गजनी वंश का अंतिम शासक खुसरों मालिक था, जिसे मुहम्मद गोरी 1186 ईसवी में अपदस्थ करके किले में कैद कर दिया और स्वयं गजनी क्षेत्र का सम्राट बन गया। तुर्क लोग चीन के उत्तरी-पश्चिमी सीमा के क्षेत्र में निवास करते थे।
मुहम्मद गोरी ऐसा तुर्क शासक बना जिसने भारत पर आक्रमण न सिर्फ धन लूटने और इस्लाम का प्रचार करने अपितु साम्राज्य स्थापित करने के उद्देश्य से भी किया। तुर्क लोग चीन के उत्तरी-पश्चिमी सीमा के क्षेत्र में निवास करते थे। जब मुहम्मद गोरी ने भारत पर आक्रमण किया तब उस समय दिल्ली में चौहान वंश का शासन था।
उस समय दिल्ली और अजमेर में चौहान वंश के अंतिम शासक पृथ्वीराज चौहान (तृतीय) का शासन था, पृथ्वीराज चौहान (तृतीय) का राज्याभिषेक 1173 ईसवी में हुआ था।
समकालीन मुस्लिम इतिहासकारों ने पृथ्वीराज चौहान को 'रायपिथौरा' भी कहा है। पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गोरी के बीच तराइन का प्रथम युद्ध 1191 ईसवी में हुआ था जिसमे मुहम्मद गोरी बुरी तरह पराजित हुआ, किन्तु 1192 ईसवी में तराइन का द्वितीय युद्ध हुआ जिसमे पृथ्वीराज चौहान की हार हुई और उन्हे बन्दी बना लिया गया। इसी पराजय के बाद भारत में सल्तनत काल की नींव रखी जा चुकी थी।
अपने विजय के बाद मुहम्मद गोरी ने दिल्ली का शासन अपने गुलाम क़ुतुबुद्दीन ऐबक को सौप दिया और यही से सल्तनत काल और गुलाम वंश का स्थापना हुआ।
1206 ईसवी में मोहम्मद गोरी ने पंजाब के खोखर जनजाति के विद्रोह को दबाने के लिए भारत पर अंतिम बार आक्रमण किया। इस अभियान के दौरान दमयक (पश्चिम पाकिस्तान) में सिंधु नदी के पास मोहम्मद गोरी की हत्या कर दी गयी। मोहम्मद गोरी ने अपने मृत्यु से पहले ही अपने साम्राज्य को तीन गुलामों में वितरित कर रखा था।
- यलदौज को गजनी का राज्यक्षेत्र मिला।
- कुंबाचा को सिंध और मुल्तान का राज्यक्षेत्र मिला।
- क़ुतुबुद्दीन ऐबक को भारतीय राज्यक्षेत्र मिला।
1206 ईसवी से 1526 ईसवी तक दिल्ली पर शासन करने वाले पाँच वंशों के सुल्तानों के शासनकाल को दिल्ली सल्तनत, सल्तनत-ए-हिन्द या सल्तनत-ए-दिल्ली कहा जाता है।
दिल्ली सल्तनत के पांचों वंशों के संस्थापक
⭐ Note : इस पोस्ट में विशेष रूप से गुलाम वंश के शासको के विषय में प्रकाश डाला गया है, शेष वंश जैसे खिलजी, तुगलक और लोदी वंश को भी जल्द ही पोस्ट कर दिया जाएगा....
गुलाम वंश (Mamluk Dynasty)
- गुलाम वंश को मामलुक वंश या इल्बरी वंश भी कहते है।
- गुलाम वंश को इल्बरी वंश इसलिए कहा जाता है क्योंकि क़ुतुबुद्दीन ऐबक को छोड़कर इस वंश के लगभग सभी शासक इल्बरी जाति के तुर्क थे। जबकि मामलुक का मतलब ऐसे गुलाम से है जिसे सैनिक कार्यों में लगाया जाता है।
- गुलाम वंश का संस्थापक क़ुतुबुद्दीन ऐबक को कहते है।
- क़ुतुबुद्दीन ऐबक ने अपनी राजधानी लाहौर बनाई थी।
- क़ुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद उसके गुलाम इल्तुतमिश सुल्तान बना।
- इल्तुतमिश ने लाहौर के स्थान पर दिल्ली को अपनी राजधानी बनाई, अतः सल्तनत काल में दिल्ली को सर्वप्रथम अपनी राजधानी बनाने वाला सुल्तान इल्तुतमिश था।
- गुलाम वंश का अंतिम शासक शमशुद्दीन क्यूम़र्श था।
क़ुतुबुद्दीन ऐबक (1206 ई॰ से 1210 ई॰)
- क़ुतुबुद्दीन ऐबक का जन्म तुर्किस्तान में हुआ था। क़ुतुबुद्दीन बचपन में ही अपने माता-पिता से बिछड़ गया था। उन दिनों तुर्किस्तान में गुलामों की खरीद-बिक्री एक आम बात थी।
- ऐबक को 'काजी फख़रुद्दीन अजीज कूफी' ने खरीदा था। काजी ने ऐबक को बचपन से ही कुरान की शिक्षा दी, कुरान का ज्ञाता होने के कारण क़ुतुबुद्दीन ऐबक को कुरान खाँ के नाम से भी जाना जाता है।
- 'काजी फख़रुद्दीन अजीज कूफी' की मृत्यु के बाद उसके पुत्रों ने क़ुतुबुद्दीन ऐबक को एक व्यापारी को बेच दिया। व्यापारी उसे गजनी ले गया जहां पर ऐबक को मुहम्मद गोरी ने खरीद लिया।
- उचित योग्यता के कारण मुहम्मद गोरी ने क़ुतुबुद्दीन ऐबक को अमीर-ए-आखूर (अस्तबलों के प्रमुख) के पद पर नियुक्त किया।
- 1206 ईसवी में मुहम्मद गोरी के मृत्यु के बाद लाहौर की जनता ने क़ुतुबुद्दीन ऐबक को मुहम्मद गोरी के प्रतिनिधि शासक के रूप में स्वीकार किया। जब 1206 ईसवी में क़ुतुबुद्दीन ऐबक का राज्याभिषेक किया गया तब उसने सुल्तान के बजाय मलिक एवं सिपहसालार की उपाधि धारण की।
- क़ुतुबुद्दीन ऐबक के समय दिल्ली सल्तनत की राजधानी लाहौर थी। वह लाहौर से ही पूरे क्षेत्र पर शासन करता था। क़ुतुबुद्दीन ऐबक ने न ही अपने नाम के सिक्के चलाये और न ही अपने नाम का खुतबा पढ़वाया।
- खुतबा एक रचना होती थी जो मौलवियों से सुल्तान शुक्रवार की रात को मस्जिदों में अपनी प्रशंसा में पढ़वाते थे। खुतबा शासक के संप्रभुता का सूचक था।
- क़ुतुबुद्दीन ऐबक खुद को उदार समझता था इसलिए उसने स्वयं ही 'लाखबक्श' नामक उपाधि धारण की थी।
- 'लाखबक्श' का मतलब गुलामों को रिहा करने वाला, दानशील होता है।
- 'ताज-उल-मासिर' के लेखक हसन निजामी तथा 'आदाब-उल-हर्श-वा-शुजाआत' के लेखक फ़ख-ए-मुदव्विर, क़ुतुबुद्दीन ऐबक के दरबारी विद्वान थे।
- क़ुतुबुद्दीन ऐबक ने अजमेर (राजस्थान) में ढाई दिन का झोपड़ा का निर्माण करवाया एवं सूफी संत 'क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी' के याद में दिल्ली शहर के महरौली भाग में क़ुतुब मीनार का निर्माण कार्य प्रारम्भ करवाया।
- क़ुतुब मीनार को दिल्ली सल्तनत के अगले शासक इल्तुतमिश ने पूरा करवाया। इल्तुतमिश, क़ुतुबुद्दीन ऐबक का गुलाम था इसीलिए इल्तुतमिश को गुलाम का गुलाम भी कहा जाता है।
- 1210 ईसवी में चौगान (पोलो) खेलते समय घोड़े से गिर जाने के कारण क़ुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु हो गयी। क़ुतुबुद्दीन ऐबक का मकबरा लाहौर में बनवाया गया है। ऐबक का उत्तराधिकारी उसका अयोग्य एवं अनुभवहीन पुत्र आरामशाह था, किन्तु इल्तुतमिश ने आरामशाह को अपदस्थ कर दिया और दिल्ली का अगला सुल्तान इल्तुतमिश बना।
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