुख राजवंशों में से एक था। इस कालखंड में राष्ट्रकूट वंश का भी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र में प्रभाव था।
प्रारंभिक मध्यकाल (800-1200 ईस्वी)
गुर्जर-प्रतिहार वंश
- कन्नौज को राजधानी बनाया
- मिहिर भोज (836-885 ईस्वी) - सबसे शक्तिशाली शासक
- अरब आक्रमणकारियों को रोका
- उत्तर प्रदेश में मंदिर निर्माण को बढ़ावा
राष्ट्रकूट वंश का प्रभाव
- दक्षिण से उत्तर भारत पर आक्रमण
- कन्नौज पर अधिकार के लिए संघर्ष
दिल्ली सल्तनत काल (1206-1526 ईस्वी)
गुलाम वंश (1206-1290 ईस्वी)
- कुतुबुद्दीन ऐबक - प्रथम सुल्तान
- इल्तुतमिश - केंद्रीय शक्ति का विस्तार
- बलबन - सैन्य शक्ति का विकास
- उत्तर प्रदेश में प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित
खिलजी वंश (1290-1320 ईस्वी)
- अलाउद्दीन खिलजी - आर्थिक सुधार
- बाजार नियंत्रण व्यवस्था लागू
- सैन्य संगठन में सुधार
तुगलक वंश (1320-1414 ईस्वी)
- मुहम्मद बिन तुगलक - राजधानी दिल्ली से दौलताबाद स्थानांतरित
- फिरोज शाह तुगलक - जनकल्याणकारी कार्य
- नहरों और बागों का निर्माण
सैय्यद और लोदी वंश (1414-1526 ईस्वी)
- बहलोल लोदी - अफगान शक्ति का उदय
- सिकंदर लोदी - आगरा शहर की स्थापना
- इब्राहिम लोदी - पानीपत की पहली लड़ाई (1526)
मुगल काल (1526-1857 ईस्वी)
प्रारंभिक मुगल काल
- बाबर - पानीपत की पहली लड़ाई (1526)
- हुमायूँ - शेरशाह सूरी से संघर्ष
- शेरशाह सूरी - प्रशासनिक सुधार, ग्रैंड ट्रंक रोड
मुगल साम्राज्य का स्वर्ण काल
- अकबर - फतेहपुर सीकरी की स्थापना
- जहाँगीर - कला और संस्कृति का विकास
- शाहजहाँ - ताजमहल का निर्माण
- औरंगजेब - धार्मिक नीतियाँ
मुगल साम्राज्य का पतन
- क्षेत्रीय शक्तियों का उदय
- अवध के नवाब
- रोहिल्ला शक्ति
- जाट विद्रोह
क्षेत्रीय राज्यों का उदय
| राज्य | संस्थापक | राजधानी | महत्व |
|---|---|---|---|
| अवध | सआदत खान | फैजाबाद/लखनऊ | सांस्कृतिक केंद्र |
| रोहिलखंड | अली मुहम्मद खान | बरेली | अफगान शक्ति |
| फर्रुखाबाद | मुहम्मद खान | फर्रुखाबाद | व्यापारिक केंद्र |
सांस्कृतिक विकास
स्थापत्य कला
- इंडो-इस्लामिक वास्तुकला: कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद, अटाला मस्जिद
- मुगल वास्तुकला: ताजमहल, आगरा का किला, फतेहपुर सीकरी
- अवधी वास्तुकला: बड़ा इमामबाड़ा, छोटा इमामबाड़ा
साहित्यिक विकास
- संस्कृत: विद्यापति, केशवदास
- हिंदी/अवधी: कबीर, तुलसीदास, सूरदास
- फारसी: अमीर खुसरो, अबुल फजल
- उर्दू: मीर तकी मीर, मिर्जा गालिब
परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण तथ्य
| वर्ष | घटना | महत्व |
|---|---|---|
| 1192 | तराइन का द्वितीय युद्ध | मुहम्मद गोरी की जीत |
| 1206 | दिल्ली सल्तनत की स्थापना | कुतुबुद्दीन ऐबक प्रथम सुल्तान |
| 1526 | पानीपत का प्रथम युद्ध | बाबर ने इब्राहिम लोदी को हराया |
| 1540 | कन्नौज का युद्ध | शेरशाह सूरी ने हुमायूँ को हराया |
| 1569 | फतेहपुर सीकरी की स्थापना | अकबर द्वारा |
| 1658 | सामूगढ़ का युद्ध | औरंगजेब ने दारा शिकोह को हराया |
आर्थिक व्यवस्था
- कृषि: गेहूँ, चावल, गन्ना मुख्य फसलें
- व्यापार: ग्रैंड ट्रंक रोड व्यापार मार्ग
- उद्योग: सूती वस्त्र, रेशम, शस्त्र निर्माण
- कर व्यवस्था: जकात, खराज, जजिया कर
सामाजिक जीवन
- हिंदू-मुस्लिम सांस्कृतिक संश्लेषण
- भक्ति और सूफी आंदोलन का प्रभाव
- जाति व्यवस्था में परिवर्तन
- शिक्षा के नए केंद्रों का विकास
- उर्दू भाषा का विकास
इलाहाबाद की संधि
- इलाहाबाद की प्रथम संधि (12 अगस्त 1765) : यह संधि मुग़ल सम्राट शाह आलम द्वितीय एवं रॉबर्ट क्लाइव के मध्य हुआ था।
- इलाहाबाद की द्वितीय संधि (16 अगस्त 1765) : यह संधि अवध के नवाब शुजाऊद्दौला एवं रॉबर्ट क्लाइव के बीच हुआ था।
उत्तर प्रदेश : आधुनिक इतिहास
प्रमुख ऐतिहासिक घटनाएँ
- मेरठ: 10 मई को विद्रोह की शुरुआत
- लखनऊ: बेगम हजरत महल का नेतृत्व
- झाँसी: रानी लक्ष्मीबाई का शौर्य
- कानपुर: नाना साहब व तात्या टोपे
- बंग-भंग विरोधी आंदोलन में सक्रिय भागीदारी
- विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार
- कांग्रेस-मुस्लिम लीग एकता
- एनी बेसेंट की महत्वपूर्ण भूमिका
- चौरी-चौरा कांड (5 फरवरी 1922)
- गोरखपुर जिले का ऐतिहासिक घटनाक्रम
- महात्मा गांधी द्वारा आंदोलन स्थगन
- नमक सत्याग्रह में जनभागीदारी
- करौली कांड (1931) - इटावा
- सम्पूर्ण प्रदेश में व्यापक प्रतिक्रिया
- विद्यार्थियों, किसानों, महिलाओं की सक्रियता
प्रमुख व्यक्तित्व
मोतीलाल नेहरू
इलाहाबाद • स्वराज पार्टी संस्थापक • 'इंडिपेंडेंट' अखबार
पुरुषोत्तम दास टंडन
इलाहाबाद • हिन्दी भाषा आंदोलन • कांग्रेस नेता
गोविंद बल्लभ पंत
यूपी के प्रथम मुख्यमंत्री • भारत के गृह मंत्री
चन्द्रभानु गुप्त
तीन बार मुख्यमंत्री • कांग्रेस संगठनकर्ता
राम प्रसाद बिस्मिल
काकोरी कांड • क्रांतिकारी लेखक • 'सरफ़रोशी की तमन्ना'
अशफाक उल्लाह खाँ
काकोरी कांड • हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन
चंद्रशेखर आजाद
इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में शहादत
मदन मोहन मालवीय
बीएचयू संस्थापक • 'अभ्युदय' पत्र • हिन्दू महासभा
महत्वपूर्ण संस्थान एवं संगठन
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (1916)
मदन मोहन मालवीय द्वारा स्थापना • शिक्षा का राष्ट्रवादी केन्द्र
इलाहाबाद उच्च न्यायालय (1866)
उत्तर भारत का प्रमुख न्यायिक केन्द्र • स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय
सर सैयद अहमद खाँ द्वारा स्थापना • आधुनिक शिक्षा का केन्द्र
हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन
चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह • क्रांतिकारी गतिविधियों का केन्द्र
मुख्य परीक्षा हेतु विश्लेषणात्मक बिन्दु
सामाजिक-सांस्कृतिक पुनर्जागरण
उत्तर प्रदेश में 19वीं शताब्दी के सुधार आंदोलनों का राष्ट्रीय आंदोलन पर प्रभाव
किसान आंदोलन
अवध किसान सभा (1920) • बाबा रामचन्द्र का नेतृत्व • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
संवैधानिक विकास
1909, 1919, 1935 के अधिनियमों का प्रदेश पर प्रभाव • प्रांतीय स्वायत्तता
सांप्रदायिक सद्भाव
लखनऊ समझौता (1916) • संयुक्त प्रांत में हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रयास
महिलाओं की भूमिका
बेगम हजरत महल से लेकर स्वतंत्रता संग्राम तक महिलाओं का योगदान
प्रेस एवं साहित्य
'प्रताप' (गणेश शंकर विद्यार्थी), 'अभ्युदय' (मालवीय) की भूमिका
ऐतिहासिक स्थलों का महत्व
लखनऊ
अवध की राजधानी • 1857 का केन्द्र • लखनऊ समझौता
इलाहाबाद
नेहरू परिवार का गढ़ • उच्च न्यायालय • कुम्भ मेला
वाराणसी
बीएचयू • सांस्कृतिक व धार्मिक केन्द्र
झाँसी
रानी लक्ष्मीबाई का किला • 1857 की वीरगाथा
काकोरी
काकोरी कांड (9 अगस्त 1925) • क्रांतिकारी गतिविधि
चौरी-चौरा
गोरखपुर • असहयोग आंदोलन का निर्णायक मोड़


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