भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। मूल संविधान में कुल 395 अनुच्छेद, 22 भाग एवं 8 अनुसूचियाँ थी। संविधान के मूल पाठ को 22 भागों में विभाजित किया गया था। इसमें अतिरिक्त भाग के रूप में भाग 4(क) एवं भाग 14 (क) को 42 वें संविधान संशोधन 1976 के अंतर्गत जोड़ा गया। भाग 9 (क) को 74 वां संविधान संशोधन 1992 के अंतर्गत एवं भाग 9 (ख) को 97 वें संविधान संशोधन 2011 के अंतर्गत जोड़ा गया।
- भाग 4(क): मूल कर्तव्य
- भाग 14(क): प्रशासनिक अधिकरण के संबंध में प्रावधान
- भाग 9(क): नगरपालिकाएँ
- भाग 9(ख): सहकारी समितियाँ
जबकि भाग 7 (पहली अनुसूची के भाग "ख" के राज्य) के एकमात्र अनुच्छेद 238 को 7 वें संविधान संशोधन 1956 के माध्यम से निरसित कर दिया गया। वर्तमान में भारतीय संविधान में 22 भाग, 395 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियाँ है। आज इस लेख में प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से महत्वपूर्ण अनुच्छेदों, भागों एवं अनुसूचियों के विषय में संक्षिप्त में जानेंगे।
भारतीय संविधान के भाग एवं अनुच्छेद (संक्षिप्त परिचय)
भाग - 1 (संघ एवं उसका राज्यक्षेत्र)
भारतीय संविधान के भाग-1 में अनुच्छेद 1 से 4 के अंतर्गत भारतीय संघ और उसके राज्यक्षेत्र का वर्णन किया गया है।
अनुच्छेद 1 (संघ का नाम और राज्य क्षेत्र)
- भारत, अर्थात् इंडिया, राज्यों का संघ होगा।
- राज्य और उनके राज्यक्षेत्र वे होंगे जो पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं। उदाहरण के लिए गोवा 56 वां संविधान संशोधन 1987 के द्वारा 25वां राज्य बना वही सिक्किम 36 वां संशोधन 1975 में 22वां राज्य बना।
- भारत के राज्य की सीमाक्षेत्र,नाम अन्य परिवर्तन
अनुच्छेद 2 (नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना)
- संसद, विधि द्वारा, ऐसे निबंधनों और शर्तों पर, जो वह ठीक समझे, संघ में नए राज्यों का प्रवेश या उनकी स्थापना कर सकेगी।
अनुच्छेद 3 (नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन)
- स्पष्टीकरण 1: इस अनुच्छेद के खंड (क) से खंड (ङ) में राज्यों के राज्यक्षेत्र, पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट संघ राज्यक्षेत्र एवं अन्य अर्जित राज्य क्षेत्र शामिल है।
- स्पष्टीकरण 2: खंड (क) द्वारा संसद को प्रदत्त शक्ति के अंतर्गत किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के किसी भाग को किसी अन्य राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के साथ मिलाकर नए राज्य या संघ राज्यक्षेत्र का निर्माण किया जा सकता है।
अनुच्छेद 4 (पहली अनुसूची और चौथी अनुसूची के संशोधन तथा अनुपूरक, आनुषंगिक और पारिणामिक विषयों का उपबंध करने के लिए अनुच्छेद 2 और अनुच्छेद 3 के अधीन बनाई गई विधियाँ)
भाग - 2 (नागरिकता)
भारतीय संविधान के भाग-2 में अनुच्छेद 5 से 11 के अंतर्गत भारतीय नागरिकता से संबंधित प्रावधान किए गए है।
- अनुच्छेद 5 - संविधान के प्रारंभ पर नागरिकता।
- अनुच्छेद 6 - पाकिस्तान से भारत को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार।
- अनुच्छेद 7 - पाकिस्तान को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार।
- अनुच्छेद 8 - भारत के बाहर रहने वाले भारतीय मूल के कुछ व्यक्तियों के नागरिकता का अधिकार।
- अनुच्छेद 9 - विदेशी राज्य की नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित करने वाले व्यक्तियों की भारतीय नागरिकता स्वतः ही समाप्त।
- अनुच्छेद 10 - भारतीय नागरिकों के अधिकारों का बना रहना।
- अनुच्छेद 11 - संसद द्वारा नागरिकता के अधिकार का विधि द्वारा विनियमन किया जाना।
भाग - 3 (मूल अधिकार)
भारतीय संविधान के भाग-3 में अनुच्छेद 12 से 35 के अंतर्गत मूल अधिकार से संबंधित प्रावधान किए गए है। भाग-3 के अनुच्छेद 14 से 18 तक "समानता का अधिकार", अनुच्छेद 19 से 22 तक "स्वतंत्रता का अधिकार", अनुच्छेद 23 से 24 तक "शोषण के विरुद्ध अधिकार", अनुच्छेद 25 से 28 तक "धर्म की स्वतंत्रता", अनुच्छेद 29 से 30 तक "सांस्कृतिक एवं शैक्षिक अधिकार", अनुच्छेद 32 "संवैधानिक उपचारों का अधिकार" एवं अनुच्छेद 33 से 35 तक "मूल अधिकारों से संबंधित अन्य प्रावधान" का वर्णन है।
- अनुच्छेद 12 - राज्य की परिभाषा (भारत की सरकार व संसद, राज्यों की सरकारें व विधानमण्डल, सभी स्थानीय प्राधिकारी, अन्य प्राधिकारी)।
- अनुच्छेद 13 - मूल अधिकारों से असंगत एवं उनका अल्पीकरण करने वाली विधियाँ।
- अनुच्छेद 14 - कानून के समक्ष समानता।
- अनुच्छेद 15 - जन्म, वंश, जाति, लिंग या संप्रदाय के आधार पर भेदभाव का निषेध।
- अनुच्छेद 16 - लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता।
- अनुच्छेद 17 - अस्पृश्यता का अन्त।
- अनुच्छेद 18 - उपाधियों का अन्त।
- अनुच्छेद 19 - वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।
- अनुच्छेद 20 - अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण।
- अनुच्छेद 21 - प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण।
- अनुच्छेद 21 (क) - प्रारम्भिक शिक्षा का अधिकार (86 वां संविधान संशोधन 2002 के माध्यम से जोड़ा गया)।
- अनुच्छेद 22 - कुछ दशाओं में गिरफ़्तारी और निरोध से संरक्षण।
- अनुच्छेद 23 - मानव के बलात् श्रम का निषेध।
- अनुच्छेद 24 - 14 वर्ष से कम आयु के बच्चो से किसी कारखाने या जोखिम वाले कामों पर नहीं लगाया जा सकता।
- अनुच्छेद 25 - अन्तःकरण की और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता।
- अनुच्छेद 26 - धार्मिक कार्यों के प्रबंधन की स्वतंत्रता।
- अनुच्छेद 27 - राज्य किसी धार्मिक कार्य के लिए जमा धन में से टैक्स नहीं ले सकता।
- अनुच्छेद 28 - सरकारी निधियों से पूर्णत: पोषित किसी भी शैक्षणिक संस्थान में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी।
- अनुच्छेद 29 - अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षण।
- अनुच्छेद 30 - सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।।
- अनुच्छेद 31 - संपत्ति का अधिकार (अब केवल कानूनी अधिकार)।
- अनुच्छेद 32 - संवैधानिक उपचारों का अधिकार।
- अनुच्छेद 33 - यह संसद को यह अधिकार देता है कि वह सशस्त्र बलों, अर्द्धसैनिक बलों, पुलिस बलों, खुफिया एजेंसियों और अन्य के मौलिक अधिकारों को युक्तियुक्त प्रतिबंधित कर सके।
- अनुच्छेद 34 - यह मौलिक अधिकारों पर तब प्रतिबंध लगाता है जब भारत में कहीं भी मार्शल लॉ (सैन्य शासन) लागू हो।
- अनुच्छेद 35 - यह अनुच्छेद केवल संसद को कुछ विशेष मौलिक अधिकारों को प्रभावी बनाने के लिये कानून बनाने की शक्ति प्रदान करता है। यह अधिकार राज्य विधानमंडल को प्राप्त नहीं है।
भाग - 4 (नीति निदेशक तत्व)
राज्य के नीति निदेशक तत्व संविधान की उद्देशिका में उद्धृत सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय तथा स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व पर आधारित है। संविधान के भाग-4 में अनुच्छेद 36 से 51 तक नीति निदेशक तत्वों का वर्णन किया गया है। इसकी प्रेरणा आयरलैंड के संविधान से मिली है।
- अनुच्छेद 36 - नीति निदेशक तत्वों के संबंध में राज्य की परिभाषा।
- अनुच्छेद 37 - अनुच्छेद 37 में परिभाषित है कि राज्य के नीति निदेशक तत्त्व संबंधी प्रावधानों को किसी भी न्यायालय द्वारा प्रवर्तित नहीं किया जा सकता है किन्तु विधि बनाने में इन सिद्धांतों को लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा।
- अनुच्छेद 38 - लोक कल्याण को उन्नति हेतु राज्य सामाजिक व्यवस्था बनायेगा।।
- अनुच्छेद 39 - राज्य अपने सभी नागरिकों को आजीविका के पर्याप्त साधन उपलब्ध करवाएगा तथा भौतिक संसाधनों को उचित वितरण करेगा।
- अनुच्छेद 39 (क) - समान अवसर के आधार पर न्याय देना एवं निशुल्क कानूनी सहायता उपलब्ध कराना, ताकि निर्धनों को अन्याय का शिकार न होना पड़े। (42 वें संविधान संशोधन 1976 द्वारा जोड़ा गया था)
- अनुच्छेद 40 - राज्य, ग्राम पंचायतों के गठन में कदम उठाएगा और उसे ऐसी शक्तियां और अधिकार प्रदान करेगा जिससे वे आवश्यकता पड़ने पर स्वशासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने में सक्षम हो सकें।
- अनुच्छेद 41 - कुछ दशाओं में विशेषतः बेरोज़गारी, बुढ़ापा, बीमारी और विकलांगता आदि के मामलों में कार्य करने, शिक्षा पाने और सार्वजनिक सहायता पाने का अधिकार सुरक्षित करने के लिए राज्य प्रावधान करेगा।
- अनुच्छेद 42 - कार्य की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता का उपबंध अर्थात राज्य काम की न्यायसंगत और मानवीय दशाओं को सुनिश्चित करने के लिए और मातृत्व सुरक्षा एवं सहायता के लिए उपबंध करेगा।
- अनुच्छेद 43 - कर्मचारियों को निर्वाह मजदूरी एवं कुटीर उद्योगों का विकास।
- अनुच्छेद 43 (क) - उद्योगों के प्रबंध में मजदूरों के भागीदारी के लिए उपयुक्त विधान बनाना। (42 वें संविधान संशोधन 1976 द्वारा जोड़ा गया था)
- अनुच्छेद 43 (ख) - सहकारी समितियों का उन्नयन। (97 वां संविधान संशोधन 2011 द्वारा जोड़ा गया था)
- अनुच्छेद 44 - नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास करना।
- अनुच्छेद 45 - राज्य 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए प्रारंभिक बाल्यावस्था देख-रेख और शिक्षा उपलब्ध कराने हेतु आवश्यक उपबंध करने का प्रयास करेंगे। भारत में ये प्रावधान मुख्य रूप से समन्वित बाल विकास योजना कार्यक्रम के माध्यम से किये जाते हैं, जिसमें प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा के कार्यक्रमों में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का भी योगदान शामिल रहता है। इसका उद्देश्य छह साल से कम उम्र के बच्चों के साथ-साथ गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को व्यापक विकास सेवाएँ प्रदान करना है।
- अनुच्छेद 46 - राज्य समाज के कमजोर वर्गों में शैक्षणिक और आर्थिक हितों विशेषत: अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का विशेष ध्यान रखेगा और उन्हें सामाजिक अन्याय एवं सभी प्रकार के शोषण से संरक्षित रखेगा।
- अनुच्छेद 47 - राज्य सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार के लिये कदम उठाएगा और नशीले पेय तथा स्वास्थ्य के लिये हानिकारक नशीले पदार्थों के सेवन पर रोक लगाएगा।
- अनुच्छेद 48 - कृषि तथा पशुपालन का संगठन आधुनिक वैज्ञानिक प्रणालियों के अनुसार करना तथा गायों, बछड़ों और अन्य दुधारू पशुओं के वध पर रोक लगाने तथा मवेशियों को पालने एवं उनकी नस्लों में सुधार करने के लिये राज्य प्रावधान करेगा।
- अनुच्छेद 48 (क) - पर्यावरण का संरक्षण एवं संवर्धन तथा वन एवं वन्य जीवों का सुरक्षा निहित करना। (42 वें संविधान संशोधन 1976 द्वारा जोड़ा गया था)
- अनुच्छेद 49 - राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों, स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण करना।
- अनुच्छेद 50 - राज्य के लोक सेवाओं में कार्यपालिका से न्यायपालिका के पृथक्करण हेतु राज्य द्वारा कदम उठाना।
- अनुच्छेद 51 - राज्य अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को बढ़ावा देगा तथा राष्ट्रों के बीच न्यायसंगत व सम्मानपूर्ण संबंधों तथा अंतर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्थता से निपटाने के लिए प्रोत्साहन देने का प्रयास करेगा।
- गाँधीवादी तत्व: अनुच्छेद 40, 43, 43(ख), 46, 47 और अनुच्छेद 48
- समाजवादी तत्व: अनुच्छेद 38, 39, 39(क), 41, 42, 43, 43(क) और अनुच्छेद 47
- उदारवादी तत्व: अनुच्छेद 44, 45, 48, 48(क), 49, 50 और अनुच्छेद 51
भाग - 4 'क' (मूल कर्तव्य)
मूल संविधान में मूल कर्तव्य सम्मिलित नहीं थे। 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के कार्यकाल में सरदार स्वर्ण सिंह समिति का गठन किया गया जिसमें मूल कर्तव्यों को सम्मिलित करने की सिफारिश की गई। इस समिति की अनुशंसा पर ही 42 वें संविधान संशोधन, 1976 द्वारा भाग 4 (क) जोड़ा गया और अनुच्छेद 51 (क) के अंतर्गत 10 मूल कर्तव्यों की सूची का समावेश किया गया। 86 वें संविधान संशोधन, 2002 के द्वारा एक और मूल कर्तव्य जोड़ा गया, फलस्वरूप वर्तमान में कुल 11 मूल कर्तव्य है। इन 11 मूल कर्तव्यों की सूची निम्नलिखित है-
- (1) - संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज एवं राष्ट्रीय गान का आदर करें।
- (2) - स्वतंत्रता के लिये राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोये रखें और उनका पालन करें।
- (3) - भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें तथा उसे अक्षुण्ण रखें।
- (4) - देश की रक्षा करें और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करें।
- (5) - भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा व प्रदेश या वर्ग आधारित सभी प्रकार के भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं।
- (6) - हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्त्व समझें और उसका परिरक्षण करें।
- (7) - प्राकृतिक पर्यावरण जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्यजीव आते हैं, की रक्षा और संवर्द्धन करें तथा प्राणीमात्र के लिये दया भाव रखें।
- (8) - वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें।
- (9) - सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहें।
- (10) - व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत् प्रयास करें जिससे राष्ट्र प्रगति की और निरंतर बढ़ते हुए उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को प्राप्त किया जा सके।
- (11) - छह से चौदह वर्ष की आयु के बीच के अपने बच्चे बच्चों को शिक्षा के अवसर प्रदान करना। (इसे 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा जोड़ा गया)
भाग - 5 (संघ, अनुच्छेद 52-151)
- अनुच्छेद 52 - राष्ट्रपति का पद
- अनुच्छेद 53 - राष्ट्रपति अपनी कार्यपालिका संबंधी समस्त शक्तियों का प्रयोग स्वयं अथवा अधीनस्थ अधिकारियों के माध्यम से करता है।
- अनुच्छेद 54 - राष्ट्रपति का निर्वाचन
- अनुच्छेद 55 - राष्ट्रपति के निर्वाचन की रीति
- अनुच्छेद 56 - राष्ट्रपति की पदावधि
- अनुच्छेद 57 - भारत का राष्ट्रपति एक से अधिक बार भी निर्वाचन हो सकता है, क्योंकि संविधान में कोई उपबंध नहीं है, जो राष्ट्रपति के पुनः निर्वाचन पर प्रश्नचिह्न लगाए।
- अनुच्छेद 58 - राष्ट्रपति के लिए अर्हताएँ (योग्यता)
- अनुच्छेद 59 - राष्ट्रपति पद के लिए शर्तें
- अनुच्छेद 60 - राष्ट्रपति का शपथ
- अनुच्छेद 61 - राष्ट्रपति पर महाभियोग
- अनुच्छेद 62 - राष्ट्रपति के रिक्त पद को भरने के लिए राष्ट्रपति का निर्वाचन पदावधि की समाप्ति से पहले ही कर लिया जायेगा।
- अनुच्छेद 63 - भारत का उपराष्ट्रपति
- अनुच्छेद 64 - उपराष्ट्रपति का राज्यसभा का पदेन सभापति होना
- अनुच्छेद 65 - राष्ट्रपति के अनुपस्थिति में कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में उपराष्ट्रपति कार्य करेगा
- अनुच्छेद 66 - उपराष्ट्रपति का निर्वाचन
- अनुच्छेद 67 - उपराष्ट्रपति का कार्यकाल
- अनुच्छेद 68 - उपराष्ट्रपति के चुनाव को यथाशीघ्र करने की चर्चा अतः इसका कोई निश्चित समय नहीं दिया गया है।
- अनुच्छेद 69 - उपराष्ट्रपति का शपथ
- अनुच्छेद 70 - उपराष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रपति के कर्तव्यों का निर्वहन
- अनुच्छेद 71 - राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव संबंधी विवादों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुलझाया जाएगा।
- अनुच्छेद 72 - क्षमादान शक्तियां - राष्ट्रपति को विभिन्न मामलो क्षमा करने की शक्तियां और किसी मामले में दंडादेश को निलंबन करने की शक्तियां है।
- अनुच्छेद 73 - संघ की कार्यपालिका कार्यप्रणाली को आसान बनाने के लिए कानून राष्ट्रपति बनाएगा।
- अनुच्छेद 74 - राष्ट्रपति को सलाह देने के लिए एक मंत्रीपरिषद होगा जिसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होगा।
- अनुच्छेद 75 - मंत्रियों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति करता है।
- अनुच्छेद 76 - महान्यायवादी (Attorney General) - यह केंद्र सरकार का अधिकारी क़ानूनी सलाहकार होता है।
- अनुच्छेद 77 - केंद्र सरकार के कार्य के संचालन की चर्चा जो विभिन्न मंत्रालय द्वारा संपन्न होता है राष्ट्रपति इनके कार्यों को आसान बनाने के लिए कानून बना सकती है।
- अनुच्छेद 78 - प्रधानमंत्री का यह कर्त्तव्य है कि संसद के कार्यवाही की जानकारी राष्ट्रपति को दी जाए
- अनुच्छेद 79 - संसद - पार्लियामेंट शब्द फ़्रांस से लिया गया है जबकि संसद की जननी UK को कहा जाता है
- अनुच्छेद 80 - राज्यसभा
- अनुच्छेद 81 - लोकसभा
- अनुच्छेद 82 - उपराष्ट्रपति के चुनाव को यथाशीघ्र करने की चर्चा अतः इसका कोई निश्चित समय नहीं दिया गया है।
- अनुच्छेद 83 - संसद के सदनों की अवधि - राज्य सभा स्थायी सदन है जब की लोक सभा की अवधि 5 वर्ष तक ही होता है।
- अनुच्छेद 84 - संसद के सदस्यों की योग्यता - लोकसभा के लिए कम से कम 25 वर्ष तथा राज्यसभा के लिए कम से कम 30 वर्ष आयु होनी चाहिए।
- अनुच्छेद 85 - राष्ट्रपति द्वारा सत्र आहुत तथा सत्रावसान की चर्चा
- अनुच्छेद 86 - राष्ट्रपति का अभिभाषण प्रत्येक वर्ष संसद की पहली बैठक में दोनो सदनों को एक साथ संबोधित करते हैं।
- अनुच्छेद 87 - राष्ट्रपति को संसद के दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करने का अधिकार
- अनुच्छेद 88 - मंत्री तथा महान्यायवादी - मंत्री तथा महान्यवादी विशेष प्रवधान के तहत दोनों सदन के कार्यवाहियों में भाग ले सकते है, लेकिन महान्यायवादी सदन में मतदान नहीं कर सकता है।
- अनुच्छेद 89 - इसमें राज्यसभा के सभापति और उपसभापति की चर्चा है।
- अनुच्छेद 90 - उपसभापति को पद से हटाना या उपसभापति के पद से अवकाश या त्यागपत्र
- अनुच्छेद 91 - राज्यसभा के उपसभापति (डिप्टी चेयरमैन) की शक्ति या किसी अन्य व्यक्ति के कार्यालय के कर्तव्यों का पालन करने या संसद में अध्यक्ष के रूप में कार्य करने के बारे में
- अनुच्छेद 92 - जब सभापति या उपसभापति को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना
- अनुच्छेद 93 - लोकसभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष
- अनुच्छेद 94 - अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद छोड़ना, त्यागपत्र देना और पद से हटाना
- अनुच्छेद 95 - अध्यक्ष के पद के कर्तव्यों का पालन करने या अध्यक्ष के रूप में कार्य करने की उपाध्यक्ष या अन्य व्यक्ति की शक्ति
- अनुच्छेद 96 - लोक सभा की किसी बैठक में, जब अध्यक्ष को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन हो, तब उनका पीठासीन न होना
- अनुच्छेद 97 - राज्य सभा के सभापति और उपसभापति को तथा लोक सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को ऐसे वेतन और भत्ते दिए जाएंगे जो संसद् द्वारा विधि द्वारा नियत किए जाएं और जब तक इस निमित्त उपबंध नहीं किया जाता है तब तक ऐसे वेतन और भत्ते दिए जाएंगे जो द्वितीय अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं।
- अनुच्छेद 98 - संसद के सचिवालय के लिए प्रावधान
- अनुच्छेद 99 - संसद के किसी भी सदन का प्रत्येक सदस्य अपना स्थान ग्रहण करने से पूर्व राष्ट्रपति या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त व्यक्ति के समक्ष तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्ररूप के अनुसार शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा।
- अनुच्छेद 100 - अध्यक्ष या स्पीकर, या उस रूप में कार्य करने वाला व्यक्ति, प्रथमतः मत नहीं देगा, किन्तु मत बराबर होने की स्थिति में उसे निर्णायक मत प्राप्त होगा और वह उसका प्रयोग करेगा।
- अनुच्छेद 101 - कोई व्यक्ति संसद के दोनों सदनों का सदस्य नहीं होगा और जो व्यक्ति दोनों सदनों का सदस्य चुन लिया जाता है उसके एक या दूसरे सदन के स्थान को रिक्त करने के लिए संसद विधि द्वारा उपबंध करेगी।
- अनुच्छेद 102 - किसी व्यक्ति को संसद की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित किया जा सकता है यदि वह: (1) भारत के संविधान या संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून के अनुसार अयोग्य ठहराया गया हो; (2) मानसिक रूप से अस्वस्थ या दिवालिया घोषित किया गया हो; (3) नागरिकता खो चुका हो; (4) किसी लाभ के पद पर कार्यरत हो।
- अनुच्छेद 103 - संसद की सदस्यता पर विवाद का निर्णय राष्ट्रपति द्वारा लिया जाएगा, जो चुनाव आयोग की सलाह के आधार पर होगा।
- अनुच्छेद 104 - जिस सदस्य ने संसद में शपथ नहीं ली है या नियमों का पालन नहीं किया है, वह सदन की कार्यवाही में भाग नहीं ले सकता।
- अनुच्छेद 105 - संसद के सदस्यों को भाषण और मतदान में विशेषाधिकार प्राप्त हैं, और वे न्यायालय में इसके लिए उत्तरदायी नहीं होंगे।
- अनुच्छेद 106 - संसद के सदस्यों का वेतन और भत्ता संसद द्वारा कानून के माध्यम से तय किया जाएगा।
- अनुच्छेद 107 - संसद में विधेयक के पारित होने के लिए दोनों सदनों की सहमति आवश्यक है और राष्ट्रपति की स्वीकृति अनिवार्य है।
- अनुच्छेद 108 - यदि किसी विधेयक पर दोनों सदन सहमत न हों, तो राष्ट्रपति द्वारा संयुक्त बैठक बुलाई जा सकती है।
- अनुच्छेद 109 - धन विधेयक केवल लोकसभा में प्रस्तुत होगा, राज्यसभा केवल सिफारिश कर सकती है।
- अनुच्छेद 110 - धन विधेयक वह विधेयक है, जिसमें कर, सरकारी व्यय, ऋण या वित्तीय मामलों से जुड़े विषय शामिल होते हैं।
- अनुच्छेद 111 - राष्ट्रपति द्वारा विधेयक की स्वीकृति: संसद द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति को स्वीकृति के लिए भेजा जाता है। राष्ट्रपति इसे स्वीकृत कर सकते हैं, अस्वीकृत कर सकते हैं, या पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकते हैं (सिवाय धन विधेयक के)।
- अनुच्छेद 112 - भारत का वार्षिक वित्तीय विवरण (बजट): राष्ट्रपति प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिए संसद के समक्ष वार्षिक वित्तीय विवरण प्रस्तुत करते हैं, जिसमें सरकार की आय और व्यय का विवरण होता है।
- अनुच्छेद 113 - अनुदान मांगों पर चर्चा: संसद की लोकसभा सरकार के व्यय के लिए अनुदान की मांगों पर चर्चा करती है और स्वीकृति प्रदान करती है।
- अनुच्छेद 114 - वार्षिक अनुदान: संसद के दोनों सदनों द्वारा अनुदान स्वीकृत किए जाने के बाद राष्ट्रपति द्वारा सरकारी खर्चों के लिए राशि स्वीकृत की जाती है।
- अनुच्छेद 115 - अतिरिक्त, अधिक और घटक अनुदान: यदि सरकार को अतिरिक्त धनराशि की आवश्यकता होती है, तो संसद में इसके लिए अतिरिक्त, अधिक या घटक अनुदान की मांग की जा सकती है।
- अनुच्छेद 116 - अस्थायी और विशेष अनुदान: संसद कुछ अस्थायी और विशेष परिस्थितियों में अनुदान की स्वीकृति प्रदान कर सकती है।
- अनुच्छेद 117 - संसद में विशेष प्रावधान वाले विधेयक: किसी भी विधेयक में वित्तीय प्रावधान होने पर विशेष प्रक्रियाओं का पालन किया जाएगा।
- अनुच्छेद 118 - संसद की प्रक्रिया: संसद अपने कार्य संचालन के लिए नियम और प्रक्रियाएं तय कर सकती है।
- अनुच्छेद 119 - वित्तीय मामलों से जुड़े संसद के कामकाज: वित्तीय मामलों से संबंधित किसी भी मुद्दे पर संसद विशेष नियम बना सकती है।
- अनुच्छेद 120 - संसद की कार्यवाही की भाषा: संसद की कार्यवाही हिंदी या अंग्रेजी में होगी। हालांकि, अध्यक्ष की अनुमति से सदस्य अपनी मातृभाषा का उपयोग कर सकते हैं।
- अनुच्छेद 121 - न्यायपालिका की स्वतंत्रता: संसद में किसी न्यायाधीश के आचरण पर चर्चा केवल महाभियोग प्रस्ताव के दौरान ही की जा सकती है।
- अनुच्छेद 122 - संसद की कार्यवाही पर न्यायालय का हस्तक्षेप: संसद की कार्यवाही की वैधता पर न्यायालय में प्रश्न नहीं उठाया जा सकता।
- अनुच्छेद 123 - राष्ट्रपति का अध्यादेश जारी करने का अधिकार: जब संसद सत्र में नहीं होती, तो राष्ट्रपति तत्काल आवश्यकता के लिए अध्यादेश जारी कर सकते हैं। यह अध्यादेश संसद के अगले सत्र में प्रस्तुत किया जाएगा।
- अनुच्छेद 124 - उच्चतम न्यायालय की स्थापना और न्यायाधीशों की नियुक्ति: भारत का सर्वोच्च न्यायालय एक मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों से मिलकर बनेगा। न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- अनुच्छेद 125 - उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन: सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन और भत्ते संसद द्वारा तय किए जाएंगे।
- अनुच्छेद 126 - कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति: मुख्य न्यायाधीश के पद के रिक्त होने या अनुपस्थिति में राष्ट्रपति कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति कर सकते हैं।
- अनुच्छेद 127 - अतिरिक्त न्यायाधीशों की नियुक्ति: यदि सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या अपर्याप्त हो, तो राष्ट्रपति अतिरिक्त न्यायाधीशों की नियुक्ति कर सकते हैं।
- अनुच्छेद 128 - सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की उपस्थिति: राष्ट्रपति किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश को सर्वोच्च न्यायालय में कार्य करने के लिए बुला सकते हैं।
- अनुच्छेद 129 - सर्वोच्च न्यायालय का अधिकार: सर्वोच्च न्यायालय को न्यायालय की अवमानना से जुड़े मामलों में पूर्ण अधिकार प्राप्त है।
- अनुच्छेद 130 - सर्वोच्च न्यायालय का मुख्यालय: सर्वोच्च न्यायालय का मुख्यालय दिल्ली में होगा, लेकिन राष्ट्रपति की स्वीकृति से इसे अन्य स्थान पर स्थानांतरित किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 131 - सर्वोच्च न्यायालय का मूल क्षेत्राधिकार: राज्यों और केंद्र सरकार, या विभिन्न राज्यों के बीच विवादों का समाधान करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के पास मूल क्षेत्राधिकार होगा।
- अनुच्छेद 132 - संवैधानिक महत्व के मामलों में अपील: संविधान की व्याख्या से संबंधित मामलों में सर्वोच्च न्यायालय में अपील का अधिकार है।
- अनुच्छेद 133 - नागरिक मामलों में अपील: उच्च न्यायालय से सर्वोच्च न्यायालय में अपील उन्हीं मामलों में होगी, जिनमें विशिष्ट शर्तें पूरी होती हैं, जैसे कि मामला पर्याप्त महत्व का हो।
- अनुच्छेद 134 - फौजदारी मामलों में अपील: उच्च न्यायालय के विशेष निर्णयों के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील का अधिकार होगा।
- अनुच्छेद 134A - उच्च न्यायालय द्वारा प्रमाण पत्र जारी करना: उच्च न्यायालय अपील के लिए प्रमाण पत्र जारी कर सकता है यदि मामला महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दों से संबंधित हो।
- अनुच्छेद 135 - अतिरिक्त क्षेत्राधिकार: संसद द्वारा कानून के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय को अन्य मामलों का अधिकार सौंपा जा सकता है।
- अनुच्छेद 136 - विशेष अनुमति का अधिकार: सर्वोच्च न्यायालय को यह अधिकार है कि वह किसी भी न्यायालय या न्यायाधिकरण के निर्णय के खिलाफ विशेष अनुमति के आधार पर अपील की सुनवाई कर सके।
- अनुच्छेद 137 - सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय पुनरीक्षण: सर्वोच्च न्यायालय अपने किसी भी निर्णय या आदेश की समीक्षा कर सकता है।
- अनुच्छेद 138 - सर्वोच्च न्यायालय का अतिरिक्त अधिकार: संसद द्वारा कानून के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय को अन्य अधिकार सौंपे जा सकते हैं।
- अनुच्छेद 139 - सर्वोच्च न्यायालय के लिए अतिरिक्त शक्तियाँ: संसद सर्वोच्च न्यायालय को कुछ विशेष प्रकार के मामलों में आदेश देने की शक्ति प्रदान कर सकती है।
- अनुच्छेद 140 - सर्वोच्च न्यायालय की सहायता के लिए प्रावधान: संसद कानून बनाकर सर्वोच्च न्यायालय को उसकी शक्तियों और कर्तव्यों के प्रभावी निष्पादन के लिए सहायता प्रदान कर सकती है।
- अनुच्छेद 141 - सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का बाध्यकारी प्रभाव: भारत के भीतर सभी न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों के अनुसार कार्य करेंगे।
- अनुच्छेद 142 - पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने की शक्ति: सर्वोच्च न्यायालय अपने निर्णयों और आदेशों के कार्यान्वयन के लिए आवश्यक कदम उठाने का अधिकार रखता है।
- अनुच्छेद 143 - राष्ट्रपति की परामर्श मांगने की शक्ति: राष्ट्रपति किसी भी महत्वपूर्ण कानूनी या सार्वजनिक महत्व के प्रश्न पर सर्वोच्च न्यायालय की राय मांग सकते हैं।
- अनुच्छेद 144 - सर्वोच्च न्यायालय की सहायता: सभी प्राधिकरण, नागरिक और न्यायिक, सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का पालन करने के लिए बाध्य हैं।
- अनुच्छेद 145 - सर्वोच्च न्यायालय की प्रक्रियाएं: सर्वोच्च न्यायालय अपनी कार्य प्रक्रियाओं और नियमों को निर्धारित कर सकता है, जिसमें निर्णय देने के लिए आवश्यक न्यूनतम न्यायाधीशों की संख्या शामिल है।
- अनुच्छेद 146 - सर्वोच्च न्यायालय का स्टाफ: सर्वोच्च न्यायालय का स्टाफ और उनकी नियुक्ति की शर्तें मुख्य न्यायाधीश की देखरेख में तय की जाती हैं।
- अनुच्छेद 147 - संविधान में प्रयुक्त शब्दों की व्याख्या: सर्वोच्च न्यायालय संविधान में प्रयुक्त कानूनी शब्दों की व्याख्या कर सकता है।
- अनुच्छेद 148 - भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG): CAG की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी और वह भारत सरकार के खातों की लेखा परीक्षा के लिए उत्तरदायी होगा।
- अनुच्छेद 149 - CAG के कर्तव्य और शक्तियाँ: CAG केंद्र और राज्य सरकारों के खातों की लेखा परीक्षा करेगा और उसकी रिपोर्ट संसद या विधानमंडल में प्रस्तुत करेगा।
- अनुच्छेद 150 - भारत के खातों का रूप: भारत के खातों का रूप राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित किया जाएगा, लेकिन CAG की सलाह के अनुसार।
- अनुच्छेद 151 - CAG की रिपोर्ट का प्रस्तुतिकरण: CAG की रिपोर्ट राष्ट्रपति द्वारा संसद और राज्यपाल द्वारा राज्य विधानमंडल में प्रस्तुत की जाएगी।
भाग - 6 (राज्य, अनुच्छेद 152-237)
- अनुच्छेद 152 - राज्यों की परिभाषा: इस भाग में 'राज्य' शब्द जम्मू और कश्मीर को छोड़कर भारत के सभी राज्यों को संदर्भित करता है (हालांकि, अनुच्छेद 370 के हटने के बाद यह सभी राज्यों पर समान रूप से लागू होता है)।
- अनुच्छेद 153 - राज्यपाल: प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होगा, जो राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाएगा।
- अनुच्छेद 154 - राज्यपाल की कार्यकारी शक्ति: राज्य की सभी कार्यकारी शक्तियाँ राज्यपाल में निहित होंगी और वह इन्हें संविधान के अनुसार प्रयोग करेंगे।
- अनुच्छेद 155 - राज्यपाल की नियुक्ति: राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी।
- अनुच्छेद 156 - राज्यपाल का कार्यकाल: राज्यपाल राष्ट्रपति के इच्छानुसार अपने पद पर बने रहेंगे। उनका कार्यकाल पाँच वर्ष का होगा, लेकिन राष्ट्रपति इसे समाप्त कर सकते हैं।
- अनुच्छेद 157 - राज्यपाल बनने की पात्रता: राज्यपाल बनने के लिए व्यक्ति को भारत का नागरिक होना चाहिए और उसकी आयु 35 वर्ष से अधिक होनी चाहिए।
- अनुच्छेद 158 - राज्यपाल की शर्तें: राज्यपाल कोई अन्य लाभ का पद धारण नहीं कर सकते और उन्हें वेतन और भत्ते भारत के समेकित कोष से प्राप्त होंगे।
- अनुच्छेद 159 - राज्यपाल की शपथ: राज्यपाल अपने पद की शपथ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या उनके द्वारा नियुक्त किसी अन्य न्यायाधीश के समक्ष लेंगे।
- अनुच्छेद 160 - विशेष परिस्थितियों में राज्यपाल के कार्य: राष्ट्रपति राज्यपाल को उनके सामान्य कर्तव्यों के अलावा अन्य विशेष कर्तव्यों का पालन करने का निर्देश दे सकते हैं।
- अनुच्छेद 161 - राज्यपाल की क्षमादान की शक्ति: राज्यपाल को राज्य के दंड न्यायालयों द्वारा दिए गए अपराधों की सजा को माफ करने, घटाने या बदलने का अधिकार है।
- अनुच्छेद 162 - राज्य की कार्यकारी शक्ति का विस्तार: राज्य की कार्यकारी शक्ति उन विषयों तक फैलेगी जो राज्य सूची के अंतर्गत आते हैं।
- अनुच्छेद 163 - राज्यपाल की सहायता और परामर्श के लिए मंत्रिपरिषद: राज्यपाल को उनके कार्यों में सहायता और परामर्श देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी, जिसका नेतृत्व मुख्यमंत्री करेंगे।
- अनुच्छेद 164 - मुख्यमंत्री और मंत्रियों की नियुक्ति: मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करेंगे, और मुख्यमंत्री की सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति होगी।
- अनुच्छेद 165 - राज्य का महाधिवक्ता: राज्यपाल राज्य के लिए एक महाधिवक्ता की नियुक्ति करेंगे, जो राज्य सरकार का मुख्य कानूनी सलाहकार होगा।
- अनुच्छेद 166 - राज्यपाल द्वारा कार्यों का संचालन: राज्यपाल के सभी कार्य उनके नाम पर किए जाएंगे और इसके लिए नियम बनाए जाएंगे।
- अनुच्छेद 167 - मुख्यमंत्री का राज्यपाल को कर्तव्य: मुख्यमंत्री का यह दायित्व है कि वे राज्य के प्रशासन और विधायी प्रस्तावों के बारे में राज्यपाल को जानकारी दें।
- अनुच्छेद 168 - राज्य विधानमंडल का निर्माण: प्रत्येक राज्य के लिए एक विधानमंडल होगा, जिसमें एक या दो सदन हो सकते हैं - विधान सभा (निम्न सदन) और विधान परिषद (उच्च सदन)।
- अनुच्छेद 169 - विधान परिषद का उन्मूलन या स्थापना: संसद कानून द्वारा किसी राज्य की विधान परिषद को समाप्त करने या स्थापित करने का प्रावधान कर सकती है, यदि राज्य की विधानसभा इसके लिए प्रस्ताव पारित करे।
- अनुच्छेद 170 - विधान सभा का गठन: प्रत्येक राज्य की विधान सभा का गठन सीधे जनता द्वारा चुने गए सदस्यों से होगा, जिनकी संख्या संविधान द्वारा निर्धारित की जाएगी।
- अनुच्छेद 171 - विधान परिषद की संरचना: विधान परिषद के सदस्यों की अधिकतम संख्या विधान सभा की संख्या के एक तिहाई तक सीमित होगी। इसमें शिक्षक, स्नातक, नगरपालिका और विधान सभा द्वारा चुने गए तथा राज्यपाल द्वारा नामित सदस्य शामिल होंगे।
- अनुच्छेद 172 - विधान सभा और विधान परिषद का कार्यकाल: विधान सभा का कार्यकाल सामान्यतः पाँच वर्ष का होगा, जबकि विधान परिषद एक स्थायी सदन होगा, जिसमें एक तिहाई सदस्य हर दो साल में सेवानिवृत्त होते हैं।
- अनुच्छेद 173 - राज्य विधानमंडल के सदस्य बनने की योग्यता: व्यक्ति को भारत का नागरिक होना चाहिए, विधान सभा के लिए न्यूनतम आयु 25 वर्ष और विधान परिषद के लिए 30 वर्ष होनी चाहिए।
- अनुच्छेद 174 - राज्य विधानमंडल का सत्रावसान और सत्रों का आह्वान: राज्यपाल समय-समय पर विधानमंडल की बैठक बुलाएंगे और सत्रावसान करेंगे, लेकिन दो सत्रों के बीच का अंतर छह महीने से अधिक नहीं होगा।
- अनुच्छेद 175 - राज्यपाल का सदन में संबोधन: राज्यपाल को विधानमंडल के किसी भी सदन को संबोधित करने और संदेश भेजने का अधिकार है।
- अनुच्छेद 176 - विधानमंडल के पहले सत्र में राज्यपाल का अभिभाषण: प्रत्येक विधानमंडल के प्रथम सत्र और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र में राज्यपाल अभिभाषण देंगे, जिसमें सरकार की नीतियों और योजनाओं का उल्लेख होगा।
- अनुच्छेद 177 - मंत्रियों और महाधिवक्ता का सदनों में भाग लेना: मंत्रियों और महाधिवक्ता को विधान सभा या विधान परिषद की कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार है, भले ही वे इसके सदस्य न हों।
- अनुच्छेद 178 - विधान सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष: विधान सभा अपने सदस्यों में से एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष का चुनाव करेगी।
- अनुच्छेद 179 - अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का इस्तीफा और पद से हटाना: अध्यक्ष या उपाध्यक्ष इस्तीफा दे सकते हैं, और सदन द्वारा पारित प्रस्ताव के माध्यम से उन्हें पद से हटाया जा सकता है।
- अनुच्छेद 180 - कार्यवाहक अध्यक्ष: अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के अनुपस्थित होने पर सदन के भीतर से एक कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्त किया जाएगा।
- अनुच्छेद 181 - राज्य विधान सभा में अध्यक्ष का विशेष अधिकार: यदि किसी मामले में अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के विरुद्ध प्रस्ताव लाया गया हो, तो अध्यक्ष सदन की कार्यवाही में भाग नहीं लेंगे, लेकिन वह मतदान का अधिकार रखेंगे।
- अनुच्छेद 182 - विधान परिषद के सभापति और उपसभापति: विधान परिषद अपने सदस्यों में से एक सभापति और एक उपसभापति का चुनाव करेगी।
- अनुच्छेद 183 - सभापति और उपसभापति का कार्यकाल: सभापति और उपसभापति तब तक अपने पद पर बने रहेंगे जब तक वे सदस्य बने रहते हैं, या सदन द्वारा पारित प्रस्ताव के माध्यम से उन्हें पद से हटाया नहीं जाता।
- अनुच्छेद 184 - कार्यवाहक सभापति: सभापति और उपसभापति की अनुपस्थिति में, सदन कार्यवाहक सभापति नियुक्त करेगा।
- अनुच्छेद 185 - सभापति और उपसभापति का इस्तीफा और पद से हटाना: सभापति या उपसभापति अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं, और सदन द्वारा पारित प्रस्ताव के माध्यम से उन्हें पद से हटाया जा सकता है।
- अनुच्छेद 186 - विधान सभा और विधान परिषद के अध्यक्षों और उपाध्यक्षों का वेतन और भत्ता: उनका वेतन और भत्ता राज्य के समेकित कोष से भुगतान किया जाएगा, जो कानून द्वारा निर्धारित होगा।
- अनुच्छेद 187 - राज्य विधानमंडल के सचिवालय: प्रत्येक सदन के लिए एक अलग सचिवालय होगा, जिसमें कर्मचारियों की नियुक्ति और सेवा की शर्तें कानून द्वारा निर्धारित की जाएंगी।
- अनुच्छेद 188 - विधानमंडल के सदस्यों द्वारा शपथ: प्रत्येक सदस्य, सदन में बैठने से पहले, राज्यपाल के समक्ष शपथ लेगा या प्रतिज्ञा करेगा।
- अनुच्छेद 189 - सदन की कार्यवाही में मतदान का अधिकार: सभी प्रश्नों का निर्णय सदन में उपस्थित सदस्यों के बहुमत से किया जाएगा, और अध्यक्ष को टाई होने पर निर्णायक मत का अधिकार होगा।
- अनुच्छेद 190 - विधानमंडल की सदस्यता का त्याग और अयोग्यता: कोई भी सदस्य इस्तीफा देकर अपनी सदस्यता छोड़ सकता है, और सदन के सदस्य के रूप में अयोग्यता के लिए कानून द्वारा उपबंध किया जाएगा।
- अनुच्छेद 191 - विधानमंडल के सदस्य बनने की अयोग्यता: कोई व्यक्ति संसद या राज्य विधानमंडल का सदस्य नहीं बन सकता यदि वह किसी अपराध के कारण सजा पा चुका हो या अन्य कारणों से अयोग्य हो।
- अनुच्छेद 192 - सदस्यता पर निर्णय: किसी सदस्य की सदस्यता पर निर्णय राज्यपाल द्वारा लिया जाएगा, यदि उसकी अयोग्यता को लेकर कोई प्रश्न उठे।
- अनुच्छेद 193 - सदस्य के पद से वंचन: अगर किसी सदस्य को दंडित किया जाता है या उसकी सदस्यता के लिए कोई कानूनी आधार नहीं होता है, तो उसे पद से वंचित किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 194 - सदन के भीतर और बाहर के कृत्यों की सुरक्षा: किसी सदस्य को सदन में या बाहर उनके कृत्यों के लिए दंडित नहीं किया जा सकता, जब तक कि वह सदन में कार्यवाही में भाग ले रहे हों।
- अनुच्छेद 195 - सदस्यों को वेतन और भत्ते: प्रत्येक सदस्य को उनके कार्यकाल के दौरान वेतन और भत्ते दिए जाएंगे, जो कानून द्वारा निर्धारित किए जाएंगे।
- अनुच्छेद 196 - राज्य विधानमंडल की कार्यवाही: राज्य विधानमंडल का कार्यकाल आमतौर पर पाँच वर्ष होता है, लेकिन इसे राज्यपाल द्वारा समाप्त या स्थगित किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 197 - विधानमंडल की कार्यवाही के लिए आवश्यक संख्या: विधानमंडल की कार्यवाही तभी वैध मानी जाती है, जब उस पर एक निर्दिष्ट न्यूनतम सदस्यता का समर्थन होता है।
- अनुच्छेद 198 - संसद में कार्यवाही की कर्तव्यनिष्ठता: प्रत्येक सदस्य का कर्तव्य है कि वह संसद की कार्यवाही में भाग ले और उस पर पारित प्रस्तावों का समर्थन करे।
- अनुच्छेद 199 - विधानसभा द्वारा प्रस्तावित कानूनी प्रक्रियाएं: राज्य विधानमंडल में पारित किए गए प्रस्ताव या बिलों को राज्यपाल द्वारा मंजूरी दी जानी चाहिए।
- अनुच्छेद 200 - राज्यपाल द्वारा बिल पर सहमति: जब राज्य विधानमंडल द्वारा कोई विधेयक पारित किया जाता है, तो राज्यपाल को उस पर सहमति देनी होती है, जो राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी के बाद लागू होगा।
- अनुच्छेद 201 - विधेयक पर राष्ट्रपति की सहमति: यदि राज्यपाल द्वारा पारित विधेयक पर सहमति नहीं दी जाती है, तो राष्ट्रपति को वह विधेयक भेजा जाएगा और राष्ट्रपति उसकी स्थिति पर निर्णय लेंगे।
- अनुच्छेद 202 - विधानसभा का बजट: राज्य विधानमंडल में प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिए राज्य का बजट पेश किया जाएगा, जो सरकार के वित्तीय प्रबंधन को दर्शाता है।
- अनुच्छेद 203 - विधानसभा में संशोधन प्रस्ताव: राज्य विधानमंडल में प्रस्तुत किए गए सभी बिलों और प्रस्तावों को बहुमत से पारित किया जाता है, और प्रत्येक सदस्य को मतदान का अधिकार होता है।
- अनुच्छेद 204 - विधानमंडल में धन विधेयकों पर निर्णय: राज्य विधानमंडल में धन विधेयक पर निर्णय केवल निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा लिया जाएगा, और राज्यपाल को उस पर हस्ताक्षर करने की आवश्यकता होगी।
- अनुच्छेद 205 - राज्य विधानमंडल में धन विधेयक पर विलंब: राज्यपाल किसी विधेयक को राज्य विधानमंडल में पुनः विचार के लिए लौटा सकते हैं, जब तक कि वह विधेयक धन विधेयक न हो।
- अनुच्छेद 206 - राज्य विधानमंडल के विशेष सत्रों का आयोजन: राज्यपाल राज्य विधानमंडल के विशेष सत्रों को बुला सकते हैं, जब आवश्यक हो या किसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा के लिए।
- अनुच्छेद 207 - राज्य विधानमंडल में प्रमुख विधायी कार्य: राज्य विधानमंडल के लिए सभी प्रमुख विधायी कार्यों को सूचीबद्ध किया जाएगा और उसे लागू करने के लिए संबंधित प्रक्रियाएं निर्धारित की जाएंगी।
- अनुच्छेद 208 - विधानसभा के सत्रों में नियमितता: राज्य विधानमंडल के सत्रों की अवधि और संख्या नियमित रूप से निर्धारित की जाएगी, ताकि जनता की ओर से पूर्ण ध्यान दिया जा सके।
- अनुच्छेद 209 - विधानमंडल में विधायी प्रक्रिया की स्वीकृति: विधायी प्रक्रियाओं को राज्य विधानमंडल में पूर्ण स्वीकृति प्राप्त होगी और वह निर्णय लिया जाएगा, जब सभी आवश्यक प्रस्ताव पारित हो जाएंगे।
- अनुच्छेद 210 - राज्य विधानमंडल में कार्यवाही का रिकॉर्ड: राज्य विधानमंडल की कार्यवाही का रिकॉर्ड रखा जाएगा और उसका विस्तार सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होगा, ताकि जनता को पारदर्शिता सुनिश्चित हो सके।
- अनुच्छेद 211 - विधानमंडल की आयु: राज्य विधानमंडल के प्रत्येक सदन का कार्यकाल पाँच वर्षों का होगा, और उसके बाद नए चुनाव होंगे, यदि उसे समय से पहले न भंग किया गया हो।
- अनुच्छेद 212 - सदन की कार्यवाही में न्यायिक हस्तक्षेप: राज्य विधानमंडल की कार्यवाही पर उच्च न्यायालय या अन्य न्यायालयों का हस्तक्षेप नहीं होगा, जब तक कि यह संविधान द्वारा निर्धारित नहीं किया गया हो।
- अनुच्छेद 213 - राज्यपाल द्वारा अध्यादेश की शक्तियां: राज्यपाल को विधायी कार्यों के न होने पर आवश्यकतानुसार अध्यादेश जारी करने का अधिकार है, जो उस राज्य के लिए तत्काल प्रभाव से लागू होगा।
- अनुच्छेद 214 - राज्य उच्च न्यायालय की स्थापना: प्रत्येक राज्य में एक उच्च न्यायालय होगा, जिसकी स्थापना संसद द्वारा की जाएगी।
- अनुच्छेद 215 - राज्य उच्च न्यायालय का अधिकार: प्रत्येक राज्य उच्च न्यायालय को संविधान के अनुसार न्यायिक अधिकार दिया जाएगा और वह राज्य के न्यायिक कार्यों का संचालन करेगा।
- अनुच्छेद 216 - राज्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति: राज्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी, जो न्यायिक प्रक्रिया के अनुसार होगी।
- अनुच्छेद 217 - राज्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का कार्यकाल: राज्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का कार्यकाल 62 वर्ष की आयु तक होगा, जब तक कि उन्हें राष्ट्रपति द्वारा पूर्व में नहीं हटाया जाए।
- अनुच्छेद 218 - राज्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन और भत्ते: राज्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को वेतन और भत्ते भारत सरकार द्वारा निर्धारित किए जाएंगे।
- अनुच्छेद 219 - राज्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की शपथ: राज्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को शपथ ग्रहण करनी होती है, और वह संविधान और कानून के अनुसार अपने कार्यों का पालन करने का संकल्प लेते हैं।
- अनुच्छेद 220 - राज्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का स्थानांतरण: राज्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया जा सकता है, यदि राष्ट्रपति इसे उपयुक्त मानते हैं।
- अनुच्छेद 221 - राज्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का पद से हटाना: राज्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को पद से हटाने के लिए विशेष प्रक्रिया अपनानी होती है, जो संसद द्वारा निर्धारित की जाती है।
- अनुच्छेद 222 - राज्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का स्थानांतरण: राज्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को अन्य राज्य के उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया जा सकता है, लेकिन यह स्थानांतरण राष्ट्रपति की सलाह पर किया जाएगा।
- अनुच्छेद 223 - राज्य उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति: प्रत्येक राज्य उच्च न्यायालय का एक मुख्य न्यायाधीश होता है, जिसे राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है।
- अनुच्छेद 224 - राज्य उच्च न्यायालय में अतिरिक्त न्यायाधीशों की नियुक्ति: राज्य उच्च न्यायालय में अतिरिक्त न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति के आदेश से की जाती है, यदि आवश्यक हो।
- अनुच्छेद 225 - राज्य उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र: राज्य उच्च न्यायालयों का अधिकार क्षेत्र राज्य के भीतर न्यायिक कार्यों और संबंधित मामलों पर लागू होता है।
- अनुच्छेद 226 - राज्य उच्च न्यायालय को अनुशासनात्मक शक्तियां: राज्य उच्च न्यायालय के पास अनुशासनात्मक शक्तियां होती हैं, जिसमें राज्य सरकार के कार्यों की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है।
- अनुच्छेद 227 - राज्य उच्च न्यायालयों का अधीक्षण: राज्य उच्च न्यायालय का अधीक्षण कार्य करने के लिए उच्चतम न्यायालय की शक्तियां और अधिकार होंगे।
- अनुच्छेद 228 - राज्य उच्च न्यायालय का उच्चतम न्यायालय के साथ संबंध: राज्य उच्च न्यायालयों का उच्चतम न्यायालय के साथ परस्पर संबंध होगा, जो संविधान में निर्धारित किया गया है।
- अनुच्छेद 229 - राज्य उच्च न्यायालय के आदेशों का कार्यान्वयन: राज्य उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेशों और फैसलों का पालन राज्य सरकार और अन्य संस्थाओं द्वारा किया जाएगा।
- अनुच्छेद 230 - राज्य उच्च न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र का विस्तार: राज्य उच्च न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र को संसद द्वारा विस्तारित किया जा सकता है, यदि आवश्यक हो।
- अनुच्छेद 231 - संघ राज्य क्षेत्र के लिए उच्च न्यायालय: संघ राज्य क्षेत्र में एक या एक से अधिक उच्च न्यायालय स्थापित किए जा सकते हैं, जैसा कि संसद द्वारा निर्धारित किया गया है।
- अनुच्छेद 232 - संघ राज्य क्षेत्र के उच्च न्यायालयों का अधिकार क्षेत्र: संघ राज्य क्षेत्र के उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र, राज्य के भीतर न्यायिक कार्यों और मामलों की समीक्षा करने के लिए निर्धारित होगा।
- अनुच्छेद 233 - संघ राज्य क्षेत्र के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति: संघ राज्य क्षेत्र के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी।
- अनुच्छेद 234 - संघ राज्य क्षेत्र के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का कार्यकाल: संघ राज्य क्षेत्र के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का कार्यकाल राज्य उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के समान होगा, जो 62 वर्ष की आयु तक होता है।
- अनुच्छेद 235 - संघ राज्य क्षेत्र के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन और भत्ते: संघ राज्य क्षेत्र के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को वेतन और भत्ते संघ सरकार द्वारा निर्धारित किए जाएंगे।
- अनुच्छेद 236 - संघ राज्य क्षेत्र के उच्च न्यायालय में अनुशासनात्मक शक्तियां: संघ राज्य क्षेत्र के उच्च न्यायालय के पास अनुशासनात्मक शक्तियां होंगी, जिनका उपयोग न्यायिक कार्यों की समीक्षा और शुद्धता बनाए रखने के लिए किया जाएगा।
- अनुच्छेद 237 - संघ राज्य क्षेत्र के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का स्थानांतरण: संघ राज्य क्षेत्र के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को अन्य न्यायालयों में स्थानांतरित किया जा सकता है, यदि राष्ट्रपति इसे उचित मानते हैं।
भाग - 7 (पहली अनुसूची के भाग बी में राज्य, अनुच्छेद 238)
- भारतीय संविधान के 22 भागों में से जो मूल रूप से इसके गठन के दौरान अस्तित्व में थे, केवल एक भाग जिसे हटा दिया गया है, वह भाग VII है। इसे संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 द्वारा निरस्त कर दिया गया था। यह भाग-B भारतीय संघ में राज्यों से संबंधित था।
भाग - 8 (केंद्रशासित प्रदेश, अनुच्छेद 239-242)
- अनुच्छेद 239 - संघ राज्य क्षेत्र का प्रशासन: संघ राज्य क्षेत्र का प्रशासन राष्ट्रपति के अधीन होगा, और उसकी कार्यवाही संघ सरकार द्वारा निर्धारित की जाएगी।
- अनुच्छेद 240 - संघ राज्य क्षेत्र में विधायी शक्तियां: संघ राज्य क्षेत्र में विधायी शक्तियां केंद्र सरकार के अधीन होती हैं, और राष्ट्रपति को वहां के मामलों में कानून बनाने का अधिकार होता है।
- अनुच्छेद 241 - संघ राज्य क्षेत्र में उच्च न्यायालय का निर्माण: संघ राज्य क्षेत्र में उच्च न्यायालय का निर्माण राष्ट्रपति के आदेश से किया जा सकता है, जो कानून के तहत लागू होगा।
- अनुच्छेद 242 - संघ राज्य क्षेत्र के लिए न्यायिक प्रक्रियाएं: संघ राज्य क्षेत्र में न्यायिक प्रक्रियाओं और विधायिका के अधिकारों का पालन संविधान द्वारा निर्धारित किया जाएगा।
भाग - 9 (पंचायतें, अनुच्छेद 243-243'O')
- अनुच्छेद 243 - पंचायती राज संस्थाओं का निर्माण: संविधान में पंचायतों की स्थापना और उनके अधिकारों को निर्धारित किया गया है, जो स्थानीय शासन के रूप में कार्य करेंगे।
- अनुच्छेद 243A - पंचायतों के अधिकार: पंचायतों को संविधान में दिए गए अधिकारों के अनुसार कार्य करने की स्वतंत्रता होगी और वे स्थानीय स्तर पर प्रशासनिक कार्य करेंगे।
- अनुच्छेद 243B - पंचायती राज की संरचना: पंचायतों के लिए संविधान में एक व्यापक संरचना की व्यवस्था की गई है, जिसमें ग्राम पंचायत से लेकर जिला पंचायत तक शामिल हैं।
- अनुच्छेद 243C - पंचायती राज संस्थाओं का चुनाव: पंचायतों के सदस्यों का चुनाव जनप्रतिनिधि प्रणाली के तहत किया जाएगा, और चुनाव की प्रक्रिया राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित की जाएगी।
- अनुच्छेद 243D - पंचायतों में महिलाओं और अनुसूचित जाति/जनजाति का प्रतिनिधित्व: पंचायतों में महिलाओं और अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए आरक्षित सीटों का प्रावधान किया गया है, ताकि उनका समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जा सके।
- अनुच्छेद 243E - पंचायती राज संस्थाओं के कार्यकाल: पंचायतों का कार्यकाल पाँच वर्ष होता है, और इसका समय खत्म होने पर नई पंचायतों का चुनाव करवाया जाता है।
- अनुच्छेद 243F - पंचायती राज में अयोग्यता: पंचायतों के सदस्यों की अयोग्यता के मामले में संविधान में स्पष्ट प्रावधान हैं, और राज्य सरकारों को ऐसे मामलों में निर्णय लेने का अधिकार है।
- अनुच्छेद 243G - पंचायती राज संस्थाओं का वित्तीय अधिकार: पंचायतों को वित्तीय अधिकार दिए गए हैं, और उन्हें विभिन्न योजनाओं के संचालन और विकास के लिए धन प्राप्त होता है।
- अनुच्छेद 243H - पंचायती राज में वित्तीय नियंत्रण: पंचायतों के वित्तीय नियंत्रण की प्रक्रिया और उनके द्वारा किए गए कार्यों की निगरानी राज्य सरकार द्वारा की जाएगी।
- अनुच्छेद 243I - पंचायती राज की संविधानिक समीक्षा: पंचायती राज संस्थाओं की समीक्षा के लिए एक आयोग की व्यवस्था की जा सकती है, जो उनके कार्यों और कार्यक्षमता का मूल्यांकन करेगा।
- अनुच्छेद 243J - राज्य वित्त आयोग: राज्य सरकारों को पंचायती राज संस्थाओं के लिए एक वित्त आयोग स्थापित करने का प्रावधान दिया गया है, जो उनकी वित्तीय जरूरतों का मूल्यांकन करेगा।
- अनुच्छेद 243K - पंचायती राज चुनाव आयोग: पंचायतों के चुनावों की प्रक्रिया को निष्पक्ष और स्वतंत्र बनाने के लिए राज्य स्तर पर एक चुनाव आयोग की व्यवस्था की गई है।
- अनुच्छेद 243L - संविधान के तहत राज्य विधि में संशोधन: यदि किसी राज्य की विधान सभा पंचायती राज संस्थाओं के प्रावधानों को लागू करने में सक्षम नहीं है, तो केंद्र सरकार उसे लागू कर सकती है।
- अनुच्छेद 243M - पंचायती राज के लिए केन्द्र और राज्य का क्षेत्राधिकार: पंचायती राज संस्थाओं के अधिकार और कर्तव्यों के बारे में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच स्पष्ट सीमाएं तय की गई हैं।
- अनुच्छेद 243N - पंचायती राज के अंतर्गत समीक्षा प्रक्रिया: पंचायती राज संस्थाओं के कार्यों की समय-समय पर समीक्षा की जाएगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे अपने कार्यों को ठीक से निभा रहे हैं।
- अनुच्छेद 243O - पंचायती राज संस्थाओं की न्यायिक समीक्षा: पंचायतों के निर्णयों और कार्यों की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती, जब तक कि यह संविधान द्वारा निर्धारित न हो।
भाग - 9A (नगर पालिकाएँ, अनुच्छेद 243P से 243ZG)
- अनुच्छेद 243P - पंचायती राज की संरचनात्मक समीक्षा: पंचायती राज संस्थाओं के कार्यों और संरचनाओं की निगरानी के लिए एक आयोग का गठन किया जा सकता है, जो उनके कार्यों का मूल्यांकन करेगा।
- अनुच्छेद 243Q - पंचायती राज संस्थाओं के लिए राज्य सहायता: राज्य सरकारें पंचायती राज संस्थाओं को उचित वित्तीय सहायता प्रदान करेंगी ताकि वे अपने कार्यों को सुचारु रूप से चला सकें।
- अनुच्छेद 243R - पंचायती राज संस्थाओं के लिए संवैधानिक प्रक्रिया: राज्य सरकारें पंचायतों की कार्यप्रणाली के लिए आवश्यक विधि और प्रक्रिया बनाएंगी ताकि पंचायतें सही तरीके से कार्य कर सकें।
- अनुच्छेद 243S - पंचायती राज संस्थाओं का संगठन: पंचायती राज संस्थाओं के संगठन और उनके कार्यों के लिए संविधान में विशेष प्रावधान किए गए हैं ताकि वे कार्यक्षमता से अपना कार्य कर सकें।
- अनुच्छेद 243T - पंचायती राज संस्थाओं के लिए आयोग: पंचायती राज संस्थाओं के कार्यों की निगरानी और प्रभावी कार्यान्वयन के लिए आयोग का गठन किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 243U - पंचायती राज के लिए वित्त आयोग का गठन: राज्य सरकारों को पंचायती राज संस्थाओं के लिए एक वित्त आयोग गठित करने की आवश्यकता होगी, जो उनके वित्तीय मामलों का उचित मूल्यांकन करेगा।
- अनुच्छेद 243V - पंचायती राज संस्थाओं के लिए निर्वाचन आयोग: प्रत्येक राज्य में पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव की निगरानी के लिए एक निर्वाचन आयोग का गठन किया जाएगा।
- अनुच्छेद 243W - पंचायती राज संस्थाओं के लिए प्राधिकृत उपाय: राज्य सरकारें पंचायती राज संस्थाओं को उनके कार्यों में मदद करने के लिए विभिन्न उपायों का प्रावधान कर सकती हैं।
- अनुच्छेद 243X - पंचायती राज के लिए विशेष प्रावधान: पंचायती राज संस्थाओं के बारे में राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा विशेष प्रावधान किए जा सकते हैं, जो स्थानीय प्रशासन की मदद करेंगे।
- अनुच्छेद 243Y - पंचायती राज संस्थाओं के अधिकार और कर्तव्य: पंचायतों को अपनी कार्यप्रणाली में स्वायत्तता प्राप्त होगी, और उन्हें संविधान द्वारा निर्धारित अधिकारों के तहत कार्य करने की स्वतंत्रता होगी।
- अनुच्छेद 243Z - पंचायती राज संस्थाओं की समीक्षा और रिपोर्ट: राज्य सरकारें पंचायती राज संस्थाओं की समीक्षा और उनकी कार्यप्रणाली पर रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगी, ताकि उनकी कार्यक्षमता का मूल्यांकन किया जा सके।
- अनुच्छेद 243ZA - पंचायती राज के लिए शिक्षा आयोग: पंचायती राज संस्थाओं के लिए शिक्षा और विकास के लिए एक आयोग गठित किया जा सकता है, जो उनके कार्यों के लिए उचित योजना तैयार करेगा।
- अनुच्छेद 243ZB - पंचायती राज में प्रौद्योगिकी का समावेश: पंचायती राज संस्थाओं में प्रौद्योगिकी का समावेश किया जाएगा, ताकि उनके कार्यों में सुधार और दक्षता लाई जा सके।
- अनुच्छेद 243ZC - पंचायती राज में सुधार के उपाय: राज्य सरकारें पंचायतों के कार्यों में सुधार के लिए विशेष उपायों की योजना बना सकती हैं।
- अनुच्छेद 243ZD - पंचायती राज के सुधार के लिए आयोग का गठन: पंचायती राज संस्थाओं के सुधार के लिए राज्य और केंद्र सरकार द्वारा आयोग का गठन किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 243ZE - पंचायती राज के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए नीति निर्माण: पंचायती राज संस्थाओं के कार्यों को प्रभावी बनाने के लिए राज्य सरकारें नीतियाँ बना सकती हैं।
- अनुच्छेद 243ZF - पंचायती राज के लिए विशेष कार्यक्रम: राज्य सरकारें पंचायती राज संस्थाओं के विकास के लिए विशेष कार्यक्रम शुरू कर सकती हैं।
- अनुच्छेद 243ZG - पंचायती राज संस्थाओं का शारीरिक और मानसिक विकास: पंचायती राज संस्थाओं के कार्यों को शारीरिक और मानसिक विकास से जोड़कर उन्हें और अधिक प्रभावी बनाने के लिए योजनाएँ बनाई जाएंगी।
भाग - 9B (सहकारी समितियाँ, अनुच्छेद 243ZH)
- अनुच्छेद 243ZH - पंचायती राज संस्थाओं के लिए विशेष वित्तीय प्रावधान: पंचायती राज संस्थाओं के वित्तीय विकास के लिए केंद्र और राज्य सरकारें विशेष प्रावधान कर सकती हैं, ताकि पंचायतों को वित्तीय रूप से सशक्त बनाया जा सके।
भाग - 10 (अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्र, अनुच्छेद 244 और 244A)
- अनुच्छेद 244 - आदिवासी क्षेत्रों का प्रशासन और नियंत्रण: संविधान के तहत आदिवासी क्षेत्रों (जो अनुसूचित क्षेत्रों के रूप में परिभाषित हैं) का विशेष प्रशासनिक नियंत्रण होगा, और राज्य सरकारें इन क्षेत्रों में विकास योजनाओं के लिए उपयुक्त प्रावधान करेंगी।
- अनुच्छेद 244A - उत्तरी-पूर्वी राज्य में प्रशासन: विशेष रूप से उत्तर-पूर्वी राज्यों (जैसे असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम) के संदर्भ में, इन राज्यों में एक विशेष प्रशासनिक व्यवस्था लागू की जा सकती है, जो संविधान द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों के तहत होगी।
भाग - 11 (संघ और राज्यों के बीच संबंध, अनुच्छेद 245 से 263)
- अनुच्छेद 245 - केंद्र और राज्य की शक्ति और अधिकार: संविधान के तहत केंद्र और राज्य सरकारों के पास अपने-अपने क्षेत्रों में कानून बनाने की शक्ति होगी, लेकिन यह शक्ति संविधान द्वारा निर्धारित सीमाओं के भीतर होगी।
- अनुच्छेद 246 - कानून बनाने का अधिकार: संविधान में तीन सूचियाँ (संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची) निर्धारित की गई हैं, जिनके तहत केंद्र और राज्य सरकारों को कानून बनाने का अधिकार दिया गया है।
- अनुच्छेद 247 - केंद्र सरकार के लिए अतिरिक्त विधायी शक्तियाँ: यदि केंद्र सरकार किसी राज्य के मामले में कानून बनाने की आवश्यकता महसूस करती है, तो वह अतिरिक्त विधायी शक्तियाँ लागू कर सकती है।
- अनुच्छेद 248 - केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में कानून बनाना: यदि कोई मामला समवर्ती सूची में आता है, तो केंद्र सरकार उस पर कानून बना सकती है, और राज्य सरकारों का भी अधिकार होगा।
- अनुच्छेद 249 - समवर्ती सूची में कानून बनाना: समवर्ती सूची में शामिल विषयों पर केंद्र सरकार कानून बना सकती है, यदि राज्य विधानसभाएँ इसे मंजूरी देती हैं।
- अनुच्छेद 250 - राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान कानून बनाना: राष्ट्रीय आपातकाल की स्थिति में केंद्र सरकार को समवर्ती सूची में शामिल मामलों पर कानून बनाने का अधिकार होगा, चाहे राज्य सरकारें इससे असहमत हों।
- अनुच्छेद 251 - राज्य और केंद्र के बीच कानूनों का संघर्ष: यदि राज्य और केंद्र के बीच एक ही विषय पर दो कानून हैं, तो केंद्र का कानून प्रभावी होगा, बशर्ते यह संविधान के तहत तय किया गया हो।
- अनुच्छेद 252 - राज्य विधानसभाओं के बीच सहमति से कानून बनाना: दो या दो से अधिक राज्य अपने मामलों में एक साथ कानून बनाने के लिए सहमति दे सकते हैं।
- अनुच्छेद 253 - संघ के अंतरराष्ट्रीय समझौतों के लिए कानून बनाना: केंद्र सरकार को अंतरराष्ट्रीय समझौतों और संधियों के लिए आवश्यक कानून बनाने का अधिकार है।
- अनुच्छेद 254 - केंद्र और राज्य के कानूनों का संघर्ष: यदि राज्य और केंद्र सरकार के कानून एक ही विषय पर भिन्न होते हैं, तो केंद्र का कानून प्रभावी होगा, जब तक कि राज्य सरकार द्वारा विशेष अनुमति न दी जाए।
- अनुच्छेद 255 - केंद्र के कानूनों के लागू होने के लिए राज्य की सहमति: यदि केंद्र सरकार राज्य के मामलों में कोई कानून बनाती है, तो राज्य विधानसभाओं की सहमति की आवश्यकता हो सकती है।
- अनुच्छेद 256 - केंद्र और राज्य के बीच सहयोग: केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय बनाए रखने के लिए संविधान में प्रावधान किए गए हैं, ताकि वे एक-दूसरे के कार्यों में हस्तक्षेप न करें।
- अनुच्छेद 257 - केंद्र का राज्य सरकार को निर्देश: केंद्र सरकार राज्य सरकारों को उनके प्रशासनिक कार्यों में दिशा-निर्देश दे सकती है, यदि यह संविधान की आवश्यकताओं के अनुसार हो।
- अनुच्छेद 258 - केंद्र को राज्य के अधिकार का प्रयोग: केंद्र सरकार को राज्य के अधिकारों का प्रयोग करने की अनुमति दी जा सकती है, यदि राज्य सरकार सहमति देती है।
- अनुच्छेद 259 - केंद्र और राज्य के बीच अधिकारों का हस्तांतरण: केंद्र और राज्य सरकारों के बीच अधिकारों का हस्तांतरण या वितरण संविधान द्वारा नियंत्रित होता है।
- अनुच्छेद 260 - संघ के अधिकार क्षेत्रों में क्षेत्रीय समझौते: केंद्र और राज्य सरकारों के बीच क्षेत्रीय समझौते या समझौतों की प्रक्रिया को संविधान के माध्यम से नियंत्रित किया जाएगा।
- अनुच्छेद 261 - संघ के निर्णयों का राज्य सरकारों द्वारा पालन: संघ द्वारा किए गए किसी भी निर्णय को राज्य सरकारों द्वारा पालन करना होगा, जैसा कि संविधान में तय किया गया है।
- अनुच्छेद 262 - नदियों के पानी का विवाद: यदि केंद्र और राज्यों के बीच नदियों के पानी के बंटवारे या विवाद पर मतभेद होते हैं, तो इस मामले में उच्चतम न्यायालय या एक विशेष न्यायाधिकरण द्वारा निर्णय लिया जाएगा।
- अनुच्छेद 263 - संघीय मामलों पर विवाद समाधान: संघीय मामलों में उत्पन्न होने वाले विवादों के समाधान के लिए केंद्र सरकार एक अंतरराज्यीय परिषद का गठन कर सकती है, जिसे संविधान में विशेष रूप से परिभाषित किया गया है।
भाग - 12 (वित्त, संपत्ति, अनुबंध और मुकदमे, अनुच्छेद 264 से 300A)
- अनुच्छेद 264 - संविधान के तहत केंद्र और राज्य के बीच विवादों का समाधान: राज्य और केंद्र के बीच उत्पन्न होने वाले विवादों के समाधान के लिए संविधान में विशेष प्रावधान हैं।
- अनुच्छेद 265 - कराधान के अधिकार: कोई भी कर केवल उस विधि के द्वारा ही लगाया जा सकता है, जिसे संसद या राज्य विधानमंडल ने पारित किया हो, और इसमें कोई अन्य प्रावधान नहीं हो सकता।
- अनुच्छेद 266 - राज्य के खजाने में संचित आय: राज्य सरकारों के पास प्राप्त होने वाली सभी राजस्व आय राज्य खजाने में जमा की जाएगी, जिसे राज्य विधानमंडल के माध्यम से नियंत्रित किया जाता है।
- अनुच्छेद 267 - राज्य के खजाने में अस्थायी प्रावधान: राज्य के खजाने में अस्थायी धन की व्यवस्था के लिए राज्य सरकार को एक विशेष कोष बनाने का अधिकार होता है।
- अनुच्छेद 268 - संघीय कराधान: कुछ कर केवल संघ के द्वारा लगाए जाते हैं, और इन करों का संग्रहण केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है।
- अनुच्छेद 269 - राज्य के अधिकार क्षेत्र में कराधान: कुछ कर राज्यों द्वारा लगाए जाते हैं, और इन करों का संग्रहण राज्य सरकार द्वारा किया जाता है।
- अनुच्छेद 270 - राज्य और केंद्र के बीच कर वितरण: कुछ विशेष प्रकार के करों को केंद्र और राज्य सरकारों के बीच वितरित किया जाएगा।
- अनुच्छेद 271 - कर संग्रह में वृद्धि: केंद्र सरकार कुछ परिस्थितियों में, कर संग्रह को बढ़ाने के लिए अतिरिक्त करों को लागू कर सकती है।
- अनुच्छेद 272 - करों की एकता: संविधान में निर्धारित कुछ विशेष करों को केंद्र और राज्य दोनों द्वारा एक साथ लागू किया जा सकता है, जो एक समान कर संग्रहण नीति के तहत कार्य करेगा।
- अनुच्छेद 273 - राज्य सरकारों को वित्तीय सहायता: राज्य सरकारों को संघ सरकार से वित्तीय सहायता प्राप्त होती है, और इसके वितरण के लिए एक वित्त आयोग की स्थापना की जाती है।
- अनुच्छेद 274 - विधायिका द्वारा अनुमोदित कराधान: राज्य सरकारों द्वारा प्रस्तावित कोई भी कर विधायिका द्वारा अनुमोदित किया जाएगा और केंद्र से स्वीकृति प्राप्त करेगा।
- अनुच्छेद 275 - संघीय अनुदान: संघ सरकार राज्य सरकारों को अनुदान देती है, जो विशेष परिस्थितियों में राज्य के विकास को बढ़ावा देने के लिए उपयोग किए जाते हैं।
- अनुच्छेद 276 - निष्कासन और विशेष कराधान प्रावधान: संविधान में कुछ विशेष करों के बारे में प्रावधान दिए गए हैं, जो राज्य सरकारों द्वारा लागू किए जा सकते हैं।
- अनुच्छेद 277 - स्वतंत्र आय का संग्रह: राज्य सरकारों को अपने विशिष्ट अधिकार क्षेत्र के तहत स्वतंत्र रूप से आय अर्जित करने का अधिकार होगा।
- अनुच्छेद 278 - करों की समीक्षा: केंद्र और राज्य सरकारों के बीच करों के मामले में समीक्षा और विवाद निवारण के लिए आयोग की स्थापना की जा सकती है।
- अनुच्छेद 279 - वित्तीय मामलों की रिपोर्टिंग: राज्य और केंद्र सरकारों को वित्तीय मामलों की रिपोर्टिंग करना आवश्यक है, ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि वित्तीय निर्णय संविधान के अनुरूप हों।
- अनुच्छेद 280 - वित्त आयोग का गठन: एक वित्त आयोग का गठन किया जाएगा, जो केंद्र और राज्य सरकारों के वित्तीय मामलों को नियंत्रित करने के लिए सिफारिशें करेगा।
- अनुच्छेद 281 - वित्त आयोग की सिफारिशों का पालन: वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिशों का पालन केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा किया जाएगा, और यह वित्तीय मामलों के सुधार में मदद करेगा।
- अनुच्छेद 282 - केंद्र और राज्य सरकारों के बीच वित्तीय सहायता: केंद्र और राज्य सरकारों के बीच वित्तीय सहायता देने के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं ताकि राज्य अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कर सकें।
- अनुच्छेद 283 - वित्तीय मामलों के प्रशासन का प्रबंधन: राज्य और केंद्र सरकारों के वित्तीय मामलों का उचित प्रबंधन किया जाएगा, और उनके खर्चों की निगरानी की जाएगी।
- अनुच्छेद 284 - संघीय व्यय का अनुमोदन: केंद्र और राज्य के व्यय का अनुमोदन संसद और राज्य विधानसभाओं द्वारा किया जाएगा।
- अनुच्छेद 285 - राज्य संपत्ति पर संघ का नियंत्रण: संघ सरकार को राज्य संपत्ति पर नियंत्रण रखने का अधिकार होगा, यदि यह संविधान के तहत निर्धारित है।
- अनुच्छेद 286 - राज्य की सीमा के बाहर व्यापार पर कराधान: राज्य सरकारें अपनी सीमा के बाहर व्यापार पर कर नहीं लगा सकतीं, लेकिन संघ सरकार को इस पर अधिकार होगा।
- अनुच्छेद 287 - संघीय स्तर पर व्यापार और वाणिज्य: केंद्र सरकार के लिए व्यापार और वाणिज्य से संबंधित करों का निर्धारण करना और उन्हें लागू करना होगा।
- अनुच्छेद 288 - राज्य सरकारों द्वारा कराधान से संबंधित जानकारी: राज्य सरकारें कराधान से संबंधित सभी जानकारी सार्वजनिक करेंगी, ताकि नागरिकों को यह जानकारी आसानी से उपलब्ध हो सके।
- अनुच्छेद 289 - राज्य की संपत्ति पर संघ का अधिकार: संघ सरकार को राज्य सरकार की संपत्ति पर नियंत्रण रखने का अधिकार होगा, ताकि संविधान के तहत इसे सही तरीके से इस्तेमाल किया जा सके।
- अनुच्छेद 290 - राज्य की संपत्ति का वितरण: राज्य सरकारों के पास अपनी संपत्ति का वितरण करने का अधिकार होगा, जो राज्य के विकास के लिए उपयोगी होगा।
- अनुच्छेद 291 - वित्तीय सहायता की सिफारिशें: वित्त आयोग द्वारा राज्य सरकारों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए सिफारिशें की जाएंगी, ताकि राज्य अपने प्रशासनिक कार्यों को उचित रूप से कर सकें।
- अनुच्छेद 292 - संघीय सरकार द्वारा वित्तीय प्रबंधन: संघीय सरकार द्वारा वित्तीय प्रबंधन के तहत विभिन्न राज्य सरकारों को उपयुक्त सहायता और संसाधन प्रदान किए जाएंगे।
- अनुच्छेद 293 - राज्य सरकारों का कर्ज: राज्य सरकारों को संघ से कर्ज लेने की अनुमति दी जा सकती है, लेकिन यह केवल संसद के अनुमोदन के बाद होगा।
- अनुच्छेद 294 - राज्य संपत्ति की संविदानिक स्थिति: राज्य सरकारों के पास अपनी संपत्ति और वित्तीय मामलों का नियंत्रण होगा, जो संविधान के अनुसार लागू किया जाएगा।
- अनुच्छेद 295 - राज्य की संपत्ति के अधिकार: राज्य सरकारों के पास अपनी संपत्ति और बकाया धन का अधिकार होगा, लेकिन इसे संविधान द्वारा निर्धारित नियमों के अनुसार नियंत्रित किया जाएगा।
- अनुच्छेद 296 - राज्य संपत्ति और कर्ज का निर्धारण: राज्य सरकारें अपनी संपत्ति और कर्ज को नियंत्रित करने के लिए संविधान में निर्धारित प्रावधानों का पालन करेंगी।
- अनुच्छेद 297 - संघीय और राज्य संपत्ति का हस्तांतरण: संघ और राज्य सरकारों के बीच संपत्ति का हस्तांतरण संविधान द्वारा नियंत्रित किया जाएगा।
- अनुच्छेद 298 - संघीय और राज्य सरकारों के बीच अधिकारों का प्रयोग: संघ और राज्य सरकारों के बीच अधिकारों के हस्तांतरण और प्रयोग के लिए संविधान में विशेष प्रावधान किए गए हैं।
- अनुच्छेद 299 - राज्य की संपत्ति पर केंद्र का अधिकार: केंद्र सरकार को राज्य की संपत्ति पर नियंत्रण और अधिकार प्राप्त होगा, यदि ऐसा संविधान द्वारा निर्धारित है।
- अनुच्छेद 300 - राज्य के पास अनुबंध करने का अधिकार: राज्य सरकारों को संविधान के तहत अनुबंध करने का अधिकार प्राप्त होगा, जिससे राज्य अपनी जरूरतों के अनुसार विभिन्न समझौतों और अनुबंधों को निष्पादित कर सकें।
- अनुच्छेद 300A - स्वामित्व का अधिकार: कोई भी व्यक्ति अपनी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा, सिवाय कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के। यह प्रावधान व्यक्तिगत संपत्ति के अधिकार की रक्षा करता है।
भाग - 13 (भारत के क्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य, और समागम, अनुच्छेद 301 से 307)
- अनुच्छेद 301 - वाणिज्य, व्यापार और हस्तांतरण की स्वतंत्रता: संविधान के तहत पूरे भारत में वाणिज्य, व्यापार और हस्तांतरण की स्वतंत्रता होगी, लेकिन इसके लिए राज्य सरकारों को उचित सीमाएँ निर्धारित करने का अधिकार होगा।
- अनुच्छेद 302 - वाणिज्य पर प्रतिबंध: संसद को किसी विशेष वाणिज्य या व्यापार पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार है, यदि यह देश के लिए आवश्यक हो।
- अनुच्छेद 303 - राज्य के व्यापार पर राज्य विधायिका की शक्ति: राज्य सरकारों को अपनी सीमा के भीतर व्यापार, उद्योग और हस्तांतरण पर नियंत्रण रखने का अधिकार होता है, बशर्ते वह संघीय नीति के खिलाफ न हो।
- अनुच्छेद 304 - राज्य में व्यापार पर प्रतिबंध: यदि किसी राज्य द्वारा लगाए गए व्यापार प्रतिबंध संघीय नीति के खिलाफ हैं, तो संसद उस राज्य को विशेष निर्णयों के लिए निर्देशित कर सकती है।
- अनुच्छेद 305 - केंद्र के व्यापार पर नियंत्रण: केंद्र सरकार को व्यापार और उद्योग के मामले में नियंत्रण और सुधार करने का अधिकार होगा, यदि वह राज्य हित में हो।
- अनुच्छेद 306 - पूर्व में प्रचलित कानून: जिन राज्यों में पहले से किसी प्रकार का वाणिज्य या व्यापार पर क़ानूनी प्रावधान हैं, वे प्रावधान संविधान के अनुरूप होंगे, जब तक कि संसद उनमें संशोधन न करे।
- अनुच्छेद 307 - वाणिज्य, व्यापार और हस्तांतरण पर अनुशासन: संसद और राज्य सरकारें इस पर क़ानूनी व्यवस्था और नियंत्रण के लिए एक स्वतंत्र आयोग का गठन कर सकती हैं, ताकि विभिन्न व्यापारिक प्रतिबंधों और नियमों का पालन किया जा सके।
भाग - 14 (संघ और राज्यों के अधीन सेवाएँ, अनुच्छेद 308 से 323)
- अनुच्छेद 308 - विभिन्न संस्थाओं के लिए सामान्य नियम: संविधान में निर्धारित प्रशासनिक ढांचे के तहत विभिन्न संस्थाओं, विभागों और सेवाओं के लिए सामान्य नियम बनाए जाएंगे।
- अनुच्छेद 309 - सरकारी सेवाओं की नियुक्ति: राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा नियुक्तियों के लिए सेवा नियम बनाए जाएंगे, जिनका पालन सभी सरकारी सेवाओं में किया जाएगा।
- अनुच्छेद 310 - कर्मचारियों का कार्यकाल: राज्य और केंद्र सरकारों के कर्मचारियों के कार्यकाल को संविधान के अनुसार निर्धारित किया जाएगा, और उनकी सेवाओं के संबंध में अनुशासनात्मक कार्रवाई की प्रक्रिया भी निर्धारित होगी।
- अनुच्छेद 311 - कर्मचारी को अनुशासनात्मक कार्यवाही से बचाव: कर्मचारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही के मामले में उचित सुनवाई का अधिकार होगा, और उन्हें उचित अवसर दिया जाएगा।
- अनुच्छेद 312 - संसद द्वारा संघीय सेवा का निर्माण: संसद संघीय सेवाओं का निर्माण करने के लिए अधिनियम पारित कर सकती है, जिसमें केंद्र सरकार के अधिकारियों के लिए नियम और व्यवस्थाएँ तय की जाती हैं।
- अनुच्छेद 313 - अधिनियम और नियमों का प्रावधान: केंद्र और राज्य सरकारें संघीय सेवाओं के लिए विभिन्न नियम और अधिनियम बना सकती हैं, जो कर्मचारियों के कार्यकाल और अन्य प्रशासनिक मामलों के प्रबंधन के लिए लागू होंगे।
- अनुच्छेद 314 - राज्य सेवाओं के कर्मियों का कार्यकाल: राज्य सेवाओं के कर्मियों के लिए कार्यकाल और उनके सेवा नियम संविधान द्वारा निर्धारित किए जाएंगे।
- अनुच्छेद 315 - सार्वजनिक सेवा आयोगों की स्थापना: केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा सार्वजनिक सेवा आयोगों की स्थापना की जाएगी, जिनका कार्य सरकारी सेवाओं में नियुक्ति और चयन प्रक्रिया को नियंत्रित करना होगा।
- अनुच्छेद 316 - सार्वजनिक सेवा आयोगों के अध्यक्ष और सदस्य: सार्वजनिक सेवा आयोगों के अध्यक्ष और अन्य सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाएंगे और उनकी कार्यवाहियों के लिए उचित दिशानिर्देश जारी किए जाएंगे।
- अनुच्छेद 317 - सार्वजनिक सेवा आयोगों के अध्यक्ष और सदस्य की नियुक्ति का निलंबन: सार्वजनिक सेवा आयोग के अध्यक्ष या सदस्य को निलंबित करने के लिए राष्ट्रपति के पास विशेष अधिकार होगा।
- अनुच्छेद 318 - सार्वजनिक सेवा आयोगों की कार्यप्रणाली: सार्वजनिक सेवा आयोगों की कार्यप्रणाली को निर्धारित करने के लिए राष्ट्रपति दिशानिर्देश जारी करेंगे, जो विभिन्न आयोगों के कार्यों और उनके संचालन को नियंत्रित करेंगे।
- अनुच्छेद 319 - सार्वजनिक सेवा आयोगों के लिए कार्यों का विश्लेषण: सार्वजनिक सेवा आयोगों द्वारा की गई नियुक्तियों, चयन और अन्य कार्यों की समीक्षा की जाएगी, ताकि उनकी निष्पक्षता और प्रभावशीलता सुनिश्चित की जा सके।
- अनुच्छेद 320 - सार्वजनिक सेवा आयोग के कामकाज की निगरानी: सार्वजनिक सेवा आयोग के कामकाज की निगरानी संसद और अन्य संबंधित आयोगों द्वारा की जाएगी, ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि वे संविधान और कानून के अनुसार कार्य करें।
- अनुच्छेद 321 - अदालतों और अन्य प्राधिकरणों का कार्य: संविधान में निर्धारित अन्य प्राधिकरण और अदालतें प्रशासनिक मामलों में न्याय सुनिश्चित करने के लिए कार्य करेंगी।
- अनुच्छेद 322 - आय के स्रोत: राज्य सरकारें अपनी आय के लिए विभिन्न स्रोतों का निर्धारण कर सकती हैं, जिनमें कराधान, निवेश और अन्य वित्तीय साधन शामिल हो सकते हैं।
- अनुच्छेद 323 - प्राधिकरणों द्वारा अनुशासन: राज्य सरकारें और संघीय सरकारें संविधान के तहत निर्धारित प्राधिकरणों को लागू करने और अनुशासन बनाने के लिए उपयुक्त कदम उठा सकती हैं।
भाग - 14A (न्यायाधिकरण, अनुच्छेद 323A और 323B)
- अनुच्छेद 323A - न्यायिक आयोगों का गठन: संसद को इस अनुच्छेद के तहत न्यायिक आयोगों के गठन के लिए विधि बनाने का अधिकार है, जो विशेष मामलों में न्यायिक प्रक्रिया की देखरेख और प्रशासन करेंगे।
- अनुच्छेद 323B - विशेषाधिकार और न्यायिक प्रक्रिया: इस अनुच्छेद के तहत संसद और राज्य विधानसभाएँ विशेष मामलों के लिए आयोगों और प्राधिकरणों की स्थापना कर सकती हैं, जो नागरिकों के विशेष अधिकारों और न्यायिक प्रक्रिया से संबंधित मामलों में निर्णय लेने के लिए सक्षम होंगे।
भाग - 15 (निर्वाचन, अनुच्छेद 324 से 329)
- अनुच्छेद 324 - निर्वाचन आयोग की नियुक्ति और कार्य: भारत में चुनावों के संचालन और निगरानी के लिए एक स्वतंत्र निर्वाचन आयोग का गठन किया जाएगा, जिसका कार्य निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनावों की प्रक्रिया को सुनिश्चित करना है।
- अनुच्छेद 325 - निर्वाचन में समानता का अधिकार: भारतीय निर्वाचन प्रक्रिया में सभी नागरिकों को समान मतदान का अधिकार होगा, और कोई भी व्यक्ति जाति, धर्म, लिंग या भाषा के आधार पर भेदभाव का शिकार नहीं होगा।
- अनुच्छेद 326 - सार्वजनिक निर्वाचन का अधिकार: भारत में आम चुनाव सार्वभौमिक, समान और प्रत्यक्ष मतदान के द्वारा होंगे, जिसमें प्रत्येक नागरिक को अपना मतदान करने का अधिकार होगा।
- अनुच्छेद 327 - निर्वाचन के लिए विधान: संसद को निर्वाचन से संबंधित विषयों पर विधि बनाने का अधिकार है, और राज्य विधानसभाओं को भी अपने-अपने राज्यों के चुनावों के लिए नियम बनाने का अधिकार प्राप्त होगा।
- अनुच्छेद 328 - राज्य विधानसभाओं के चुनावों के लिए विधियाँ: प्रत्येक राज्य अपनी विधान सभा के चुनावों से संबंधित विधि बना सकता है, जो संविधान के अनुरूप होगी।
- अनुच्छेद 329 - निर्वाचन में हस्तक्षेप पर प्रतिबंध: संसद या राज्य विधानसभाएँ किसी निर्वाचन के संबंध में किसी भी मामले में विधिक हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं, जब तक कि संविधान में इसका प्रावधान न हो।
भाग - 16 (कुछ वर्गों से संबंधित विशेष प्रावधान, अनुच्छेद 330 से 342)
- अनुच्छेद 330 - संसद में प्रतिनिधित्व: संसद में राज्यों और संघ क्षेत्र के लिए प्रतिनिधित्व का निर्धारण किया जाएगा, ताकि सभी वर्गों और समुदायों का उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जा सके।
- अनुच्छेद 331 - संसद में विशेष प्रतिनिधित्व: यदि किसी विशेष समुदाय को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिलता है, तो संसद विशेष प्रतिनिधित्व की व्यवस्था कर सकती है, ताकि समाज के सभी वर्गों की आवाज सुनी जा सके।
- अनुच्छेद 332 - राज्य विधानसभाओं में प्रतिनिधित्व: राज्य विधानसभाओं में राज्यों और संघ क्षेत्रों के लिए प्रतिनिधित्व का निर्धारण किया जाएगा, ताकि प्रत्येक राज्य का उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सके।
- अनुच्छेद 333 - राज्य विधानसभाओं में विशेष प्रतिनिधित्व: यदि राज्य विधानसभा में किसी विशेष समुदाय को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिलता है, तो राज्य सरकार इस संबंध में व्यवस्था कर सकती है।
- अनुच्छेद 334 - विशेष प्रतिनिधित्व की अवधि: संविधान में निर्धारित समय के लिए विशेष प्रतिनिधित्व का प्रावधान होगा, जो किसी समुदाय या वर्ग को उचित अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से होगा।
- अनुच्छेद 335 - श्रेणीबद्ध अधिकारों और विशेषाधिकारों का संरक्षण: अनुसूचित जातियों और जनजातियों के अधिकारों की रक्षा की जाएगी, ताकि उन्हें शिक्षा, रोजगार और समाज में समान अवसर मिल सकें।
- अनुच्छेद 336 - भारतीय भाषाओं का संरक्षण: संविधान में भारतीय भाषाओं के संरक्षण और प्रचार-प्रसार के लिए विशेष प्रावधान होंगे, ताकि भाषाओं की विविधता को संरक्षित किया जा सके।
- अनुच्छेद 337 - संबंधित समुदायों के अधिकार: अनुसूचित जातियों और जनजातियों के सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों का सम्मान किया जाएगा, और उन्हें संविधान में निर्धारित अधिकारों का लाभ मिलेगा।
- अनुच्छेद 338 - राष्ट्रीय आयोग का गठन: अनुसूचित जातियों और जनजातियों के मामलों के लिए राष्ट्रीय आयोग का गठन किया जाएगा, जो इन समुदायों के कल्याण के लिए कार्य करेगा।
- अनुच्छेद 339 - राष्ट्रीय आयोग का कार्य: राष्ट्रीय आयोग का कार्य होगा कि वह अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए सरकार द्वारा किए गए उपायों का मूल्यांकन और निगरानी करे, ताकि उनकी सामाजिक स्थिति में सुधार हो सके।
- अनुच्छेद 340 - सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार: सरकार को सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों के संदर्भ में उपाय करने का अधिकार होगा, ताकि अनुसूचित जातियों और जनजातियों के कल्याण को बढ़ावा दिया जा सके।
- अनुच्छेद 341 - अनुसूचित जातियों की सूची: राष्ट्रपति को अधिकार होगा कि वह संविधान के तहत अनुसूचित जातियों की सूची तैयार करें, जिसमें उन जातियों को शामिल किया जाएगा, जो समाज में पिछड़ी हुई हैं।
- अनुच्छेद 342 - अनुसूचित जनजातियों की सूची: राष्ट्रपति को अधिकार होगा कि वह संविधान के तहत अनुसूचित जनजातियों की सूची तैयार करें, जिसमें उन जनजातियों को शामिल किया जाएगा, जो समाज में पिछड़ी हुई हैं।
भाग - 17 (राजभाषा, अनुच्छेद 343 से 351)
- अनुच्छेद 343 - राष्ट्रीय भाषा: भारतीय संघ की आधिकारिक भाषा हिंदी होगी। हालांकि, अंग्रेजी को भी 15 वर्षों तक संघ के कार्यों के लिए एक सहायक भाषा के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 344 - राजभाषा आयोग: एक केंद्रीय राजभाषा आयोग का गठन किया जाएगा, जो यह सुनिश्चित करेगा कि हिंदी और अन्य भाषाओं के प्रयोग में संतुलन बना रहे और हिंदी को बढ़ावा दिया जाए।
- अनुच्छेद 345 - राज्य की भाषा: प्रत्येक राज्य को यह अधिकार होगा कि वह अपनी राज्य भाषा निर्धारित करे, जो राज्य के अंदर सरकारी कार्यों में उपयोग की जाएगी।
- अनुच्छेद 346 - संघ की भाषा: संघ के कार्यों के लिए हिंदी को प्राथमिक भाषा के रूप में प्रयोग किया जाएगा, लेकिन यदि राज्य की आवश्यकता हो तो वह अपनी भाषाओं का भी उपयोग कर सकते हैं।
- अनुच्छेद 347 - विशेष भाषा आवश्यकताओं के लिए उपाय: यदि किसी राज्य या समुदाय को अपनी भाषा के लिए विशेष अधिकार की आवश्यकता हो, तो राष्ट्रपति उस राज्य या समुदाय के लिए उपयुक्त उपाय कर सकते हैं।
- अनुच्छेद 348 - संघीय न्यायपालिका की भाषा: संघ की न्यायपालिका के कार्यों के लिए एक भाषा निर्धारित की जाएगी, और उच्च न्यायालयों के निर्णयों का अनुवाद भी आवश्यक होगा।
- अनुच्छेद 349 - भाषा का प्रश्न: संविधान में किसी भी प्रकार के भाषाई विवाद को हल करने के लिए एक विधिक प्रक्रिया निर्धारित की जाएगी।
- अनुच्छेद 350 - भाषाई अधिकार: प्रत्येक नागरिक को अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार होगा, और वे अपनी भाषा में किसी भी सरकारी कामकाजी प्रक्रिया में भाग ले सकेंगे।
- अनुच्छेद 350A - अनुसूचित जातियों और जनजातियों के बच्चों के लिए शिक्षा: सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि अनुसूचित जातियों और जनजातियों के बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा दी जाए।
- अनुच्छेद 351 - हिंदी के प्रचार और प्रसार के लिए उपाय: सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने होंगे कि हिंदी को राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित और प्रसारित किया जाए और इसे एक व्यापक रूप में अपनाया जाए।
भाग - 18 (आपातकालीन प्रावधान, अनुच्छेद 352 से 360)
- अनुच्छेद 352 - आपातकाल की घोषणा: यदि भारत या किसी राज्य में संकट का सामना हो, तो राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं, जब उन्हें लगता है कि भारत की सुरक्षा खतरे में है।
- अनुच्छेद 353 - आपातकाल के दौरान शक्तियों का प्रयोग: आपातकाल की स्थिति में, सरकार को उन सभी आवश्यक कदमों को उठाने का अधिकार होगा, जो संविधान के तहत लागू न हों।
- अनुच्छेद 354 - आवश्यक विधियाँ: आपातकाल के दौरान, राष्ट्रपति के आदेश के तहत, संविधान में बदलाव किए जा सकते हैं, और संसद के अधिकारों को आवश्यकतानुसार संशोधित किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 355 - राज्य सरकारों के कर्तव्य: राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि राज्य में राज्य की सुरक्षा और संविधान के अनुपालन को बनाए रखा जाए।
- अनुच्छेद 356 - राज्य में राष्ट्रपति शासन: यदि राष्ट्रपति को लगता है कि राज्य में संवैधानिक प्रबंधन विफल हो गया है, तो वह राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर सकते हैं।
- अनुच्छेद 357 - राष्ट्रपति शासन के तहत कार्य: राष्ट्रपति शासन के दौरान, राष्ट्रपति राज्य के मामलों को केंद्रीय सरकार के नियंत्रण में ले सकते हैं, और राज्य की कार्यकारी शक्तियां केंद्र के पास हस्तांतरित हो सकती हैं।
- अनुच्छेद 358 - राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान नागरिक अधिकारों पर प्रतिबंध: जब राष्ट्रीय आपातकाल लागू होता है, तो राष्ट्रपति नागरिक अधिकारों को निलंबित कर सकते हैं, ताकि राष्ट्रीय सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके।
- अनुच्छेद 359 - आपातकाल के दौरान नागरिक अधिकारों का निलंबन: राष्ट्रपति को यह अधिकार होगा कि वह आपातकाल की स्थिति में किसी भी नागरिक अधिकार को निलंबित कर सकते हैं, हालांकि यह केवल निश्चित क्षेत्रों तक ही सीमित होगा।
- अनुच्छेद 360 - वित्तीय आपातकाल: यदि राष्ट्रपति को यह लगता है कि भारत की वित्तीय स्थिति संकट में है, तो वह वित्तीय आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं, ताकि सरकार को वित्तीय मुद्दों पर आवश्यक कदम उठाने का अधिकार मिल सके।
भाग - 19 (विविध, अनुच्छेद 361 से 367)
- अनुच्छेद 361 - राष्ट्रपति और राज्यपाल की संरक्षण: राष्ट्रपति और राज्यपाल को उनके पदों के दौरान आपराधिक कार्यवाही से संरक्षण प्राप्त होता है, अर्थात् उन्हें उनके कार्यों के कारण दंडित नहीं किया जा सकता, सिवाय कुछ विशेष परिस्थितियों के।
- अनुच्छेद 362 - मूल्यांकन और सम्मान: राष्ट्रपति और राज्यपाल के पद की गरिमा को बनाए रखने के लिए उनके द्वारा किए गए निर्णयों या आदेशों की समीक्षा की जा सकती है, लेकिन इसके लिए विशिष्ट प्रक्रिया का पालन किया जाएगा।
- अनुच्छेद 363 - सहमति और संविदान संबंधी विवाद: यदि कोई संविदान या कानून से संबंधित विवाद उत्पन्न होता है, तो उसे राष्ट्रपति द्वारा एक विशेष न्यायिक प्रक्रिया के तहत हल किया जाएगा।
- अनुच्छेद 364 - संविधान का अनुपालन: संविधान की सभी धाराएँ संबंधित संघीय या राज्य सरकारों द्वारा अनुपालन योग्य होंगी। यह सुनिश्चित करेगा कि सभी संवैधानिक प्रावधानों का सही तरीके से पालन किया जाए।
- अनुच्छेद 365 - संघीय सरकार के निर्देशों का पालन: यदि राज्य सरकारें केंद्र सरकार के आदेशों का पालन नहीं करती हैं, तो राष्ट्रपति राज्य के मामलों में हस्तक्षेप कर सकते हैं।
- अनुच्छेद 366 - किसी शब्द या अभिव्यक्ति की परिभाषा: इस अनुच्छेद में संविधान के विभिन्न शब्दों, जैसे "राज्य", "संघ", "संविधान", "कर्मचारी" आदि की परिभाषाएं दी गई हैं, ताकि उनके सही और स्पष्ट अर्थ समझे जा सकें।
- अनुच्छेद 367 - संविधान के प्रावधानों की व्याख्या: संविधान की किसी भी धारा या अनुच्छेद की व्याख्या में किसी भी असमंजस या विवाद को हल करने के लिए राष्ट्रपति द्वारा दिशानिर्देश जारी किए जा सकते हैं।
भाग - 20 (संविधान का संशोधन, अनुच्छेद 368)
- अनुच्छेद 368 - संविधान में संशोधन: यह अनुच्छेद संविधान में संशोधन की प्रक्रिया को निर्धारित करता है। संविधान को संसद के द्वारा संशोधित किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए विशेष प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक होता है। संशोधन प्रस्ताव को संसद के दोनों सदनों में बहुमत से पारित किया जाता है। कुछ महत्वपूर्ण संशोधनों के लिए राज्यों से भी सहमति प्राप्त करना आवश्यक हो सकता है।
भाग - 21 (अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबंध, अनुच्छेद 369 से 392)
- अनुच्छेद 369 - संघीय करों का विधायी अधिकार: यह अनुच्छेद संघ और राज्यों के बीच केंद्रीय और राज्य करों के संबंध में विधायी अधिकारों को विनियमित करता है। इसमें केंद्रीय सरकार को विशेष मामलों में राज्यों के कराधान के अधिकारों के हस्तांतरण की अनुमति दी जाती है।
- अनुच्छेद 370 - जम्मू और कश्मीर राज्य से संबंधित विशेष प्रावधान: अनुच्छेद 370 जम्मू और कश्मीर को विशेष स्थिति प्रदान करता था, जिसके अंतर्गत राज्य की संविधानिक व्यवस्था और अधिकारों को विशिष्ट रूप से निर्धारित किया गया था। 2019 में इस अनुच्छेद को निरस्त कर दिया गया।
- अनुच्छेद 371 - विशेष प्रावधान: यह अनुच्छेद भारत के विभिन्न राज्यों के लिए कुछ विशेष अधिकार और प्रावधान देता है, जिनमें महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर-पूर्वी राज्य, और अन्य राज्य शामिल हैं।
- अनुच्छेद 372 - भारत में लागू कानून: यह अनुच्छेद यह निर्दिष्ट करता है कि भारत में जब संविधान लागू होता है, तो उसके साथ पहले से लागू किसी भी कानून का पालन किया जाएगा, जब तक कि वह संविधान के साथ संगत न हो।
- अनुच्छेद 373 - संविधान की लागू अवधि: यह अनुच्छेद संविधान की प्रभावी तिथि और इसे लागू करने के संदर्भ में कुछ प्रावधानों को स्पष्ट करता है, ताकि संविधानीक संरचना को लागू किया जा सके।
- अनुच्छेद 374 - उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों का कार्यकाल: यह अनुच्छेद उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के कार्यकाल, उनके चयन और नियुक्ति प्रक्रिया से संबंधित है, और उनके इस्तीफे या हटाने की प्रक्रिया को स्पष्ट करता है।
- अनुच्छेद 375 - आधिकारिक प्रक्रिया: यह अनुच्छेद न्यायालयों की अधिकारिता और उन न्यायाधीशों के कार्यों की प्रक्रिया से संबंधित है, जो संविधान से संबंधित मामलों की सुनवाई करते हैं।
- अनुच्छेद 376 - उच्च न्यायालयों में नियुक्ति प्रक्रिया: उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति और उनके कार्यों से संबंधित विभिन्न प्रक्रियाओं को निर्धारित करता है।
- अनुच्छेद 377 - संविधान के प्रावधानों के संबंध में आक्षेप: यह अनुच्छेद उन प्रावधानों का विवरण देता है जिनके तहत अदालतों में संविधान के प्रावधानों के खिलाफ आक्षेप दायर किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 378 - अन्य आयोगों और संस्थाओं का गठन: यह अनुच्छेद उन आयोगों और संस्थाओं के गठन का प्रावधान करता है, जो संविधान के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए काम करते हैं।
- अनुच्छेद 379 - केंद्रीय या राज्य स्तर पर नियुक्तियां: संविधान में यह अनुच्छेद केंद्रीय या राज्य स्तर पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्तियों से संबंधित प्रावधानों को स्पष्ट करता है।
- अनुच्छेद 380 - संविधानिक उपबंधों की व्याख्या: यह अनुच्छेद संविधान में दिए गए उपबंधों की व्याख्या करने का अधिकार प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 381 - आदेशों का कार्यान्वयन: यह अनुच्छेद उन आदेशों को लागू करने के बारे में है, जो संविधान के तहत या राष्ट्रपति द्वारा जारी किए गए हैं।
- अनुच्छेद 382 - दृष्टिकोण और कार्य: यह अनुच्छेद संविधान के उद्देश्यों के परिपेक्ष्य में विभिन्न दृष्टिकोणों और कार्यों को निर्धारित करता है।
- अनुच्छेद 383 - संविधान की विशेषताएँ: संविधान की विशेषताओं, जैसे- मूल अधिकारों और कर्तव्यों, संघ और राज्य संरचनाओं आदि के बारे में विस्तार से प्रावधान करता है।
- अनुच्छेद 384 - संविधान की विस्तृत समझ: यह अनुच्छेद संविधान के उद्देश्यों और कार्यों को समझाने के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 385 - संविधान के मूल उद्देश्य: यह अनुच्छेद संविधान के उद्देश्यों और मूल सिद्धांतों की रक्षा करने की बात करता है, ताकि समाज में समानता और न्याय स्थापित किया जा सके।
- अनुच्छेद 386 - प्रारंभिक आदेश: यह अनुच्छेद संविधान को लागू करने के लिए प्रारंभिक आदेशों की प्रक्रिया को निर्धारित करता है।
- अनुच्छेद 387 - संविधान की व्याख्या: यह अनुच्छेद संविधान की व्याख्या को नियंत्रित करता है और संविधान से संबंधित किसी भी अस्पष्टता या विवाद को हल करने के लिए निर्देशित करता है।
- अनुच्छेद 388 - संविधान में संशोधन: यह अनुच्छेद संविधान में संशोधन के लिए प्रक्रिया और कर्तव्यों को स्पष्ट करता है।
- अनुच्छेद 389 - संविधान की स्वीकृति और अनुमोदन: यह अनुच्छेद संविधान की स्वीकृति और अनुमोदन के बारे में विवरण प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 390 - संविधान में संशोधन के बाद का कार्य: यह अनुच्छेद संविधान में संशोधन के बाद कार्यान्वयन से संबंधित प्रक्रियाओं को निर्धारित करता है।
- अनुच्छेद 391 - संविधान में संशोधन का कार्यान्वयन: यह अनुच्छेद संविधान में संशोधन के कार्यान्वयन से संबंधित प्रक्रिया और कदमों को बताता है।
- अनुच्छेद 392 - संविधान में संशोधन के अंतिम कार्य: यह अनुच्छेद संविधान में संशोधन की अंतिम प्रक्रिया और उसे लागू करने के तरीके को निर्धारित करता है।
भाग - 22 (संक्षिप्त शीर्षक, प्रारंभ, हिंदी में आधिकारिक पाठ और निरसन, अनुच्छेद 393 से 395)
- अनुच्छेद 393 - संविधान का नाम: भारत के संविधान का नाम "संविधान" होगा और यह भारतीय संघ और राज्य के लिए सर्वोच्च कानून होगा।
- अनुच्छेद 394 - संविधान के लागू होने की तिथि: यह अनुच्छेद संविधान के लागू होने की तिथि से संबंधित है, जो 26 जनवरी 1950 को थी।
- अनुच्छेद 395 - संविधान के अनुच्छेदों की सूची: संविधान के अनुच्छेदों की सूची दी गई है और इसके तहत भारतीय संविधान के विभिन्न भागों और उनके विवरणों का ब्योरा दिया गया है।
भारतीय संविधान के अनुसूचियाँ
अनुसूची 1
➤ अनुसूची 1 भारतीय संविधान के तहत संघ और राज्यों के नाम और उनके क्षेत्रों का विवरण करती है। यह अनुसूची भारतीय संघ के अंतर्गत विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के भौतिक क्षेत्र, नाम और उनके अधिकारों का निर्धारण करती है। अनुसूची 1 में संघ और राज्य के क्षेत्र की सीमा, राज्य की मान्यता, और उनके अधिकारों की परिभाषा दी गई है।
➤ इसमें संघ और राज्यों के भौतिक क्षेत्र (territories) के नाम के साथ-साथ उन क्षेत्रों की सीमाओं को भी वर्णित किया गया है। अनुच्छेद 1 से 4 के तहत यह लागू होता है, जिसमें भारतीय संघ के गठन, राज्यों के नाम, उनके क्षेत्र और उनके अधिकारों का उल्लेख किया गया है।
अनुसूची 2
➤ अनुसूची 2 भारतीय संविधान के तहत राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए वेतन और भत्तों से संबंधित प्रावधानों का निर्धारण करती है। इस अनुसूची में राष्ट्रपति और राज्यपाल के वेतन, भत्ते और अन्य वित्तीय लाभों का विवरण दिया गया है, जिन्हें संसद द्वारा अधिनियमित किया जाता है।
➤ इसमें राष्ट्रपति और राज्यपाल के वेतन और भत्तों की राशि को निर्धारित किया गया है, साथ ही उनके द्वारा प्राप्त किए जाने वाले अन्य लाभों जैसे कि निवास स्थान, यात्रा भत्ते और कार्यालय खर्च आदि का उल्लेख किया गया है। यह अनुसूची यह सुनिश्चित करती है कि राष्ट्रपति और राज्यपाल के पदों के लिए कोई भी भेदभाव नहीं हो और उन्हें संविधान द्वारा निर्धारित सुविधाएं मिलें।
➤ यह अनुसूची उनके कार्यकाल के दौरान उनके वेतन और भत्तों को स्थिर और निर्धारित करती है, ताकि वे पदों की गरिमा बनाए रखते हुए अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकें। इसके तहत संसद द्वारा तय किए गए मानकों के आधार पर उन्हें समय-समय पर संशोधन किया जा सकता है।
अनुसूची 3
➤ अनुसूची 3 भारतीय संविधान के तहत शपथ और शपथ पत्र के फार्मों को निर्धारित करती है। यह अनुसूची उन शपथों और शपथ पत्रों के प्रारूप को निर्दिष्ट करती है, जिन्हें विभिन्न पदों पर नियुक्त होने वाले व्यक्ति को संविधान के अनुरूप शपथ लेने के लिए अनिवार्य रूप से लेना होता है।
➤ इसमें मुख्य रूप से राष्ट्रपति, राज्यपाल, उच्च न्यायालय के न्यायधीश, संसद और राज्य विधानसभाओं के सदस्य, और अन्य महत्वपूर्ण सरकारी अधिकारीयों के लिए शपथ लेने के प्रारूप दिए गए हैं। इन शपथों में संविधान के प्रति निष्ठा, कर्तव्यों को पूरी तरह से निभाने और किसी अन्य पद की शपथ के बिना काम न करने की प्रतिबद्धता की शपथ शामिल होती है।
➤ यह अनुसूची यह सुनिश्चित करती है कि सभी नियुक्त पदों पर आने वाले लोग संविधान और कानून के प्रति अपनी निष्ठा और जिम्मेदारी को सही तरीके से समझें और उसे लागू करें। यह शपथ पत्र सरकार के कार्यों में पारदर्शिता और ईमानदारी बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण औजार के रूप में कार्य करता है।
अनुसूची 4
➤ अनुसूची 4 भारतीय संविधान के तहत राज्यसभा (राज्य परिषद) और लोकसभा (लोक प्रतिनिधि सभा) के सदस्यों की संख्या का निर्धारण करती है। यह अनुसूची विशेष रूप से संसद के दोनों सदनों के सदस्यों के गठन को निर्धारित करती है, जिसमें राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से प्रतिनिधियों की संख्या शामिल है।
➤ अनुसूची 4 के अंतर्गत, यह उल्लेख किया गया है कि राज्यसभा के प्रत्येक राज्य से कितने सदस्य होंगे, और लोकसभा में विभिन्न राज्यों की जनसंख्या के अनुसार कितने प्रतिनिधि होंगे। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि संसद में प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश को उचित प्रतिनिधित्व मिले, ताकि संसद में विभिन्न क्षेत्रों की विविधता और भौगोलिक समानता का प्रतिनिधित्व हो सके।
➤ इसमें राज्यसभा के सदस्यों की कुल संख्या 250 तक हो सकती है, जिसमें से अधिकतम 238 सदस्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से और 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नामांकित किए जा सकते हैं। लोकसभा के सदस्य राज्यों की जनसंख्या के अनुपात में चुने जाते हैं, और उनकी संख्या 552 तक हो सकती है। इस अनुसूची के जरिए केंद्र और राज्यों के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश की जाती है।
अनुसूची 5
➤ अनुसूची 5 भारतीय संविधान के तहत आदिवासी क्षेत्रों और क्षेत्रों में विशेष प्रावधानों का निर्धारण करती है। यह अनुसूची विशेष रूप से आदिवासी क्षेत्रों और आदिवासी समुदायों के अधिकारों की रक्षा करने के उद्देश्य से बनाई गई है। इसका मुख्य उद्देश्य इन क्षेत्रों में विशेष कानूनी सुरक्षा प्रदान करना है, ताकि आदिवासी समुदायों की सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके।
➤ इस अनुसूची के तहत, संविधान के अनुच्छेद 244(1) के अनुसार, आदिवासी क्षेत्रों को विशेष प्रावधानों के तहत शासित किया जाता है, और इसमें केंद्रीय या राज्य सरकारों के कुछ सामान्य कानूनी अधिकारों को सीमित किया जा सकता है। इसके अलावा, आदिवासी क्षेत्रों में किसी भी प्रकार के नए कानून को लागू करने से पहले इन क्षेत्रों की विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखा जाता है।
➤ अनुसूची 5 में उन राज्यों और क्षेत्रों का उल्लेख किया गया है, जो आदिवासी क्षेत्रों के रूप में निर्धारित किए गए हैं। इनमें विशेष रूप से उत्तर-पूर्वी राज्य जैसे कि असम, मेघालय, मणिपुर, नागालैंड, त्रिपुरा और अन्य क्षेत्रों को शामिल किया गया है। इसके अंतर्गत इन क्षेत्रों के आदिवासी समुदायों के लिए स्वायत्तता, सामाजिक सुरक्षा और प्रशासनिक स्वायत्तता जैसे विशेष प्रावधान होते हैं।
➤ यह अनुसूची आदिवासी समुदायों के अधिकारों और संरक्षण को सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, और उनके विकास और कल्याण के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा विशेष उपायों की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
अनुसूची 6
➤ अनुसूची 6 भारतीय संविधान के तहत उत्तर-पूर्वी राज्यों, विशेष रूप से असम, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश, के लिए विशेष प्रावधानों का निर्धारण करती है। यह अनुसूची इन राज्यों में आदिवासी क्षेत्रों के लिए स्वायत्तता और प्रशासनिक विशेषताएँ प्रदान करती है, ताकि वहां के स्थानीय समुदायों और आदिवासी समूहों की सांस्कृतिक और सामाजिक स्थिति को सुरक्षित किया जा सके।
➤ अनुसूची 6 के अंतर्गत, इन राज्यों के लिए एक विशेष स्वायत्त शासी निकाय (Autonomous District Councils) का गठन किया जा सकता है। इन निकायों को राज्य सरकार से कुछ हद तक स्वायत्तता प्राप्त होती है, जिससे वे अपने आंतरिक मामलों को खुद संभाल सकें, जैसे कि भूमि, वन, आपराधिक मामले, विवाह, आदि। इसके साथ ही इन राज्यों के आदिवासी क्षेत्रों में एक अलग प्रशासनिक व्यवस्था लागू की जाती है, जो स्थानीय लोगों की जरूरतों और स्थितियों के अनुसार होती है।
➤ इस अनुसूची के प्रावधान इन राज्यों के आदिवासी समुदायों की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक अधिकारों की रक्षा करने के लिए बनाए गए हैं। इसके तहत विशेष प्रशासनिक और कानूनी ढांचे की व्यवस्था की जाती है, ताकि इन राज्यों के आदिवासी समुदायों को बेहतर विकास, संरक्षण और स्वायत्तता मिल सके।
➤ अनुसूची 6 में इन विशेष प्रावधानों के तहत राज्य सरकारों को स्थानीय निकायों और स्वायत्त क्षेत्रों के प्रशासनिक कामकाज को केंद्र सरकार से परामर्श के बाद नियंत्रित करने की अनुमति दी गई है। इस प्रकार, अनुसूची 6 उत्तर-पूर्वी राज्यों में आदिवासी समूहों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए महत्वपूर्ण प्रावधान प्रदान करती है।
अनुसूची 7
➤ अनुसूची 7 भारतीय संविधान के तहत केंद्रीय, राज्य और समवर्ती सूची के विषयों का वर्गीकरण करती है। यह अनुसूची संघीय व्यवस्था के तहत कानून बनाने के अधिकार को राज्यों और केंद्र सरकार के बीच बांटने का काम करती है। इसके तहत उन विषयों को निर्धारित किया गया है, जिन पर केंद्र सरकार, राज्य सरकार या दोनों सरकारें कानून बना सकती हैं।
➤ इस अनुसूची में तीन सूचियाँ दी गई हैं:
- केंद्रीय सूची (Union List): यह सूची उन विषयों का संग्रह करती है, जिन पर केवल केंद्र सरकार कानून बना सकती है। इसमें रक्षा, विदेश नीति, परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष, और अन्य राष्ट्रीय महत्व के मामलों जैसे विषय आते हैं।
- राज्य सूची (State List): यह सूची उन विषयों का संग्रह करती है, जिन पर केवल राज्य सरकारें कानून बना सकती हैं। इसमें पुलिस, शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि, और स्थानीय सरकारों से संबंधित विषय आते हैं।
- समवर्ती सूची (Concurrent List): यह सूची उन विषयों का संग्रह करती है, जिन पर केंद्र और राज्य दोनों सरकारें कानून बना सकती हैं। इसमें अपराध, आपराधिक कानून, श्रम, वन, विवाह, और परिवार से संबंधित मामले आते हैं।
➤ यह सूचियाँ संविधान की धारा 246 के तहत लागू होती हैं और इनका उद्देश्य केंद्र और राज्यों के बीच अधिकारों का स्पष्ट रूप से निर्धारण करना है। यदि केंद्र और राज्य सरकारें किसी समवर्ती सूची के विषय पर एक जैसा कानून बनाती हैं, और यदि उस पर विवाद उत्पन्न होता है, तो केंद्र सरकार का कानून अधिक प्रभावी होता है।
➤ संविधान के अनुच्छेद 246 और 254 के तहत, यदि किसी राज्य कानून और केंद्र कानून के बीच संघर्ष उत्पन्न होता है, तो केंद्र का कानून सर्वोपरि माना जाता है। अनुसूची 7 इस प्रकार संघीय संरचना में सामंजस्य और संतुलन बनाए रखने का काम करती है।
अनुसूची 8
➤ संविधान की अनुसूची 8 में भारतीय भाषाओं की सूची दी गई है, जिन्हें भारतीय संविधान के तहत "राजभाषाएँ" माना जाता है। यह सूची भारतीय राज्यों और केंद्र सरकार के बीच संवाद और प्रशासनिक कार्यों के लिए उपयोगी है। अनुसूची 8 में कुल 22 भाषाओं का उल्लेख किया गया है, जो भारत के विभिन्न राज्यों और समुदायों की विविधता का प्रतीक हैं।
➤ इन भाषाओं को विभिन्न प्रशासनिक, न्यायिक और अन्य सरकारी कार्यों में स्वीकार किया जाता है। ये भाषाएँ भारतीय संविधान के तहत मान्यता प्राप्त हैं और भारत में संविधान के कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इन भाषाओं को संघ और राज्य स्तर पर सरकारी कामकाज, शिक्षा, और न्यायिक कार्यों में उपयोग किया जाता है।
➤ अनुसूची 8 में निम्नलिखित भाषाएँ शामिल हैं:
- 1. असमिया
- 2. बंगाली
- 3. गुजराती
- 4. हिंदी
- 5. कन्नड़
- 6. कश्मीरी
- 7. कोंकणी
- 8. मलयालम
- 9. मराठी
- 10. नेपाली
- 11. उड़िया
- 12. पंजाबी
- 13. संस्कृत
- 14. सिंधी
- 15. तमिल
- 16. तेलुगु
- 17. उर्दू
- 18. बोडो
- 19. संस्कृत
- 20. माजी (Maithili)
- 21. संथाली
- 22. डोगरी
➤ इन भाषाओं को संविधान में मान्यता प्राप्त है और देशभर में इनका प्रयोग किया जाता है। इसे संविधान के उद्देश्यों के तहत भारतीय समाज की भाषाई विविधता को सम्मान देने के रूप में देखा जाता है।
अनुसूची 9
➤ अनुसूची 9 भारतीय संविधान के तहत संविधान द्वारा प्रदान किए गए कुछ विशेष कानूनों और प्रावधानों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रावधान है। यह अनुसूची उन कानूनों का संग्रह करती है, जिन्हें संसद ने उन विशेष परिस्थितियों में बनाए हैं, जो न्यायिक समीक्षा से बाहर होते हैं।
➤ इस अनुसूची में उन अधिनियमों का उल्लेख किया गया है, जो संविधान के लागू होने के समय या बाद में बनाए गए थे और जिन्हें किसी विशेष प्रकार की सुरक्षा दी गई है, ताकि वे न्यायालयों द्वारा चुनौती नहीं दिए जा सकें। इसके तहत, इन कानूनों को संविधान के अनुच्छेद 31B में सम्मिलित किया गया है और इन्हें न्यायिक समीक्षा से मुक्त कर दिया गया है।
➤ अनुसूची 9 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कुछ विशिष्ट कानूनों को संविधान के तहत न्यायालयों की परीक्षा से बाहर रखा जाए, ताकि इन कानूनों को लागू करने में सरकार की नीतियों और निर्णयों में स्थिरता बनी रहे। हालांकि, इसका प्रयोग बेहद सीमित और विशिष्ट मामलों तक ही किया गया है।
➤ इस अनुसूची में अधिकतर भूमि सुधार संबंधी कानून, जो राज्यों ने अपनी भूमि से संबंधित नीतियों के तहत बनाए थे, शामिल हैं। इन कानूनों को आमतौर पर भूमि वितरण, भूमि पुनर्वितरण, और भूमि अधिकारों से संबंधित विशेष अधिकार प्राप्त थे।
➤ संविधान के अनुच्छेद 31B के तहत, संसद को अधिकार है कि वह इस अनुसूची में किसी भी अन्य अधिनियम को सम्मिलित कर सकती है। इसका उद्देश्य संविधान की धारा 31 के तहत व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करने के बावजूद, कुछ विशेष प्रकार के कानूनों को न्यायिक परीक्षा से बाहर रखना है।
अनुसूची 10
➤ अनुसूची 10 भारतीय संविधान के तहत "अयोग्यता" और "अधिकारों का हनन" से संबंधित प्रावधानों को निर्दिष्ट करती है। यह अनुसूची उन परिस्थितियों का उल्लेख करती है, जिनमें किसी व्यक्ति को संसद या राज्य विधानसभा के सदस्य के रूप में कार्य करने से अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
➤ अनुसूची 10 के तहत, यदि किसी सदस्य ने भारतीय संविधान, संसद या राज्य विधानसभा के नियमों का उल्लंघन किया है या किसी भ्रष्ट आचरण में संलिप्त है, तो उसे अयोग्य घोषित किया जा सकता है। यह प्रावधान इस उद्देश्य से है कि संसद और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों की कार्यशैली और आचरण उच्च मानकों के अनुरूप रहे और लोकतांत्रिक संस्थाओं की प्रतिष्ठा बनी रहे।
➤ यह अनुसूची विशेष रूप से उन मामलों पर ध्यान केंद्रित करती है, जहां सांसदों और विधायकों द्वारा अनुशासनहीनता, भ्रष्टाचार या उनके कर्तव्यों में लापरवाही के कारण उन्हें संसद या राज्य विधानसभा के सदस्य के रूप में कार्य करने से निष्कासित किया जा सकता है।
➤ इसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि ऐसे मामलों में तात्कालिक उपाय के रूप में, राष्ट्रपति या राज्यपाल के आदेश से निष्कासन किया जा सकता है और संबंधित व्यक्ति को अयोग्य घोषित किया जा सकता है। यह प्रावधान भारतीय लोकतंत्र में सही आचरण और ईमानदारी को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है।
➤ संविधान के अनुच्छेद 102 और 191 के अंतर्गत, इस अनुसूची का कार्यान्वयन किया जाता है, जिसमें सांसदों और विधायकों के अधिकारों और कर्तव्यों को स्पष्ट किया गया है। यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी रूप में भ्रष्टाचार या दुराचार को बढ़ावा न मिले और संसद और विधानसभा के कार्य निष्पक्ष और पारदर्शी रहें।
अनुसूची 11
➤ अनुसूची 11 भारतीय संविधान के तहत पंचायतों से संबंधित प्रावधानों का वर्णन करती है। यह अनुसूची पंचायतों की संरचना और उनके अधिकारों को निर्धारित करती है, ताकि स्थानीय प्रशासन और विकास में पंचायतों की भूमिका स्पष्ट और प्रभावी हो सके।
➤ इस अनुसूची में पंचायतों के गठन, कार्य, और अधिकारों को केंद्रित किया गया है। इसमें ग्राम पंचायतों, क्षेत्र पंचायतों और जिला पंचायतों के विषय में जानकारी दी गई है। अनुसूची 11 के तहत, राज्य सरकारें पंचायतों के गठन और उनके अधिकारों के संबंध में अपनी आवश्यकतानुसार कानून बना सकती हैं।
➤ यह अनुसूची 73वें संविधान संशोधन के तहत लागू हुई थी, जिसका उद्देश्य पंचायतों को सशक्त बनाना और उन्हें स्वायत्तता प्रदान करना था। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ग्राम स्तर पर विकास कार्यों को पंचायतों के माध्यम से किया जाए और इसके साथ ही स्थानीय स्तर पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बढ़ावा दिया जाए।
➤ अनुसूची 11 के तहत, प्रत्येक राज्य में पंचायतों के लिए संरचनात्मक ढांचा तैयार किया गया है, जिसमें स्थानीय विकास के लिए पंचायतों को जरूरी अधिकार और जिम्मेदारियां दी गई हैं। यह सुनिश्चित करती है कि ग्राम स्तर पर शासन और प्रशासन की प्रक्रिया अधिक लोकतांत्रिक और पारदर्शी हो।
➤ इस अनुसूची के तहत, राज्यों के संविधान और कानूनी ढांचे के आधार पर पंचायतों की संरचना और कार्यों में बदलाव किए जा सकते हैं, लेकिन राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना होता है कि पंचायतों को 73वें संविधान संशोधन के प्रावधानों के अनुरूप सशक्त किया जाए।
अनुसूची 12
➤ अनुसूची 12 भारतीय संविधान के तहत "राज्य सूची" से संबंधित है और इसमें उन सभी "राज्य" और "केंद्र शासित प्रदेशों" के नामों का उल्लेख किया गया है, जिनमें भारतीय संविधान के अनुसार राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए विशेष प्रावधान लागू होते हैं। यह अनुसूची राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के संवैधानिक ढांचे और उनके बीच अधिकारों के वितरण को स्पष्ट करती है।
➤ अनुसूची 12 का मुख्य उद्देश्य भारतीय संविधान के अनुच्छेद 1 के तहत, भारतीय संघ की संरचना और उसके घटकों को परिभाषित करना है। इसमें भारतीय संघ में शामिल सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के नामों को निर्दिष्ट किया गया है, ताकि संविधान के अन्य अनुच्छेदों और अनुबंधों में इन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के संदर्भ में कोई भ्रम न हो।
➤ इस अनुसूची में राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की सूची दी गई है, जो संविधान के विभिन्न प्रावधानों के अनुसार भिन्न-भिन्न कानूनी स्थिति और अधिकारों से संपन्न होते हैं। यह अनुसूची संविधान के अनुच्छेद 1 और 4 के तहत लागू होती है, जिससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि संविधान के सभी अनुच्छेदों में राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों का सही संदर्भ दिया जाए।
➤ साथ ही, इस अनुसूची के जरिए भारतीय संविधान में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के अधिकारों और कर्तव्यों को संतुलित किया जाता है, ताकि केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सही वितरण और समन्वय बना रहे।