अनुच्छेद 361 क्या है? (Article 361 in Hindi)

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Article 361 In Hindi
Article 361 In Hindi

⭐ Important for : 
  • Prelims (सामान्य अध्ययन : प्रश्न पत्र - 1)
  • Mains (सामान्य अध्ययन - 2, प्रश्न पत्र - 3)

💭 कानून और व्यवस्था क्या है?
What is Law and Order?

कानून और व्यवस्था से तात्पर्य है, विधि के शासन को बनाए रखना। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें कानूनों का पालन किया जाता है, और लोग संगठित और शांतिपूर्ण तरीके से व्यवहार करते हैं। जब किसी देश में कानून और व्यवस्था होती है, तो आमतौर पर कानूनों को स्वीकार किया जाता है और उनका पालन किया जाता है, जिससे वहां का समाज सामान्य रूप से कार्य करता है। यदि कानून व्यवस्था टूट जाती है, तो राज्य में सेना के हस्तक्षेप का भय हो सकता है या राज्य तानाशाही की ओर अग्रसर हो सकती है। 

💭 कानून और व्यवस्था की मुख्य विशेषताएँ
(Main Characteristics of Law and Order)

  • कानून सामान्य इच्छा पर आधारित नियमों का समूह है। 
  • कानून को वैध प्राधिकरण द्वारा तैयार किया जाता है जैसे कि राजा या सार्वजनिक रूप से निर्वाचित विधायिका । 
  • कानून बड़े पैमाने पर किसी विशेष क्षेत्र के रीति- रिवाजों और परंपराओं पर आधारित होते हैं। 
  • वैध प्राधिकारी आवश्यकता या स्थिति के अनुसार कानून को बदल या संशोधित कर सकता है। आम तौर पर, लोगों को अपनी इच्छा और भावना से कानून का पालन करना होता है। 

💭 सुशासन के एक उपकरण के रूप में कानून और व्यवस्था
(Law and Order as a tool of good governance)

विश्व बैंक के अनुसार, सुशासन को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है: "वह तरीका जिससे किसी देश के आर्थिक और सामाजिक संसाधनों के प्रबंधन में विकास के लिए शक्ति का प्रयोग किया जाता है।" 

सुशासन की 8 प्रमुख विशेषताएं हैं - 

1. सहभागी

2. सहमति उन्मुख

3. जवाबदेह

4. पारदर्शी है

5. संवेदनशील/उत्तरदायी

6. प्रभावी और कुशल

7. न्यायसंगत और समावेशी

8. विधि के शासन का अनुसरण करता है

💭 कानून के शासन से तात्पर्य (Rule of Law)

  • विधि का शासन (Rule of Law) शासन का एक सिद्धांत है जिसमें सभी व्यक्ति, संस्थाएं और निकाय, सार्वजनिक और निजी, स्वयं राज्य सहित, कानूनों के प्रति जवाबदेह होते हैं।
  • ये कानून सार्वजनिक रूप से प्रख्यापित किए जाते हैं, समान रूप से लागू किए जाते हैं और स्वतंत्र रूप से न्यायनिर्णित (adjudicated) होते हैं। 
  • इसके लिए निम्नलिखित सिद्धांतों के पालन को सुनिश्चित करने के उपायों की आवश्यकता होती है-

    • कानून की सर्वोच्चता
    • कानून के समक्ष समानता
    • कानून के प्रति जवाबदेही
    • कानून के आवेदन में निष्पक्षता
    • शक्तियों का पृथक्करण
    • निर्णय लेने में भागीदारी
    • कानूनी निश्चितता
    • मनमानी से परहेज
    • प्रक्रियात्मक और कानूनी पारदर्शिता

💭 राष्ट्रपति और राज्यपाल को अनुच्छेद 361 द्वारा दिया जाने वाला प्रतिरक्षा

संविधान का अनुच्छेद 361, जो राष्ट्रपति और राज्यपालों को मिलने वाली उन्मुक्ति (immunity) से संबंधित है, निम्नलिखित बताता है- वे "अपने पद की शक्तियों और कर्तव्यों के प्रयोग और प्रदर्शन के लिए या उन शक्तियों और कर्तव्यों के प्रयोग और प्रदर्शन में उनके द्वारा किए गए या किए जाने वाले किसी भी कार्य के लिए किसी भी अदालत के प्रति उत्तरदायी नहीं होंगे।" 

इस प्रावधान में दो महत्वपूर्ण उप-खंड भी शामिल है -

(1) राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल के खिलाफ उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी अदालत में कोई भी आपराधिक कार्यवाही शुरू या जारी नहीं की जा सकती है।

(2) राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल की गिरफ्तारी या कारावास के लिए कोई भी प्रक्रिया उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी अदालत से जारी नहीं होगी।

  • संविधान राज्यपाल के खिलाफ अभियोजन पर पूर्ण प्रतिबंध पर विचार करता है।
  • उन्हें आरोपी के रूप में नामित नहीं किया जा सकता है।
  • पुलिस केवल राज्यपाल के पद से हटने के बाद ही कार्रवाई कर सकती है, जो तब होता है जब राज्यपाल या तो इस्तीफा दे देते हैं या उन्हें राष्ट्रपति का विश्वास प्राप्त नहीं रह जाता है।

हालांकि, अनुच्छेद 61 के तहत, संसद के किसी सदन द्वारा नियुक्त न्यायालय, अभिकरण या निकाय द्वारा राष्ट्रपति के आचरण का पुनर्विलोकन किया जा सकता है। एवं भारत के संविधान के अनुच्छेद 156 में राज्यपाल को हटाने का प्रावधान है। 

राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर काम करता है, इसलिए राज्यपाल को केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त और हटाया जा सकता है।

राष्ट्रपति किसी भी समय और बिना कारण के राज्यपाल को बर्खास्त कर सकता है, हालांकि सरकारिया आयोग - 1988 के मुताबिक, राज्यपालों को दुर्लभ और अपरिहार्य परिस्थितियों को छोड़कर, उनके पांच साल के कार्यकाल को पूरा करने से पहले बर्खास्त नहीं किया जाना चाहिए। 

वहीं, वेंकटचलैया आयोग (वर्ष 2002) ने सिफ़ारिश की थी कि आमतौर पर राज्यपालों को अपना पाँच साल का कार्यकाल पूरा करने की अनुमति दी जानी चाहिए।

💭 इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय
(What did Supreme Court say in this regard?)

2006 में, रामेश्वर प्रसाद बनाम भारत संघ के मामले में - 

  • सर्वोच्च न्यायालय ने "व्यक्तिगत दुर्भावना के आरोपों पर भी" राज्यपाल द्वारा प्राप्त उन्मुक्ति को रेखांकित किया। 
  • सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि “कानून में स्थिति यह है कि राज्यपाल को पूर्ण उन्मुक्ति प्राप्त है।"
  • इस प्रकार "राज्यपाल अपने पद की शक्तियों और कर्तव्यों के प्रयोग और प्रदर्शन के लिए या उन शक्तियों और कर्तव्यों के प्रयोग और प्रदर्शन में उनके द्वारा किए गए या किए जाने वाले किसी भी कार्य के लिए किसी भी न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं हैं।"


⭐ Note : यह लेख Prelims के साथ-साथ Main (GS-2) - Polity & Governance के लिए भी महत्वपूर्ण है।


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