मौर्य साम्राज्य: प्राचीन भारत का स्वर्णिम युग

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मौर्य साम्राज्य के प्रमुख शासक और प्रशासन

मौर्य साम्राज्य: प्राचीन भारत का स्वर्णिम युग

"मौर्य साम्राज्य ने न केवल भारतीय उपमहाद्वीप को राजनीतिक रूप से एकीकृत किया, बल्कि प्रशासन, कला और संस्कृति के क्षेत्र में नई ऊँचाइयाँ स्थापित कीं।"

मौर्यों की उत्पत्ति

छठी शताब्दी ईसा पूर्व का संघर्ष

अवंती, कोसल और मगध के बीच महाजनपदों के क्षेत्रीय विस्तार के लिए संघर्ष छिड़ गया। अंततः मगध विजयी हुआ और भारतीय उपमहाद्वीप का शक्तिशाली केंद्र बना।

नंद वंश का अंत

नंद शासन के पतन के बाद, शक्तिशाली मौर्य राजवंश ने मगध के सिंहासन पर अधिकार जमाया, जिसने भारतीय इतिहास में केंद्रीय भूमिका निभाई।

उत्तर पश्चिम की स्थिति

अलेक्जेंडर के आक्रमण के बाद उत्तर-पश्चिमी भारत में राजनीतिक अस्थिरता थी, जिससे मौर्यों को सत्ता विस्तार का अवसर मिला।

चाणक्य की रणनीति

चाणक्य ने राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य रणनीतियों के माध्यम से मौर्यों के उदय में निर्णायक भूमिका निभाई, जिसे उन्होंने 'अर्थशास्त्र' में संकलित किया।

चंद्रगुप्त और चाणक्य

चंद्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य की सहायता से नंद वंश को उखाड़ फेंका और मौर्य साम्राज्य की नींव रखी। चाणक्य, जिन्हें कौटिल्य और विष्णुगुप्त भी कहा जाता है, ने प्रशासनिक और कूटनीतिक नीतियों से साम्राज्य को सुदृढ़ किया।

स्रोत मौर्य उत्पत्ति का विवरण
बौद्ध दृष्टिकोण मौर्य शाक्य वंश से जुड़े थे और मोरों से भरे क्षेत्र में रहते थे।
जैन विचार चंद्रगुप्त मोरिय जनजाति से थे, जिनका संबंध पर्वतीय क्षेत्रों से था।
ब्राह्मणवादी विचार मौर्यों को शूद्र वर्ण से संबंधित बताया गया।
ग्रीक दृष्टिकोण ग्रीक लेखकों ने उन्हें साधारण मूल का बताया और सैंड्रोकोटस नाम से वर्णित किया।
आधुनिक इतिहासकार मौर्यों की उत्पत्ति को मिश्रित सांस्कृतिक पृष्ठभूमि और राजनीतिक परिस्थितियों का परिणाम मानते हैं।

मौर्य शासकों की सूची (List of Maurya Emperors)

संख्या शासक शासन काल
1 चन्द्रगुप्त मौर्य 322 ईसा पूर्व - 298 ईसा पूर्व
2 बिन्दुसार 298 ईसा पूर्व - 272 ईसा पूर्व
3 अशोक 273 ईसा पूर्व - 232 ईसा पूर्व
4 दशरथ मौर्य 232 ईसा पूर्व - 224 ईसा पूर्व
5 सम्प्रति मौर्य 224 ईसा पूर्व - 215 ईसा पूर्व
6 शालिसुक 215 ईसा पूर्व - 202 ईसा पूर्व
7 देववर्मन 202 ईसा पूर्व - 195 ईसा पूर्व
8 शतधन्वन मौर्य 195 ईसा पूर्व - 187 ईसा पूर्व
9 बृहद्रथ 187 ईसा पूर्व - 185 ईसा पूर्व

मौर्य शासक

1

चंद्रगुप्त मौर्य (322-298 ईसा पूर्व)

25 वर्ष की आयु में, चन्द्रगुप्त ने अंतिम नंद शासक धनानंद को उखाड़ फेंका और 321 ईसा पूर्व में चाणक्य की सहायता से पाटलिपुत्र पर कब्जा किया। उन्होंने मौर्य साम्राज्य की नींव रखी और इसे भारतीय इतिहास के पहले व्यापक साम्राज्य के रूप में स्थापित किया।

  • 25 वर्ष की आयु में अंतिम नंद शासक धनानंद को उखाड़ फेंका और 321 ईसा पूर्व में चाणक्य की सहायता से पाटलिपुत्र पर कब्जा किया।
  • मौर्य साम्राज्य की नींव रखी — भारतीय इतिहास का पहला व्यापक साम्राज्य।
  • 305 ईसा पूर्व में सेल्यूकस निकेटर को हराकर पश्चिमोत्तर प्रदेशों पर अधिकार किया।
  • सेल्यूकस के साथ संधि — 500 हाथियों के बदले में अफगानिस्तान और बलूचिस्तान के कुछ भाग प्राप्त किए।
  • सुदर्शन झील का निर्माण — सिंचाई और जल प्रबंधन का महत्वपूर्ण उदाहरण।
  • प्रशासनिक सुधार — चाणक्य के ‘अर्थशास्त्र’ के सिद्धांतों पर आधारित शासन।
  • राजधानी — पाटलिपुत्र।
  • जैन धर्म ग्रहण कर श्रवणबेलगोला में अंतिम समय व्यतीत किया।
  • विशाखदत्त ने 4वीं-5वीं शताब्दी में 'मुद्राराक्षस' नाटक की रचना की, जिसमें चन्द्रगुप्त द्वारा मगध का राजसिंहासन प्राप्त करने और मौर्य वंश की स्थापना का वर्णन है।
  • ‘मुद्राराक्षस’ से नंद वंश के पतन एवं मौर्य साम्राज्य की नींव के बारे में जानकारी मिलती है।
  • इस ग्रंथ में चन्द्रगुप्त को 'वृषल' की संज्ञा दी गई है।
  • यूनानी लेखकों ने चन्द्रगुप्त को 'एंड्रॉकोटस' एवं 'सेंड्रॉकोटस' नामों से अभिहित किया।
  • यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर का दूत मेगस्थनीज चन्द्रगुप्त के दरबार में आया था।
  • मेगस्थनीज का ग्रंथ 'इंडिका' मौर्य काल की आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था का विवरण प्रस्तुत करता है।
  • मेगस्थनीज के अनुसार मौर्य काल में शांति एवं समृद्धि व्याप्त थी, जनता आत्मनिर्भर थी।
  • समाज को सात वर्गों में विभाजित बताया, दास प्रथा का अभाव और अकाल न पड़ने का उल्लेख किया।
  • भारतीय, यूनानी देवताओं डायनोसस एवं हेराक्लीज की पूजा करते थे, जिसका तात्पर्य भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण की पूजा से है।
2

बिंदुसार (298-273 ईसा पूर्व)

चंद्रगुप्त मौर्य के पुत्र और उत्तराधिकारी, जिन्हें यूनानी स्रोतों में अमित्रोचेट्स तथा चीनी ग्रंथों में बिंदुपाल कहा गया है। उन्होंने साम्राज्य का सफलतापूर्वक विस्तार किया और इसे स्थिर बनाए रखा।

  • चंद्रगुप्त मौर्य के पुत्र और उत्तराधिकारी।
  • यूनानी स्रोतों में अमित्रोचेट्स, चीनी ग्रंथों में बिंदुपाल और अन्य नामों में अमित्रघात (शत्रु विनाशक), मद्रसार तथा सिंहसेन से प्रसिद्ध।
  • आजीवक संप्रदाय के अनुयायी, जिसमें कर्म की पूर्ण रूप से अवहेलना की जाती थी।
  • अपने शासनकाल में 16 राज्यों पर विजय प्राप्त की, केवल कलिंग मौर्यों के अधीन नहीं आया।
  • सीरिया के एंटिओकस प्रथम के साथ अच्छे कूटनीतिक और व्यापारिक संबंध स्थापित किए।
  • एंटिओकस ने इनके दरबार में डाईमेकस नामक दूत भेजा।
  • बिंदुसार ने एंटिओकस से मदिरा, सूखा अंजीर और दार्शनिक भेजने की माँग की, लेकिन केवल मदिरा और सूखा अंजीर भेजा गया, दार्शनिक नहीं।
  • तक्षशिला विद्रोह को दबाया और वहाँ शांति बहाल की।
  • दिव्यावदान के अनुसार, तक्षशिला का विद्रोह उनके पुत्र अशोक ने दबाया, जो उस समय उज्जैन का वायसराय था।
  • मौर्य प्रशासन को अधिक संगठित किया तथा कर व्यवस्था को सुदृढ़ किया।
  • विदेश नीति में "मित्र राज्यों" और "शत्रु राज्यों" की स्पष्ट रणनीति अपनाई।
  • धार्मिक सहिष्णुता बनाए रखी, जिससे विविध सांस्कृतिक क्षेत्रों का एकीकरण हुआ।
  • तिब्बत के बौद्ध संन्यासी तारानाथ के अनुसार, दो महासागरों के बीच की भूमि (प्रायद्वीपीय भारत) को जीतने वाला शासक।
3

अशोक (273-232 ईसा पूर्व)

मौर्य साम्राज्य का सबसे महान और प्रसिद्ध शासक, जिसने कलिंग युद्ध के बाद हिंसा त्यागकर बौद्ध धर्म अपनाया और "धम्म" के सिद्धांतों पर शासन किया।

  • मौर्य साम्राज्य का सबसे महान और प्रसिद्ध शासक।
  • राज्याभिषेक — 269 ईसा पूर्व।
  • राज्याभिषेक के 8 वर्ष बाद (261 ईसा पूर्व) कलिंग पर आक्रमण किया।
  • कलिंग युद्ध में लाखों लोग मारे गए; नरसंहार से विचलित होकर हिंसा त्याग दी।
  • भेरी घोष (युद्ध) को त्यागकर धम्म घोष (शांति) को अपनाया।
  • उपगुप्त के नेतृत्व में बौद्ध धर्म को अपनाया।
  • धम्म नीति का प्रचार — अहिंसा, धार्मिक सहिष्णुता, प्रजा-कल्याण।
  • संपूर्ण भारत में स्तंभ एवं शिलालेख स्थापित किए; ब्राह्मी लिपि का प्रयोग।
  • तृतीय बौद्ध संगीति (पाटलिपुत्र, 250 ईसा पूर्व) का आयोजन; अध्यक्ष — मोगलिपुत्त तिस्स
  • बौद्ध धर्म के प्रसार हेतु मिशन श्रीलंका, दक्षिण भारत, वर्मा, मध्य एशिया, मिस्र और ग्रीक राज्यों तक भेजे।
  • अशोक के शासनकाल में सुदूर दक्षिण को छोड़कर लगभग पूरा उपमहाद्वीप एकछत्र शासन में था।
  • महत्वपूर्ण प्रांत — उत्तरापथ (तक्षशिला), अवन्ति राष्ट्र (उज्जैन), प्राची (पाटलिपुत्र), कलिंग (तोसली) और दक्षिणापथ (सुवर्णगिरि)।
  • सिंचाई, सड़क निर्माण, चिकित्सालय और पशु चिकित्सा केन्द्र स्थापित किए।
  • अशोक के सिंह स्तंभ को भारत का राष्ट्रीय प्रतीक बनाया गया।

अशोक का शासन

कलिंग युद्ध और परिवर्तन

अशोक (273–232 ईसा पूर्व) मौर्य साम्राज्य के तृतीय शासक और सबसे प्रसिद्ध सम्राट थे। उनके शासन का निर्णायक मोड़ कलिंग युद्ध (261 ईसा पूर्व) था, जिसमें लगभग 1 लाख लोग मारे गए और 1.5 लाख लोग निर्वासित हुए। इस भीषण जनहानि ने अशोक को गहराई से प्रभावित किया, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने हिंसा त्यागकर बौद्ध धर्म अपनाया और भौतिक विजय के स्थान पर "धम्म विजय" की नीति अपनाई।

अशोक का धम्म

  • अहिंसा, सत्य, करुणा, सहिष्णुता एवं सभी धर्मों के प्रति सम्मान।
  • प्रजा-कल्याण, पशु संरक्षण एवं पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता।
  • धार्मिक संप्रदायों के बीच संवाद एवं एकता।
  • व्यक्तिगत नैतिकता और आचार-विचार पर जोर।

शिलालेख और स्तंभ

  • अशोक पहले भारतीय शासक थे जिन्होंने अपने आदेशों को पत्थरों और स्तंभों पर अंकित करवाया।
  • लिपि: ब्राह्मी (उत्तर भारत), खरोष्ठी (उत्तर-पश्चिम)।
  • भाषा: प्राकृत, ग्रीक, अरामाइक।
  • मुख्य स्तंभ: सारनाथ, लौरिया नंदनगढ़, वैशाली।

प्रमुख शिलालेख

शिलालेख विवरण
प्रथम पशु वध एवं अनावश्यक बलि पर प्रतिबन्ध।
द्वितीय मनुष्य एवं पशुओं के लिए चिकित्सा सुविधा और औषधि प्रबंध।
पंचम धम्म महा-मात्रों की नियुक्ति और उनकी जिम्मेदारियाँ।
सप्तम धार्मिक सहिष्णुता एवं विभिन्न सम्प्रदायों के बीच सद्भावना।
तेरहवां कलिंग युद्ध की विनाशलीला, पश्चाताप, एवं यूनानी शासकों (एंटिओकस, टॉलेमी, एंटिगोनस, मैगस, अलेक्ज़ेंडर) का उल्लेख।

अन्य प्रमुख उपलब्धियाँ

  • तृतीय बौद्ध संगीति (250 ईसा पूर्व) का आयोजन पाटलिपुत्र में कराया।
  • विदेशों में बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु मिशन श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड, मध्य एशिया और भूमध्यसागरीय क्षेत्र में भेजे।
  • सिंचाई व्यवस्था, सड़क निर्माण, कुएँ और धर्मशालाएँ बनवाईं।
  • मानव और पशु चिकित्सा केन्द्र स्थापित किए।
  • अशोक का सिंह स्तंभ भारत का राष्ट्रीय प्रतीक और "सत्यमेव जयते" राष्ट्रीय आदर्श वाक्य का आधार बना।

प्रशासन व्यवस्था

केंद्रीय प्रशासन

कौटिल्य के अनुसार, राज्य सात तत्वों से बना है जिन्हें सप्तांग कहा जाता है — स्वामी (राजा), अमात्य (मंत्री), जनपद (क्षेत्र/जनसंख्या), दुर्ग (किला), कोष (खजाना), बल (सेना) और मित्र (सहयोगी राज्य)।

मौर्य प्रशासन अत्यंत केंद्रीकृत था, जहां राजा सर्वोच्च सत्ता था और विभिन्न विभागों का संचालन विशेषज्ञ अधिकारियों द्वारा किया जाता था।

महत्वपूर्ण पदाधिकारी

समाहर्ता: कर संग्रह एवं राजस्व विभाग के प्रमुख
सेनापति: सेना का सर्वोच्च कमांडर
पौतवाध्यक्ष: बाट और माप का नियंत्रण अधिकारी
अक्षपटलाध्यक्ष: महालेखाकार, वित्तीय लेखा-जोखा रखने वाला
नगराध्यक्ष: नगर प्रशासन एवं व्यवस्था का प्रमुख
गुह्याध्यक्ष: गुप्तचर विभाग का प्रमुख

स्थानीय प्रशासन

  • जनपद को ग्राम, मंडल और प्रांतों में विभाजित किया गया था।
  • प्रांतों का शासन कुमार (राजकुमार) या आर्यपुत्र करते थे।
  • ग्राम स्तर पर ग्रामिण या ग्रामाध्यक्ष प्रशासन का प्रमुख होता था।
  • सड़क, सिंचाई, व्यापार, न्याय और कर संग्रह जैसी जिम्मेदारियां अलग-अलग अधिकारियों को सौंपी जाती थीं।

प्रांतीय प्रशासन

मौर्य साम्राज्य अनेक प्रांतों में विभक्त था। प्रत्येक प्रांत एक-एक कुमार या आर्यपुत्र के अधीन होता था। कुमार या आर्यपुत्र राजवंश की ही किसी संतान को बनाया जाता था। प्रांत भी छोटी-छोटी इकाइयों में विभक्त थे। ग्रामांचल और नगरांचल दोनों में प्रशासन की व्यवस्था थी। मौर्य साम्राज्य पाँच बड़े प्रांतों में विभाजित था। ये प्रांत थे-उत्तरापथ, दक्षिणापथ, अवन्ति, कलिंग तथा प्राच्य प्रदेश। उत्तरापथ की राजधानी तक्षशिला, दक्षिणापथ की राजधानी सुवर्णगिरि, अवन्ति की राजधानी उज्जयिनी, कलिंग की राजधानी तोसली तथा प्राच्य प्रदेश की राजधानी पाटलिपुत्र थी। प्रांतो का विभाजन अनेक मंडलों में किया जाता था, मंडल जिलों में विभक्त थे, जिसे 'विषय' कहा जाता था। विषय का अधिकारी प्रादेशिक, रज्जुक तथा युक्तक होते थे। ग्राम प्रशासन की सबसे छोटी इकाई थी, जिसका प्रधान 'गामिक' होता था।


नगर प्रशासन

मेगस्थनीज ने पाटलिपुत्र के नगर प्रशासन का वर्णन किया है। नगर का प्रमुख अधिकारी एस्ट्रोनोमोई तथा जिले का अधिकारी एग्रोनोमोई था। पाटलिपुत्र नगर का प्रशासन 30 सदस्यों के समूह द्वारा चलाया जाता था। इसकी कुल 6 समितियाँ होती थीं तथा प्रत्येक समिति में 5 सदस्य होते थे।


न्याय प्रशासन

मौर्यकाल में दीवानी न्यायालय 'धर्मस्थीय' तथा फौजदारी न्यायालय 'कंटकशोधक' कहा जाता था। 'धर्मस्थीय' न्यायालय का न्यायाधीश 'व्यावहारिक' तथा कंटकशोधन न्यायालय का न्यायाधीश 'प्रदेष्टा' कहलाता है। जिला स्तरीय न्यायालय का प्रमुख रज्जुक था। ग्रामीण स्तर पर ग्राम न्यायालय की व्यवस्था की गई थी। कौटिल्य के अनुसार, विधि के चार स्रोत; जैसे-धर्म, व्यवहार, चरित्र, राजाज्ञा थे।


सैन्य प्रशासन

यूनानी लेखक प्लिनी के अनुसार, चंद्रगुप्त की सेना में 6,00,000 पैदल सिपाही, 30,000 घुड़सवार और 9,000 हाथी थे। एक अन्य स्रोत में वर्णित है कि मौर्यों के पास 8,000 अश्वचालित रथ थे। मौर्यों के पास नौसेना भी थी। मेगस्थनीज के अनुसार, सैनिक प्रशासन के लिए तीस अधिकारियों की एक परिषद् थी, जो पाँच-पाँच सदस्यों की छह समितियों में विभक्त थी। ऐसा ज्ञात होता है कि पैदल, घुड़सवार, हाथी, रथ, नाव और सवारी सेना के संचालन की जिम्मेदारी 6 समितियों पर होती थी। मौर्य सेना, नंद सेना से लगभग तिगुनी थी। राजक्षेत्र और आय स्रोतों में बहुत अधिक वृद्धि होने के कारण ही ऐसा संभव हो पाया।


समिति कार्य
प्रथम समिति जल सेना की व्यवस्था
द्वितीय समिति यातायात एवं रसद की व्यवस्था
तृतीय समिति पैदल सैनिकों की देख-रेख
चतुर्थ समिति अश्वारोही सेना की देख-रेख
पंचम समिति गजसेना की देख-रेख
षष्टम समिति रथसेना की देख-रेख

गुप्तचर व्यवस्था

मौर्यकालीन प्रशासन तथा न्याय व्यवस्था को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए 'गुप्तचर व्यवस्था' की स्थापना की गई थी। गुप्तचरों को 'गुप्त पुरुष' तथा इसके प्रधान अधिकारी को 'महामात्यापसर्प' कहा गया। अर्थशास्त्र में दो प्रकार के गुप्तचरों का विवरण है- संस्था तथा संचार। संस्था संगठित होकर कार्य करती थी, जबकि संचार घुमक्कड़ थे। पुरुष गुप्तचर को सान्ती, तिष्णा एवं सरद कहा जाता था, जबकि स्त्री गुप्तचर को वृषाली, भिक्षुकी एवं परिव्राजक कहा जाता था।


मौर्यकालीन कला एवं स्थापत्य

मौर्य कला के अंतर्गत ही सबसे पहले पत्थर की इमारत बनाने का कार्य बड़े पैमाने पर प्रारंभ हुआ। चीन के बौद्ध यात्री फाह्यान ने पाटलिपुत्र में स्थित मौर्य राजमहल की भव्यता का विवरण प्रस्तुत किया था। पत्थर के स्तंभों के टुकड़े और उनके दूँठ (Stump) के प्रमाण आधुनिक पटना के कुम्हरार नामक स्थल से मिले हैं, जो 80 स्तंभों वाले विशाल भवन के अस्तित्व का संकेत देते हैं। मौर्यकालीन स्तम्भ पांडु रंगवाले (पीले रंग बाले) बलुआ पत्थर के एक ही टुकड़े का बना है, जिनका केवल शीर्ष भाग स्तंभों के ऊपर जोड़ा गया है और तराशे गए सिंह और सांड विलक्षण वास्तुशिल्प के प्रमाण हैं। मौर्य शिल्पियों ने बौद्ध भिक्षुओं के निवास के लिए चट्टानों को काटकर गुफाएँ बनाने की परंपरा भी प्रारंभ की। इसका सबसे पुराना उदाहरण बराबर की गुफाएँ हैं, जो गया से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। मौर्यकाल में ही पूर्वोत्तर भारत में सर्वप्रथम पकी हुई ईंट का प्रयोग हुआ, इस काल में बनी पकी ईटों की संरचनाएँ बिहार और उत्तर प्रदेश में पाई गई हैं। मेगस्थनीज ने मौर्य राजधानी पाटलिपुत्र में बने लकड़ी के भवनों का उल्लेख किया है। उत्खनन से ज्ञात होता है कि लकड़ी के लट्ठों का प्रयोग बाढ़ और बाहरी आक्रमण से बचाव के लिए महत्वपूर्ण रक्षा-बाँध बनाने में किया गया था। सबसे पहले मौर्य काल में ही गंगा घाटी क्षेत्र में छल्लेदार कुएं प्रचलन में आए, जो कालांतर में साम्राज्य के केंद्रीय भाग से बाहर भी फैल गए। बांग्लादेश में जहाँ जिला बोगरा में मौर्य ब्राह्मी लिपि में महास्थान का अभिलेख पाया गया है, वहीं मिदनापुर जिले के बनगढ़ में उत्तरी काले पॉलिशदार मृ‌द्भांड मिले हैं। शिशुपालगढ़ (उड़ीसा) की बस्ती मौर्य काल की ईसा पूर्व तीसरी सदी की मानी जाती है और इसमें उत्तरी काले पॉलिशदार मृ‌द्मांड के साथ-साथ लोहे के उपकरण और आहत मुद्राएँ भी मिली हैं। मौर्यकाल में आंध्र और कर्नाटक में अनेक स्थानों पर लोहे के औजार और हथियार पाए गए हैं। मौर्य संपर्को के माध्यम से ही इस्पात बनाने की कला देश के कुछ भागों में विस्तृत हुई थी। इस्पात के औजारों के बनने से कलिंग के जंगल की सफाई और खेती के सुधरे तरीकों का प्रयोग होने लगा और इसके परिणामस्वरूप उस क्षेत्र में चेदि राज्य के उदय के लिए उपयुक्त स्थिति उत्पन्न हुई।

मौर्यकालीन सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति

मौर्यकालीन साम्राज्य अनेक वर्गों में विभाजित था। मेगस्थनीज ने भारतीय समाज को सात वर्गों में विभाजित बताया है। मेगस्थनीज के विभाजन के अनुसार, भारत में दार्शनिक, किसान, शिकारी एवं पशुपालक, शिल्पी एवं कारीगर, योद्धा, निरीक्षक एवं गुप्तचर तथा अमात्य एवं सभासद नामक वर्ग थे। कौटिल्य ने अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र में मौर्यकालीन समाज में अनेक वर्णशंकर जातियों का उल्लेख किया है, जिनमें अम्बष्ठ, निषाद, मागध, सूत वेण आदि शामिल थे। स्त्रियों को पुनर्विवाह एवं नियोग की अनुमति थी। संभ्रांत घर की स्त्रियाँ प्राय: घर के अंदर ही रहती थीं, जिसे कौटिल्य ने अनिष्कासिनी कहा है। मौर्यकाल में वैदिक धर्म ही प्रचलित था, किंतु कर्मकांड प्रधानतः अभिजात्य ब्राह्मण तथा क्षत्रियों तक ही सीमित था। कौटिल्य ने भारत के प्राचीन धर्म को त्रयीं धर्म कहा है, वहीं मेगस्थनीज ने मौर्यकालीन धार्मिक व्यवस्था में डायोनिसस एवं हेराक्लीज की चर्चा की है, जिनकी पहचान क्रमश: शिव और कृष्ण से की गई है। पतंजलि के अनुसार, मौर्यकाल में देवमूर्तियों को बेचा जाता था, जिन्हें बनाने वाले शिल्पियों को देवताकारू कहा जाता था। अर्थशास्त्र के अनुसार, मौर्य साम्राज्य में ब्रह्मा, इंद्र, यम और स्कंद की मूर्तियाँ बनवाकर नगर के चारों द्वार पर स्थापित की जाती थीं।

पतन के कारण

मौर्य साम्राज्य का विघटन

मौर्य साम्राज्य, जो चंद्रगुप्त मौर्य और अशोक महान के नेतृत्व में भारतीय इतिहास का स्वर्णिम काल था, अशोक की मृत्यु (232 ई.पू.) के बाद तेजी से कमजोर होने लगा। लगभग 50 वर्षों के भीतर साम्राज्य के अधिकांश भाग स्वतंत्र हो गए और अंततः 180 ई.पू. में अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ की हत्या पुश्यमित्र शुंग ने कर दी।

प्रमुख कारण

  • कमजोर उत्तराधिकारी – अशोक के बाद आने वाले शासकों में नेतृत्व क्षमता और राजनीतिक सूझबूझ की कमी थी।
  • विशाल साम्राज्य का प्रशासनिक बोझ – इतने बड़े भूभाग को एकजुट रखना कठिन होता गया।
  • आर्थिक समस्याएँ – युद्ध और विशाल प्रशासनिक ढांचे के कारण खजाना खाली होने लगा।
  • धम्म नीति का प्रभाव – अशोक की अहिंसा नीति से सेना का मनोबल घटा और युद्धक क्षमता कमजोर हुई।
  • ब्राह्मण वर्ग का असंतोष – बौद्ध धर्म को बढ़ावा देने से पारंपरिक वर्गों में विरोध उत्पन्न हुआ।
  • सीमांत प्रदेशों की उपेक्षा – उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में यूनानी (इंडो-ग्रीक) आक्रमण शुरू हो गए।
  • प्रांतीय विद्रोह – अफगानिस्तान, पंजाब और दक्षिण भारत में स्थानीय शासकों ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी।
  • सैन्य शक्ति में गिरावट – लंबे समय तक शांति नीति अपनाने से सेना कमजोर पड़ गई।
  • राजनीतिक षड्यंत्र – अंत में पुश्यमित्र शुंग द्वारा बृहद्रथ की हत्या कर शुंग वंश की स्थापना।

ऐतिहासिक तथ्य

  • अशोक के उत्तराधिकारी – कुणाल, दशरथ, सम्प्रति आदि थे, जो अधिक प्रभावी नहीं रहे।
  • यूनानी राजा डेमेट्रियस ने उत्तर-पश्चिमी भारत पर आक्रमण किया।
  • मौर्य साम्राज्य का अंतिम शासक – बृहद्रथ
  • मौर्य साम्राज्य का अंत – 180 ई.पू., पुश्यमित्र शुंग द्वारा।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q1: मौर्य साम्राज्य की स्थापना किसने की?

मौर्य साम्राज्य की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने 322 ईसा पूर्व में की थी।

Q2: अशोक के शिलालेख क्यों महत्वपूर्ण हैं?

अशोक के शिलालेख उसके शासन, नीतियों और बौद्ध धर्म के प्रसार के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं।

Q3: चंद्रगुप्त मौर्य को शासन कौशल किससे मिला?

चंद्रगुप्त मौर्य को शासन और रणनीति की शिक्षा आचार्य चाणक्य (कौटिल्य) से मिली।

Q4: मौर्य साम्राज्य की राजधानी कहाँ थी?

मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) थी।

Q5: मौर्य काल के प्रमुख प्रशासनिक ग्रंथ का नाम क्या है?

अर्थशास्त्र, जिसे चाणक्य ने लिखा था, मौर्य काल का प्रमुख प्रशासनिक ग्रंथ है।

Q6: अशोक का धम्म क्या था?

अशोक का धम्म नैतिक आचार संहिता थी, जो अहिंसा, सहिष्णुता और सभी धर्मों के सम्मान पर आधारित थी।

Q7: कलिंग युद्ध कब हुआ?

कलिंग युद्ध 261 ईसा पूर्व में हुआ, जिसके बाद अशोक ने हिंसा त्यागकर बौद्ध धर्म अपनाया।

Q8: मौर्य साम्राज्य का पतन कब हुआ?

मौर्य साम्राज्य का पतन लगभग 180 ईसा पूर्व में हुआ, जब अंतिम शासक बृहद्रथ की हत्या हुई।

Q9: बौद्ध धर्म के प्रसार में मौर्य साम्राज्य की क्या भूमिका थी?

अशोक ने बौद्ध धर्म को पूरे भारत और विदेशों में प्रचारित करने के लिए मिशनरियों को भेजा।

Q10: मौर्य काल में व्यापार कैसा था?

मौर्य काल में आंतरिक और बाहरी व्यापार उन्नत था, जिसमें रेशम, मसाले और कीमती पत्थरों का निर्यात होता था।

Q11: मौर्य प्रशासन का प्रमुख अधिकारी कौन था?

महामात्र प्रमुख अधिकारी था, जो शासन, कानून और व्यवस्था की देखरेख करता था।

Q12: चंद्रगुप्त मौर्य ने सिकंदर के उत्तराधिकारियों से कौन सा क्षेत्र जीता?

चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस निकेटर से उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र जीता और शांति संधि की।

Q13: बृहद्रथ की हत्या किसने की?

बृहद्रथ की हत्या उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने की, जिससे मौर्य साम्राज्य का अंत हुआ।

Q14: मौर्य काल में कौन-सा धातु सबसे ज्यादा प्रयोग में आती थी?

मौर्य काल में लोहा सबसे ज्यादा प्रयोग में आता था, विशेषकर कृषि औजार और हथियार बनाने में।

Q15: अशोक के समय अंतर्राष्ट्रीय संबंध कैसे थे?

अशोक ने श्रीलंका, यूनान, मिस्र और दक्षिण-पूर्व एशिया के राज्यों से मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए।

Q16: मौर्य काल की प्रमुख स्थापत्य कला कौन-सी थी?

सांची स्तूप, अशोक स्तंभ और गुफा वास्तुकला मौर्य काल की प्रमुख स्थापत्य कृतियाँ हैं।

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