
खिलजी वंश - दिल्ली सल्तनत का दूसरा वंश
खिलजी वंश का संस्थापक जलालुद्दीन फिरोज़ खिलजी था। खिलजी वंश का शासन काल 1290 ईसवी से 1320 ईसवी तक की थी। खिलजी वंश, दिल्ली सल्तनत पर सबसे कम समय तक शासन करने वाला वंश है। इस वंश का शासन काल 30 वर्ष था, इसके बाद सैयद वंश 37 वर्ष, लोदी वंश 75 वर्ष, गुलाम वंश 84 वर्ष और फिर तुगलक वंश का 94 वर्ष का शासन काल रहा था।
खिलजी कौन थे
- जलालुद्दीन फिरोज खिलजी के पूर्वज अफ़ग़ानिस्तान क्षेत्र के खल्ज़ नामक स्थान से भारत आए थे।
- अफगानी भाषा में गर्म क्षेत्र को खल्ज़ कहते है, अतः इसी संबंध से जलालुद्दीन फिरोज खिलजी के पूर्वज खिलजी या खलजी कहलाए।
- खिलजी कबीले के लोग मुख्य रूप से तुर्की ही थे, किन्तु तुर्की लोग खिलजी कबीले के लोगों को मंगोलो से जुड़े हुए मिश्रित तुर्की मानते थे।
- कुछ इतिहासकारों का मत है कि खिलजी तुर्कों के 64 जातियों में से एक सर्वहारा वर्ग से संबन्धित थे जो कि हेलमंद नदी के घाटी में निवास करते थे। खिलजी कुलीन वर्ग के नहीं थे।
जलालुद्दीन फिरोज खिलजी (1290 - 1296 ई.)
- खिलजी वंश के संस्थापक तथा प्रथम सुल्तान जलालुद्दीन फिरोज़ खिलजी गुलाम वंश के अंतिम शासक क्यूमर्श को गद्दी से हटाने के बाद कुछ कुलीन गुटों के मदद से गद्दी पर बैठा।
- जलालुद्दीन फिरोज़ खिलजी गुलाम वंश के शासक बलबन के समय ही दिल्ली सल्तनत के सेना में उच्च पद 'आरिज-ए-मुमालिक' पर आसीन हो गया था।
- जलालुद्दीन फिरोज़ खिलजी दिल्ली सल्तनत काल के इतिहास में सबसे अधिक उम्र (70 वर्ष) में बनने वाला सुल्तान था।
- जलालुद्दीन फिरोज़ खिलजी ने अपना राज्याभिषेक किलोखरी महल में करवाया।
- मुसलमानों का दक्षिण पर प्रथम आक्रमण जलालुद्दीन खिलजी के शासनकाल में 1296 ईसवी में सेनापति (जलालुद्दीन खिलजी का भतीजा) अलाउद्दीन खिलजी के नेतृत्व में देवगिरि (महाराष्ट्र) पर हुआ।
- अलाउद्दीन खिलजी ने सुल्तान के अनुमति के बिना ही देवगिरि के शासक रामचंद्र देव पर आक्रमण कर उसे पराजित कर दिया। इस प्रकार दक्षिण भारत पर आक्रमण करने वाला प्रथम मुस्लिम सेनापति अलाउद्दीन खिलजी था।
- अलाउद्दीन खिलजी ने देवगिरि को जीतने के बाद उसे दिल्ली सल्तनत का भाग नहीं बनाया क्योंकि उसका मुख्य उद्देश्य धन लूटना था और जीत के बाद उसने व्यापक पैमाने पर धन, सोना आदि लूटा। यही से अलाउद्दीन खिलजी के मन में सुल्तान बनने की लालसा जागृत हुई।
- अलाउद्दीन खिलजी ने अपने विश्वास पात्र गुलाम 'इख्तियारूद्दीन हुद' की सहायता से सुल्तान जालौद्दीन फिरोज खिलजी की हत्या करवादी और स्वयं दिल्ली का शासक बन बैठा।
- अलाउद्दीन खिलजी के राज्याभिषेक पर बरनी का कथन है कि- "सुल्तान फिरोज खिलजी के कटे मस्तक से अभी रक्त टपक ही रहा था कि चंदोबा (ताज) अलाउद्दीन खिलजी के सिर पर रख उसे सुल्तान घोषित कर दिया गया।"
अलाउद्दीन खिलजी (1296 - 1316 ई.)
- अलाउद्दीन खिलजी 1296 ई. में सल्तनत का सुल्तान बना और इसका राज्याभिषेक दिल्ली में हुआ था। जलालुद्दीन के शासनकाल के दौरान वह कड़ा का इक्तादार था, इसने जलालुद्दीन के शासन के दौरान 1292 ई. में भिलसा पर तथा 1296 ई. में देवगिरि पर आक्रमण किया था।
- अवध की सूबेदारी के समय इसने देवगिरि पर आक्रमण कर अकूत संपत्ति प्राप्त की थी और इस संपत्ति की लालसा में जलालुद्दीन, अलाउद्दीन से मिलने चला गया, तत्पश्चात् अलाउद्दीन ने उसकी हत्या कर दी और कुछ समय पश्चात् तक वह अनेक विद्रोहों का सामना करता रहा।
- अपने विरोधियों को आतंकित करने के लिए अलाउद्दीन ने 'अधिक-से-अधिक कठोरता और निष्ठुरता का तरीका अपनाया उसने अमीरों के षड्यंत्र को रोकने के लिए अनेक नियम बनाए; जिसमें भोजों और उत्सवों के आयोजन को अमीरों के लिए निषिद्ध कर दिया गया। वे आपस में वैवाहिक संबंध स्थापित नहीं कर सकते थे।
- अलाउद्दीन खिलजी ने सिकन्दर-ए-सानी अर्थात् सिकंदर द्वितीय की उपाधि ग्रहण की। इसने अमीरों के लिए शराब व नशीले पदार्थों के सेवन पर रोक लगा दी।
- अलाउद्दीन ने एक गुप्तचर प्रणाली स्थापित की, जिसके सदस्य अमीरों की कही गई प्रत्येक बात और कार्रवाई से सुल्तान को अवगत कराते थे। अलाउद्दीन के विरुद्ध विद्रोह करने वाले अमीरों में अकत खाँ, हाजी मौला (दिल्ली), मलिक उमर (बदायूँ) तथा मंगू खाँ (अवध) शामिल थे।
- अलाउद्दीन खिलजी ने दक्षिण भारत के राज्यों पर आक्रमण के लिए सेनाएँ भेजीं तथा 1296 ई. में देवगिरि के शासक रामचंद्र को पराजित किया।
- अलाउद्दीन खिलजी ने 1298-99 ई. में गुजरात के लिए अभियान किया। इसी अभियान में उसे 'मलिक काफूर' प्राप्त हुआ। मलिक काफूर को हजार दीनारी भी कहा जाता था।
- अलाउद्दीन खिलजी ने 1301 ई. में रणथंभौर पर आक्रमण किया। इस आक्रमण के समय वहाँ का शासक हम्मीर देव था। इस अभियान का नेतृत्व अलाउद्दीन खिलजी के सैन्य अधिकारियों उलूग खाँ एवं नुसरत खाँ ने किया था।
- 1303 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया इस आक्रमण का कारण चित्तौड़ की रानी पद्मावती की सुंदरता से सुल्तान का प्रभावित होना माना जाता है। मलिक मुहम्मद जायसी की रचना पद्मावत में इस युद्ध की चर्चा है।
- 1309 ई. तेलंगाना के वारंगल पर विजय प्राप्त की। वारंगल के काकतीय शासक प्रताप रुद्रदेव ने अलाउद्दीन खिलजी की अधीनता स्वीकार की। इसी समय मलिक काफूर को कोहिनूर हीरा प्राप्त हुआ।
- वर्ष 1311 में मलिक काफूर के नेतृत्व में अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने पांड्य शासक सुंदर पांड्य को पराजित कर मदुरै पर विजय प्राप्त की।
- अलाउद्दीन खिलजी ने सैन्य विभाग में सुधार किया। सैनिकों को नकद वेतन के साथ घोड़ों को दागने की प्रथा आरंभ की तथा उसने 'बाजार नियंत्रण की नीति' आरंभ की।
- 1316 ई. में अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के पश्चात् उसके कृपापात्र मलिक काफूर (अलाउद्दीन के दक्षिण अभियान का नेतृत्वकर्ता) ने उसके नाबालिग बेटे को सिंहासनारूढ़ किया और अन्य बेटों को या तो कैद कर लिया या उन्हें अंधा बना दिया गया, लेकिन अमीरों ने विरोध नहीं किया। हालाँकि कुछ समय पश्चात् महल के रक्षकों द्वारा मलिक काफूर की हत्या कर दी गई।
- इस घटना के पश्चात् खुसरो नामक एक व्यक्ति, जो हिंदू से मुसलमान बना था, दिल्ली सल्तनत के राजसिंहासन पर आसीन हुआ, यद्यपि समकालीन इतिहासकार खुसरो पर प्रत्येक अपराध में शामिल रहने का आरोप लगाते हैं।
- दिल्ली के प्रसिद्ध सूफी संत निजामुद्दीन औलिया ने खुसरो से भेंट की थी तथा उसे सम्मान दिया था। 1320 ई. में गयासुद्दीन तुगलक के नेतृत्व में अधिकारियों के एक गुट ने इस्लाम के नाम पर विद्रोह कर दिया, जिसमें सुल्तान (खुसरो) के समर्थकों व विद्रोहियों के मध्य युद्ध हुआ तथा खुसरो की पराजय हुई और उसकी हत्या कर दी गई।
अलाउद्दीन खिलजी की प्रशासनिक सुधार
अलाउद्दीन खिलजी के प्रमुख अभियान
गुजरात अभियान (1299 ई.)
- नेतृत्व: उलूग खाँ और नुसरत खाँ
- शासक: राय कर्ण द्वितीय (वाघेला वंश)
- परिणाम: सोमनाथ मंदिर को लूटा गया
- मलिक काफूर को इसी युद्ध में प्राप्त किया
राजस्थान अभियान
- रणथंभौर (1301 ई.): हम्मीर देव की पराजय
- चित्तौड़ (1303 ई.): राणा रतन सिंह की हार
- जालौर (1311 ई.): कान्हड़देव का पतन
- इन विजयों के बाद अलाउद्दीन ने "सिकंदर-ए-सानी" की उपाधि धारण की
मलिक काफूर के दक्षिण अभियान
अलाउद्दीन खिलजी ने 1307-1312 ई. के बीच मलिक काफूर के नेतृत्व में दक्षिण भारत पर चार प्रमुख अभियान भेजे:
- देवगिरि (1307 ई.): रामचंद्र देव को पुनः पराजित किया
- वारंगल (1309 ई.): प्रतापरुद्र द्वितीय (काकतीय वंश) से कोहिनूर हीरा प्राप्त किया
- होयसल (1310 ई.): वीर बल्लाल तृतीय को हराया
- मदुरै (1311 ई.): पांड्य शासक सुंदर पांड्य की पराजय
विशेष तथ्य: ये विजयें अस्थायी थीं - खिलजी सेना ने कोई स्थायी प्रशासन स्थापित नहीं किया, केवल भारी लूट और कर वसूले।
खिलजी वंश का पतन
- 1316 ई.: अलाउद्दीन की मृत्यु के बाद मलिक काफूर ने शहाबुद्दीन उमर (6 वर्षीय) को गद्दी पर बैठाया
- 1316 ई.: मलिक काफूर की हत्या के बाद कुतुबुद्दीन मुबारक शाह सुल्तान बना
- 1320 ई.: मुबारक शाह के हिजड़ा सेवक खुसरो खाँ ने उसकी हत्या कर दी
- 1320 ई.: गाजी मलिक (बाद में गयासुद्दीन तुगलक) ने खुसरो खाँ को पराजित कर तुगलक वंश की स्थापना की
- अलाउद्दीन की कठोर नीतियों से असंतोष
- सैन्य अभियानों पर अत्यधिक व्यय
- उत्तराधिकारी के रूप में योग्य शासक का अभाव
- प्रशासन में गैर-तुर्कों (जैसे मलिक काफूर) को अधिकार देना
पतन के कारण:
महत्वपूर्ण तथ्य:
- अलाउद्दीन खिलजी ने "दीवान-ए-मुस्तखराज" (कर वसूली विभाग) की स्थापना की
- इस काल में अमीर खुसरो और हसन निजामी जैसे विद्वानों को संरक्षण मिला
- अलाउद्दीन ने सिकंदर की तरह विश्व विजय की योजना बनाई थी
- खिलजी काल में ही भारत में पहली बार स्थायी सेना का गठन हुआ
- अलाउद्दीन का मकबरा और अलाई दरवाजा (कुतुब परिसर में) इसी काल की महत्वपूर्ण स्थापत्य कृतियाँ हैं
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