Ahilyabai Holkar Biography in Hindi - अहिल्याबाई होल्कर जीवनी

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अहिल्याबाई होल्कर - मराठा साम्राज्य की वीर शासिका

इतिहास गवाह है: कि महिलाएं सदैव एक योग्य शासक रहीं है। भारत के इतिहास में अनेकों योग्य महिला शासक हुई हैं जिन्होने अपने पराक्रम से अपने साम्राज्य का रक्षा किया है और अपने प्रजा को सदैव संतान के भाति समझा है। इन वीर महिला शासकों में अनेक नाम है, जिनका नाम भारतीय इतिहास में बड़े आदर के साथ लिया जाता है। उदाहरण के लिए काकतीय वंश की रुद्रमा देवी, रानी दुर्गावती, चाँद बीबी, कित्तूर रानी चेन्नम्मा, रानी लक्ष्मीबाई, रानी आवंतीबाई, बेगम हज़रत महल आदि ऐसे न जाने कितनी ही महिला शासको के नाम है जिनके वीरता के किस्से जितना भी कहा जाए कम है।

आज हम इस लेख में उन्ही महान महिला शासकों में से एक राजमाता अहिल्याबाई होल्कर के जीवन के बारे में जानेगे। ऐसे कम ही लोग होंगे जिन्होने देवी अहिल्याबाई होल्कर का नाम नहीं सुना हो। देवी अहिल्याबाई होल्कर भले ही एक छोटे क्षेत्र की महारानी थी किन्तु उन्होने अपने जीवन भर राज्य पर शत्रुओं का काला छाया नहीं पड़ने दिया और एक माँ की भाति अपने प्रजा की रक्षा की।

शासन काल 1 दिसंबर 1767 - 13 अगस्त 1795
राज्याभिषेक 1 दिसंबर, 1767
पूर्ववर्ती माळेराव होल्कर
उत्तरवर्ती तुकोजीराव होल्कर -1
जन्म 31 मई 1725
जन्म स्थान ग्राम चौंढी, जामखेड , अहमदनगर, महाराष्ट्र, भारत
निधन 13 अगस्त 1795
जीवन संगी खण्डेराव होलकर
पूरा नाम अहिल्याबाई खण्डेराव होलकर
राजवंश होलकर
साम्राज्य मराठा साम्राज्य
पिता मान्कोजी शिन्दे

राजमाता अहिल्याबाई होल्कर

अहिल्याबाई होल्कर का जन्म 31 मई 1725 को चौंडी नामक गाँव में हुआ था जो वर्तमान में महाराष्ट्र के अहमदनगर के जामखेड़ में अवस्थित है। उस समय दक्षिण में मराठों का प्रभुत्व बढ़ रहा था, मराठों के नरेश सतारा में रहते थे किन्तु वे नाम मात्र के ही राजा थे, सारी शक्ति पेशवा के हाथ में थी। पेशवा की आज्ञा से मराठा सरदार उत्तर पर भी धीरे-धीरे अपना अधिकार कर रहे थे, मालवा क्षेत्र के अनेक राज्य मराठा सरदारों ने जीत लिया। इन जीते हुए राज्यो में से कुछ क्षेत्र पेशवा ने अपने सेनापतियों को जागीर स्वरूप दे रखे थे।

इन्ही सेनापतियों में से एक थे 'मल्हार राव होल्कर' जिन्हे 1730 में मालवा का जागीर पेशवा द्वारा प्रदान किया गया। 'मल्हार राव होल्कर' ने इंदौर को अपनी राजधानी बनाया और 'होल्कर राज्य' की स्थापना की। मल्हार राव होल्कर का एक मात्र पुत्र थे 'खण्डे राव होल्कर' , किन्तु खण्डे राव की राज-काज में रुचि नहीं थी। मल्हार राव को एक ऐसे पुत्र वधू की आवश्यकता थी जो उनके बाद खण्डे राव के साथ-साथ राज्य की भी देख रेख कर सके।

'एक बार मल्हार राव' एक मुहिम से लौटते समय एक छोटे से गाँव 'चौंडी' में ठहरे। वहाँ पर शिव मंदिर में 8 वर्ष की छोटी सी अहिल्याबाई को भजन गाते देखा। मल्हार राव उस छोटी सी बच्ची से बहुत प्रभावित हुए, उस बच्ची को देखकर मल्हार राव ने विचार किया कि हो न हो ये नन्ही बच्ची ही आगे चलकर मेरे राज्य का कमान अपने हाथों में लेगी। उन्हे ऐसी ही पुत्रवधू की आवश्यकता थी। उन्होने अहिल्या के पिता मान्कोजी शिंदे से आग्रह किया कि वह अहिल्या को अपने पुत्रवधू के रूप में देखना चाहते है। मान्कोजी शिंदे ने उनका प्रस्ताव स्वीकार किया और कुछ ही समय बाद मल्हार राव के पुत्र खण्डे राव का विवाह अहिल्याबाई के साथ हो गया।

अहिल्याबाई होलकर का इतिहास

अहिल्याबाई होल्कर

अहिल्या की शिक्षा

पिता के घर से अहिल्याबाई को पढ़ने-लिखने की शिक्षा प्राप्त हुई थी एवं धर्मग्रंथो में रुचि व संस्कार मिला था। तलवार और अन्य शस्त्रो को चलाने की शिक्षा उन्हे अपने ससुर मल्हार राव होल्कर के माध्यम से मिला था। राजमाता अहिल्याबाई घुड़सवारी में भी पारंगत थी। अक्सर अहिल्या बाई अपने ससुर और पति के साथ युद्ध पर भी जाया करती थी। अहिल्या ने अपने मधुर व्यवहार से अपने सांस और ससुर दोनों का मन जीत लिया था। अहिल्या की सांस ने भी उनकी शिव जी के प्रति श्रद्धा और भक्ति को अटूट बनाया और उनको एक बेहतर गृहस्थी की शिक्षा दी।

अहिल्या ने राज्य की ज़िम्मेदारी अपने हाथो में ली

ससुर की अनुपस्थिति में अहिल्या ही राज-काज देखती थी। वह राज-काज के मामले में पारंगत हो चुकी थी। न्याय करते समय अहिल्याबाई अपने हाथों में सदैव शिव लिंग धारण किए रहती थी, उनका मानना था कि शिव अगर साथ रहेंगे तो उनके हाथों कभी भी अन्याय नहीं होने देंगे। इसी बीच अहिल्या को एक पुत्र माले राव और उसके तीन वर्ष उपरांत एक पुत्री मुक्ता बाई की प्राप्ति हुई। धीरे-धीरे अहिल्याबाई के पति खण्डे राव भी राज-काज में रुचि लेने लगे। उस समय अहिल्याबाई के देख-रेख में प्रजा सुखी और समृद्ध थी। प्रजा उन्हे राजमाता कहने लगी थी और सभी उनके न्याय कार्य से प्रसन्न थे।

खण्डे राव की वीरगति

सूरजमल जाट से युद्ध करते समय अहिल्याबाई के पति खण्डे राव वीरगति को प्राप्त हो गए। उस समय अहिल्या महज 29 वर्ष की थी। पति के मृत्यु के बाद अहिल्या ने सती होने का निश्चय किया, किन्तु उनके ससुर मल्हार राव होल्कर ने उन्हे समझाया और उन्हे सती होने से रोक लिया। मल्हार राव होल्कर ने पूरी शासन व्यवस्था अहिल्याबाई को सौप दिया।

अहिल्याबाई के पुत्र माले राव का महज 22 वर्ष की आयु में निधन

पति और ससुर के निधन के बाद अहिल्या अपने पुत्र का विवाह तथा राज्याभिषेक करके स्वयं राज्य की देख-रेख करने लगी। इस बीच अकस्मात रोग के चलते उनके पुत्र माले राव का निधन हो गया। इतने दुखों के बाद भी अहिल्याबाई दृढ़ निश्चयी होकर प्रजा-पालन में लगी रही। आगे चलकर अहिल्याबाई ने खुद को स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया। और सुगमता से राज्य चलाने लगी।

अहिल्याबाई होल्कर का जीवन

अहिल्याबाई होल्कर का शासनकाल मराठा इतिहास का स्वर्णिम काल माना जाता है

अहिल्या ने पेशवा के विश्वास पात्र 'राघो बा' के सड्यंत्र को नाकाम किया

अहिल्याबाई के पुत्र मालेराव के निधन के बाद पेशवा के विश्वास पात्र 'राघो बा' ने मौका अच्छा देख राज्य पर चढ़ाई करने की सोची। 'राघो बा' अपनी सेना के साथ अभी बीच रास्ते में ही था तभी अहिल्याबाई को इस सड्यंत्र का पता चल गया। अहिल्या ने 'राघो बा' को पत्र भेजवाया जिसमें उन्होने लिखा था कि "सावधान आपके क्षिप्रा नदी के इस पार आते ही हमारी तलवार चलेगी, इस बात का ध्यान रखकर आगे कदम बढ़ाना आप सेना लेकर मेरा राज्य छिनने आए है पर आपका ये सपना कभी पूरा नहीं होगा। आप मुझे अबला समझने कि भूल कदापि न करे, आपका सामना मेरी महिला सेना की टुकड़ी करेगी, यदि हम हार भी गए तो कोई कुछ नहीं कहेगा किन्तु यदि आप पराजित हुए तो आपकी केवल जग-हसायी ही होगी।"

राघो बा पत्र पढ़ने के बाद उन्हे अपनी तरफ से पत्र भेजा जिसमे उसने लिखा "हम युद्ध कहा करने आए है? ये भ्रांति किसने फैला दी? हम तो आपके पुत्र के निधन पर शोक प्रकट करने आए है।" इसके जवाब में अहिल्या बाई ने लिखा "शोक प्रकट करने आए हो 5000 सेना के साथ? यदि आपको शोक ही प्रकट करने आना है तो अकेले पालकी में आओ आपका स्वागत है" इस तरह कई विपत्तियों को अहिल्याबाई ने अपने सूझ-बुझ से ही सुलझा दिया था। साथ ही उन्होने कई युद्ध भी जीते। अहिल्याबाई ने एक महिला सेना कि टुकड़ी तैयार कर रखी थी। इन्ही से प्रेरित होकर आगे चलकर कई महिला शासकों ने महिला सेना तैयार किया था जिनमें रानी लक्ष्मीबाई भी शामिल है।

ahilyabai holkar real photo

अहिल्याबाई होल्कर की स्मृति में बनी प्रतिमा

अहिल्याबाई के जीवन के आखिरी दिन

अहिल्या बाई की किर्ति दूर-दूर तक फैल चुकी थी। उन्होने अपने राज्य से डाकुओं का सफाया करने के लिए यह घोषणा किया कि जो भी इन डाकुओ को जड़ से खत्म करेगा उसी से वो अपनी पुत्री मुक्ता-बाई का विवाह करेगी। इस प्रकार उन्होने अपने पुत्री के लिए योग्य वर भी ढूंढ लिया और डाकुओं का सफाया भी करवा दिया। अहिल्याबाई ने अपनी राजधानी इंदौर से महेश्वर स्थानांतरित कर दिया और खुद एक साधारण से घर में रहने लगी। 13 अगस्त 1795 को महेश्वर के उसी घर में अहिल्याबाई का देहांत हुआ तो समस्त प्रजा शोक में डूब गयी जैसे उन्होने अपनी सगी माँ को खो दिया हो। अहिल्याबाई ने अपने जीवन काल में अनेक किलों व मंदिरों का निर्माण कराया साथ ही मुगलो और आक्रमणकारियों द्वारा खंडित मंदिरों का भी पुनर्निर्माण कराया। होल्कर राज्य को कठिन समय में सुयोग्य नेतृत्व और स्थायित्व प्रदान करने वाली राजमाता अहिल्याबाई होल्कर का नाम केवल मराठों का ही नहीं बल्कि समूचे भारत के इतिहास का एक सुनहरा पृष्ट है।

"अहिल्याबाई होल्कर ने साबित किया कि महिलाएं न केवल शासन कर सकती हैं बल्कि न्यायप्रिय, दूरदर्शी और जनकल्याणकारी शासन भी दे सकती हैं। उनका जीवन भारतीय नारी शक्ति की अदम्य भावना का प्रतीक है।"

Note: 📢

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